भरतपुर. विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान कोरोना संक्रमण के चलते 83 दिन तक पर्यटकों के लिए बंद रहा. इस दौरान घना के करीब 150 रिक्शा चालकों को भी मजबूरन घर बैठना पड़ा. अब फिर से उद्यान पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है. ऐसे में रिक्शा चालकों को फिर से परिवार के पालन पोषण के लिए घना से उम्मीद जगी है.
लॉकडाउन के इन दिनों में रिक्शा चालकों के लिए गुजारा करना भी भारी पड़ गया. इस संकट के समय में कैसे रहे इन चालकों के हालात, यह जानने ईटीवी भारत भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान पहुंचा.
पांच महीने के सीजन में से करीब तीन महीने घना उद्यान बंद रहा. ऐसे में करीब 150 रिक्शा चालक बेरोजगार हो गए. वहीं रिक्शा चालकों की मानें तो तीन महीने में परिवार के पालन पोषण में उनकी सारी जमा पूंजी खर्च हो गई. इतना ही नहीं, कई रिक्शा चालकों को बच्चों के पालन पोषण के लिए कर्ज भी लेना पड़ा.
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रिक्शा चालक साजन सिंह ने बताया कि करीब 3 महीने तक केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान बंद होने से इस सीजन में कमाई तो ना के बराबर हुई है. साजन सिंह ने बताया कि सामान्य तौर पर केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में 5 से 6 माह का पर्यटन सीजन होता है. लेकिन इस बार कोरोना के चलते बीते करीब 3 माह से घना रहा. ऐसे में इस बार 6 महीने के बजाय सिर्फ 3 महीने ही घना से आमदनी हुई. 3 महीने वो घर पर बेरोजगार बैठे रहे और परिवार के पालन-पोषण में पूरी जमा पूंजी भी खर्च हो गई. यहां तक कि कई बार तो लोगों से पैसा उधार लेना पड़ा.
बेरोजगारी और कालाबाजारी की मार घना झेल रहे रिक्शा चालक प्रेम सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान घर पर बेरोजगार बैठे रहे और पूरा पैसा खर्च हो गया. साथ ही बताया कि लॉकडाउन के दौरान सब्जी से लेकर घरेलू सामान तक के उन्हें निर्धारित से अधिक पैसे चुकाने पड़े. एक तरफ जहां वह बेरोजगारी का दंश झेल रहे थे तो, वहीं कालाबाजारी और महंगाई की मार भी झेलनी पड़ी.
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