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SPECIAL: केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में रिक्शा वालों ने झेला बेरोजगारी का दंश, कर्ज लेकर पाल रहे परिवार

लॉकडाउन के इन दिनों में रिक्शा चालकों के लिए गुजारा करना भी भारी पड़ गया है. इस संकट के समय में कैसे रहे इन चालकों के हालात, यह जानने ईटीवी भारत भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान पहुंचा.

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Published : Jun 9, 2020, 8:40 PM IST

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रिक्शा चालकों की बेबसी बना लॉकडाउन

भरतपुर. विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान कोरोना संक्रमण के चलते 83 दिन तक पर्यटकों के लिए बंद रहा. इस दौरान घना के करीब 150 रिक्शा चालकों को भी मजबूरन घर बैठना पड़ा. अब फिर से उद्यान पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है. ऐसे में रिक्शा चालकों को फिर से परिवार के पालन पोषण के लिए घना से उम्मीद जगी है.

लॉकडाउन के इन दिनों में रिक्शा चालकों के लिए गुजारा करना भी भारी पड़ गया. इस संकट के समय में कैसे रहे इन चालकों के हालात, यह जानने ईटीवी भारत भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान पहुंचा.

रिक्शा चालकों की बेबसी बना लॉकडाउन

पांच महीने के सीजन में से करीब तीन महीने घना उद्यान बंद रहा. ऐसे में करीब 150 रिक्शा चालक बेरोजगार हो गए. वहीं रिक्शा चालकों की मानें तो तीन महीने में परिवार के पालन पोषण में उनकी सारी जमा पूंजी खर्च हो गई. इतना ही नहीं, कई रिक्शा चालकों को बच्चों के पालन पोषण के लिए कर्ज भी लेना पड़ा.

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रिक्शा चालक साजन सिंह ने बताया कि करीब 3 महीने तक केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान बंद होने से इस सीजन में कमाई तो ना के बराबर हुई है. साजन सिंह ने बताया कि सामान्य तौर पर केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में 5 से 6 माह का पर्यटन सीजन होता है. लेकिन इस बार कोरोना के चलते बीते करीब 3 माह से घना रहा. ऐसे में इस बार 6 महीने के बजाय सिर्फ 3 महीने ही घना से आमदनी हुई. 3 महीने वो घर पर बेरोजगार बैठे रहे और परिवार के पालन-पोषण में पूरी जमा पूंजी भी खर्च हो गई. यहां तक कि कई बार तो लोगों से पैसा उधार लेना पड़ा.

उद्यान बंद होने के चलते खड़े रिक्शा

बेरोजगारी और कालाबाजारी की मार घना झेल रहे रिक्शा चालक प्रेम सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान घर पर बेरोजगार बैठे रहे और पूरा पैसा खर्च हो गया. साथ ही बताया कि लॉकडाउन के दौरान सब्जी से लेकर घरेलू सामान तक के उन्हें निर्धारित से अधिक पैसे चुकाने पड़े. एक तरफ जहां वह बेरोजगारी का दंश झेल रहे थे तो, वहीं कालाबाजारी और महंगाई की मार भी झेलनी पड़ी.

ब्याज पर पैसा लेकर कराया बच्चों का इलाज

घना के रिक्शा चालक लाखन सिंह ने बताया कि लॉकडाउन से इस सीजन की कमाई चली गई. लाखन सिंह के 4 बच्चे हैं, जिनमें से 2 बच्चे थैलेसीमिया बीमारी से ग्रस्त हैं. लॉकडाउन में घना उद्यान बंद होने से आमदनी कुछ नहीं हुई. ऐसे में बच्चों के इलाज के लिए ब्याज पर पैसा लेना पड़ा.

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अब मानसून पर टिकी उम्मीद

रिक्शा चालकों ने बताया कि फिलहाल घना में पर्यटन सीजन नहीं है. लेकिन स्थानीय पर्यटक पहुंचने की उम्मीद है. वहीं यदि इस बार मानसून अच्छा रहा तो पर्यटक भी अच्छी संख्या में पहुंच सकते हैं. ऐसे में कोरोना संक्रमण की मार से उबरने के लिए मानसून से उम्मीद लगाए बैठे हैं.

घना प्रशासन ने दिया 14 चालकों को रोजगार

घना निदेशक मोहित गुप्ता ने बताया कि हर वर्ष घना में मंगूरा मछली को बाहर निकालने का कार्य कराया जाता है. लेकिन इस बार घना के रिक्शा चालकों को रोजगार देने के उद्देश्य से इस कार्य में शामिल किया गया था, जिसके तहत 14 रिक्शा चालकों को करीब दो से ढाई महीने के लिए काम पर रखा गया और उनको भुगतान भी किया गया. निदेशक गुप्ता ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान घना के रिक्शा चालकों के परिवार के लिए राशन की किट भी वितरित की गई.

गौरतलब है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में हर वर्ष करीब 400 प्रजाति के देशी-विदेशी हजारों पक्षी यहां आते हैं. करीब 6 महीने के सीजन में यहां के रिक्शा चालकों को पर्यटकों को घुमाने से आमदनी होती है. अब एक बार फिर से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान खुलने से यहां के रिक्शा चालकों को आजीविका की उम्मीद जगी है.

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