भरतपुर. सोनिया चौधरी ये नाम भरतपुर जिले (Bharatpur Para player Sonia Chaudhary) और राजस्थान के लिए नया नहीं है. खेल की दुनिया में चमकती सितारा बनी सोनिया का बचपन जितने कठिन हालातों में गुजरा है, आज वह उतना ही चमक रही है. समाज की दुत्कार और पिता की डांट के आगे हिम्मत तोड़ती दिव्यांग को जब मां का सहारा मिला तो बस सोनिया की दुनिया ही बदल गई. सोनिया ने फिर हर चुनौतियों का डटकर सामना किया और खेल की दुनिया में राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम (Sonia Chaudhary made special identity in sports world) रोशन किया. सोनिया ने अब तक शॉटपुट, डिस्कसथ्रो, बैडमिंटन और क्रिकेट में देश के लिए कई मेडल जीत चुकी हैं.
जन्म से पैर से दिव्यांग सोनिया चौधरी को बचपन से ही हर बच्चे की तरह खेलने का शौक था. लेकिन जब भी सामान्य बच्चों के साथ खेलने जाती तो वह उसे धक्का मारकर गिरा देते. समाज के लोग भी दुत्कारते, पिता की भी डांट खानी पड़ती. ऐसे में सोनिया की मां अपनी बेटी का संबल बनीं और उसका हौसला बढ़ाया. मां का साथ मिला तो मानो सोनिया चौधरी को पंख लग गए. एक-एक कदम आगे बढ़ाते हुए सोनिया ने न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भरतपुर और अपने देश का मान बढ़ाया. जिले के नदबई क्षेत्र के गांव उसेर के किसान की बेटी सोनिया अब तक शॉटपुट, डिस्कसथ्रो, बैडमिंटन और क्रिकेट में देश के लिए कई मेडल जीत चुकी हैं. साथ ही फिल्मों में देश का नाम रोशन कर चुकी सोनिया चौधरी दिव्यांग बच्चों की मदद करना चाहती हैं.
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लोग ताने देते थे.. दिव्यांग है, कुछ नहीं कर सकती
पैरा खिलाड़ी सोनिया चौधरी ने बताया उसकी प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव उसेर में ही हुई थी. बचपन में वह गांव के बच्चों के साथ खेलने जाती थी तो वे उसके साथ बुरा व्यवहार करते थे. समाज के लोग भी उसके पिता को बोलते कि दिव्यांग बेटी है इसे घर में रखो ये कुछ नहीं कर सकती. समाज और पिता के तानों के बाद मां वीरमति ने हौसला बढ़ाया. सोनिया ने बताया कि मां ने सोनिया को पढ़ने के लिए भरतपुर शहर अपने मामा के घर भेज दिया.