भरतपुर. 1999 में कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीरेंद्र सिंह अपने पीछे पत्नी गायत्री देवी और डेढ़ वर्षीय पुत्री ज्योति और 3 वर्षीय पुत्र चंद्रभान को छोड़ गए थे, जहां पत्नी गायत्री देवी ने अपने शहीद पति वीरेंद्र सिंह के शव की अर्थी को कंधा देते हुए शमशान तक पहुंची थी. उस वक्त यह चर्चा का विषय बन गया था क्योंकि तब ऐसा कम ही देखने को मिलता था. कारगिल वॉर को अब 20 वर्ष पूरे हो चुके हैं और शहीद वीरेंद्र सिंह के छोटे बच्चे अब बड़े हो चुके हैं जो देश के लिए शहादत पर अपने पिता पर गर्व करते हैं. हालांकि एक पिता की कमी उनको जरूर खलती होगी लेकिन परिवार के सदस्यों ने पिता की कमी पर मरहम लगाते रहे.
राजस्थान के भरतपुर में अजान गांव के निवासी वीरेंद्र सिंह 11 राज राइफल यूनिट में भर्ती थे जो पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे. उस समय उनके दो बच्चे थे जो उस समय अपने पिता की शहादत से भी बेखबर थे लेकिन पति के शहीद होने के बाद बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी उनकी पत्नी गायत्री देवी पर आ गई. शहीद वीरेंद्र के पुत्र चंद्रभान अब बड़े हो चुका है जो बीएससी पूरी करके सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी कर रहे है. चंद्रभान प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहता है हालांकि उसने आर्मी में जाने का सपना भी देखा था लेकिन वह सपना सिविल सर्विसेज का बन गया.