अलवर.सरिस्का में बाघों का ही नहीं बल्कि लुप्तप्राय हो चुके गिद्धों का कुनबा भी तेजी से बढ़ा है. तीन-चार साल पहले तक सरिस्का में गिद्ध लुप्तप्राय हो चुके थे. जबकि अब कई गिद्ध सरिस्का जंगल के जोहड़ और पोखरों पर बैठे दिखाई देते हैं. इन दिनों भर्तृहरि के पास सिहाली जोहड़ा पर गिद्ध नजर आ जाते हैं.
4 साल पहले यहां करीब 50 गिद्ध होने का अनुमान था. फिलहाल सरिस्का में गिद्धों की अनुमानित संख्या 500 के पार पहुंच चुकी है. इसमें कई प्रवासी गिद्ध भी शामिल हैं. जबकि 5 स्थानीय प्रजातियों के गिद्ध शामिल हैं.
सरिस्का में माइग्रेटरी प्रजाति के यूरेशियन ग्रिफोन और रेड हैडेड गिद्ध दिखाई दे रहे हैं. यूरेशियन ग्रिफोन के पंख पर सफेद बाल होते हैं. जबकि रेड हैडेड गिद्ध का मुंह लाल होता है. सरिस्का मे लंबी चोंच वाला गिद्ध सबसे ज्यादा पाया जाता है. गिद्धों के सरिस्का में कई रेस्टिंग प्वाइंट हैं. इनमें गोपी जोहरा, देवरा चौकी, टहला में मानसरोवर बांध, पाण्डूपोल, काली पहाड़ी के पास खड़ी चट्टानें शामिल हैं.
गिद्ध इन प्वाइंट पर ऊंची उड़ान के बाद आराम करते हैं. वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान में देश में 9 प्रजाति के गिद्ध हैं. इनमें 7 प्रजाति के गिद्ध राजस्थान में पाए जाते हैं. सरिस्का में भी इनमें से ज्यादातर प्रजातियों के गिद्धों की मौजूदगी की पुष्टि हुई है. जंगल में पारिस्थितिकी संतुलन के लिए गिद्ध होना जरूरी है. शिकार के बाद बचे मांस और अवशेष खाकर गिद्ध जंगल को साफ रखते हैं. इसी वजह से गिद्ध को जंगल का प्राकृतिक सफाईकर्मी कहा जाता है. सरिस्का में बाघों के पुनर्वास के बाद गिद्धों की संख्या बढ़ी है.