राजगढ़ (अलवर). राजा महाराजाओं के समय से निकलती आ रही ढोला-मारू की सवारी आज भी राजगढ़ में गाजे-बाजे के साथ गुलाल उड़ाते मस्तानों की टोलियों के साथ निकली. सालों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन एक बार फिर से राजगढ़ में शान से हुआ. रियासतकाल से होली की संध्या पर ढोला-मारू और कई तरह के स्वांग निकाले जाते रहे हैं.
ढोला-मारु और विभिन्न प्रकार के स्वांग का जुलूस एक बार फिर से राजगढ़ कस्बे में आकर्षक का केंद्र रहा. ढोला-मारू सवारी देखने के लिए शहर सड़कों और छतों पर उमड़ पड़ा. ढोला-मारू की सवारी कस्बे के बारलाबास नामदेव समाज धर्मशाला से शुरू होकर गोविंद देव जी मंदिर, चौपड़ बाजार, अनाज मंडी, माचाड़ी चौक, मालाखेड़ा बाजार, काकवाड़ी बाजार, गोल सर्किल होते हुए बारलावास पहुंची.
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रंग में रंगे होली के दीवानों के साथ ढोला-मारू की सवारी निकाली गई और होली का त्यौहार सांप्रदायिक सौहार्द और मस्ती के बीच मनाया गया. राजगढ़ में ढोला-मारू की सवारी के नाम से चले आ रहे होली और धुलण्डी के अवसर पर निकाले जाने वाले जुलूस में एक ऊंट पर ढोला-मारू की बारात में होली के रंग में रंगे नौजवान नाचते गाते हुए जुलूस में ऊंट पर बैठ कर शहर का चक्कर लगाने निकले तो बैंड की धुनों में होली के रंग में रंगे नौजवान नाचते गाते चल रहे थे.
वहीं, राजा महाराजाओं की नगरी रहा राजगढ़ और होली पर जुलूस के रुप में निकलने वाले ढोला-मारू की सवारी सदा ही कस्बे का आकर्षक का केंद्र रही है. भाईचारे के रूप में निकाले जाते रहे इस जुलूस पर जगह-जगह पुष्प वर्षा के साथ स्वागत किया गया. ढोला-मारू की सवारी अब बारलावास समिति की ओर से निकाला जाता है. इसमें पूरे कस्बे का सहयोग होता है.
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पहले ढोला-मारू महोत्सव का तीन दिवसीय कार्यक्रम होता था. जिसमें प्रथम दिन का कार्यक्रम चाक पूजन का होता था. इसमें केवल पुरुष भाग लेते थे. समय के साथ अब यह एकदिवसीय ही ढोला-मारू की सवारी का रह गया है.