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SPECIAL: सिक्योरिटी गार्ड की कौन सुनेगा व्यथा, कम वेतन व संसाधनों के अभाव में ड्यूटी करने को मजबूर - security gaurd of alwar

अलवर में लॉकडाउन में लोग घरों में बंद हैं. वहीं सिक्योरिटी गार्ड ड्यूटी करने को मजबूर हैं. लोगों से सबसे ज्यादा संपर्क होने के कारण इन पर कोरोना का खतरा मंडरा रहा है. ऐसे में ये और इनका परिवार डर के साये में रहने को मजबूर हैं.

अलवर न्यूज  covid-19
सिक्योरिटी गार्ड ड्यूटी करने को मजबूर

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Published : Apr 13, 2020, 12:22 PM IST

अलवर. देश में लगातार कोरोना वायरस का प्रभाव बढ़ रहा है. आए दिन नए पॉजिटिव मरीज मिल रहे हैं. इन सबके बीच पुलिसकर्मी, स्वास्थ्य कर्मी व पत्रकार दिन रात काम करके अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. ऐसे में सिक्योरिटी गार्डों का एक ऐसा वर्ग भी है, जो संसाधनों का अभाव होने के कारण मजबूरी में अपनी जान पर खेलकर 24 घंटे ड्यूटी करने के लिए मजबूर है. इनकी परेशानी ना तो कोई सुनने वाला है, ना ही कोई मदद करने वाला है.

सिक्योरिटी गार्ड ड्यूटी करने को मजबूर

देश में कोरोना वायरस का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है. सरकार के तमाम प्रयास के बाद भी पॉजिटिव मरीज मिल रहे हैं. आमजन लॉकडाउन में घर में बैठने को मजबूर है. इन सबके बीच देश हित में अपनी जिम्मेदारी समझते हुए कुछ लोग ड्यूटी कर रहे हैं. इन लोगों में सिक्योरिटी गार्ड भी हैं, जो मैदान में डटे हैं. ये कम वेतन में 24 घंटे ड्यूटी करने को मजबूर हैं. सिक्योरिटी गार्ड को 5 हजार से लेकर 12 हजार तक का वेतन मिलता है. एक बार में 12 घंटे की ड्यूटी करनी पड़ती है.

इस बीच पूरी जिम्मेदारी सिक्योरिटी गार्ड की होती है. मॉल, सोसाइटी, बैंक, ATM, बाजार, हॉस्पिटल, मंदिर सभी जगहों पर सिक्योरिटी गार्ड 24 घंटे पहरा दे रहे हैं लेकिन इनकी मजबूरी सुनने वाला कोई नहीं है. कुछ गार्डस का कहना है कि लॉकडाउन के बीच जगह-जगह पुलिसकर्मी भी इनको रोकते हैं. सिक्योरिटी गार्ड की ड्यूटी ऐसी होती है कि दिन भर वो लोगों के संपर्क में आते हैं. ऐसे में कम वेतन में अपना और अपने परिवार का पेट भरने की मजबूरी में ये लगातार सभी तरह के हालात में ड्यूटी करने को मजबूर हैं.

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अलवर जिले की बात करें तो जिले में छोटी बड़ी करीब 12 हजार से ज्यादा औद्योगिक इकाइयां हैं. इसके अलावा हजारों की संख्या में ऑफिस, बैंक, सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं संचालित होती हैं. अलवर औद्योगिक हब है. ऐसे में यहां पर सुरक्षा गार्डों की जरूरत अन्य जिलों की तुलना में ज्यादा रहती है. एक आंकड़े पर नजर डालें तो अलवर शहर, भिवाड़ी, नीमराणा, बहरोड़, किशनगढ़बास, खैरथल, मुंडावर, बानसूर, थानागाजी, खेरली, कठूमर सहित शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन 18 हजार से अधिक गार्ड विभिन्न जगहों पर ड्यूटी देते हैं. इनमें भिवाड़ी, नीमराना, शाहजहांपुर, तिजारा, अलवर की सैकड़ों सोसाइटियां भी शामिल हैं.

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ईटीवी भारत की टीम ने सुरक्षा गार्डों से बात की. सुरक्षा गार्डों ने कहा कि मजबूरी में उनको काम करना पड़ता है. ठेकेदार बीच में कमीशन लेता है. संस्था भी वेतन भी कम देती है. हालांकि, कैमरे के सामने संसाधनों की कमी के सवाल पर सुरक्षा गार्डों ने चुप्पी साधी रखी लेकिन उनकी हालत देखकर यही पता चलता है कि उनके ठेकेदार व संस्था ना तो उन्हे मास्क देती है, ना ही सैनिटाइजर.

वहीं गार्ड किसी भी तरह के संक्रमण को रोकने के लिए अपने परिवार से भी दूरी बना रखकर रहे हैं. इनके घर लौटने पर परिवार को कोरोना का संक्रमण का डर भी सता रहा है. ऐसे में अलवर में सिक्योरिटी गार्ड हर पल अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं.

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