अलवर: जिले में मौसमी बीमारियां आम लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रही हैं. सरकारी व निजी अस्पतालों में वार्ड Full हैं. ओपीडी (OPD) में मरीजों की लंबी कतार लग रही हैं. गीतानंद शिशु अस्पताल (Geetanand Shishu Hospital) में आमतौर पर ढाई सौ से 300 मरीजों की ओपीडी रहती है लेकिन इस समय 800 से 1000 मरीज ओपीडी में इलाज के लिए पहुंच रहे हैं.
अलवर में मौसमी बीमारी बेकाबू, Children's Hospital में एक बेड पर भर्ती है तीन मरीज
अलवर (Alwar) में कोरोना (Corona) का प्रभाव कम है. लेकिन मौसमी बीमारियां कहर बरपा रही है. डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया के साथ खांसी जुकाम बुखार के मरीजों की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई है. अलवर के गीतानंद शिशु अस्पताल (Geetanand Shishu Hospital) में ओपीडी (OPD) में आने वाले मरीजों की संख्या में तीन गुना से ज्यादा बढ़ोतरी दर्ज हुई है. तो वही अस्पताल के वार्ड में एक बेड पर तीन व चार बच्चे भर्ती हैं. ऐसे में स्वास्थ्य विभाग के सभी इंतजाम फेल नजर आ रहे हैं
अस्पताल में 45 वार्ड हैं. जिन पर 200 मरीज बच्चे भर्ती है. एक बेड पर 3 से 4 मरीज भर्ती हैं. इसी तरह से शहर के सभी निजी अस्पताल फुल हैं. मरीजों को बेड नहीं मिल रहा है. तो वहीं ग्रामीण क्षेत्र सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के भी हालत खराब है.
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डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया के साथ खांसी जुकाम बुखार दस्त उल्टी के मरीजों की संख्या कई गुना अचानक बढ़ गई है. डॉक्टर लगातार बच्चों को घरों में रखने की सलाह दे रहे हैं. विशेषज्ञों की मानें तो बीते 2 महीने के दौरान इस समय मौसमी बीमारियां पीक पर हैं.आगे यही हालात रहे तो एक से डेढ़ माह तक मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज हो सकती है.
जिले में नहीं है फॉगिंग की व्यवस्था
अलवर (Alwar) जिले में फागिंग (Fogging) की व्यवस्था पूरी तरह से फेल हो चुकी है. अलवर शहरी क्षेत्र में नगर परिषद की तरफ से फॉकिंग कराई जाती है. जबकि ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य विभाग (Health Department) पर फॉकिंग की जिम्मेदारी रहती है. ग्रामीण क्षेत्र में कुछ जगहों पर होगी की जानकारी मिल रही है. लेकिन शहरी क्षेत्र में फागिंग के कोई इंतजाम नहीं है. इसीलिए हालात ज्यादा खराब हो रही है. स्वास्थ्य विभाग की टीम भी जागरूकता कार्यक्रम चलाने में विफल हो रही है.
अस्पतालों में नहीं है बेड
अलवर जिले में बच्चों के करीब 15 अस्पताल (Children Hospital) हैं. सभी अस्पताल फुल हैं मरीजों को बेड नहीं मिल रहे हैं. एक बेड पर दो से तीन मरीजों का इलाज चल रहा है. सरकारी अस्पताल के साथ निजी अस्पताल की भी इसी तरह के हालात हैं. निजी अस्पताल में मरीजों की लाइन नहीं टूट रही है.
डॉक्टरों की सलाह
विशेषज्ञों की मानें तो बच्चों को फुल बाजू के कपड़े पहनने चाहिए. घर में कहीं पर पानी जमा नहीं होने दे. बच्चे अगर शाम को पार्क में खेलने जा रहे हैं तो वहां भी सावधानी बरतें. इसके अलावा घर के आसपास साफ सफाई रखें. नाली में काला तेल डालें. कूलर परिंडे घर की छत पर रखे सामान की सफाई करें. किसी भी तरह की दिक्कत होने पर बिना डॉक्टर की सलाह के दवाई ना लें.
4 से 5 दिनों में ठीक हो रही है मरीज
बच्चों का इलाज करने वाले डॉक्टरों ने बताया कि मौसमी बीमारियों का प्रभाव जरूर ज्यादा है.लेकिन चार से 5 दिन इलाज लेने के बाद बच्चे ठीक हो रहे हैं. समय रहते इलाज लेना आवश्यक है. माता-पिता किसी भी तरह की लापरवाही बच्चों के इलाज में ना बरतें.