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रणथंभौर और मुकुंदरा से अलग और खास है सरिस्का टाइगर रिजर्व, जानिए

राजस्थान का सरिस्का टाइगर रिजर्व रणथंभौर और मुकुंदरा से कई मायनों में अलग है. सरिस्का प्रदेश का अकेला ऐसा टाइगर रिजर्व है, जहां चीतल के साथ ही नीलगाय और सांभर की संख्या बहुत ज्यादा है. सरिस्का में बाघों का कुनबा भी बढ़ रहा है. आइये जानते हैं सरिस्का की वो खूबियां, जो इसे बेहद खास बनाती है.

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रणथंभौर और मुकुंदरा से अलग और खास है सरिस्का टाइगर रिजर्व

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Published : Jul 15, 2021, 7:04 PM IST

Updated : Jul 15, 2021, 7:17 PM IST

अलवर:सरिस्का टाइगर रिजर्व भारत में प्रसिद्ध राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है. साल 1955 में इसे वन्यजीव आरक्षित भूमि घोषित किया गया था. 1978 में बाघ रिजर्व परियोजना का दर्जा दिया गया. यह 886 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. सरिस्का में बाघ, चीता, तेंदुआ, जंगली बिल्ली, कैरकल, धारीदार बिज्जू, सियार, स्वर्ण चीतल, सांभर, नीलगाय, चिंकारा, जंगली सुअर, खरगोश, लंगूर के था ही पक्षी और सरीसृप के बहुत सारे वन्यजीवों की भरमार है.

साल 2005 में सरिस्का बाघ विहीन हो गया था. उसके बाद बाघ पुनर्वास कार्यक्रम के तहत साल 2008 में 5 बाघ रणथंभौर से अलवर में एयर लिफ्ट करके लाए गए. फिलहाल सरिस्का में 10 बाघिन, 6 बाघ और 7 शावक हैं. लगातार सरिस्का में बाघों का कुनबा बढ़ रहा है.

रणथंभौर और मुकुंदरा से अलग और खास है सरिस्का टाइगर रिजर्व

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विशेषज्ञों की मानें तो सबसे ज्यादा घना जंगल सरिस्का में है. सरिस्का में सांभर, चीतल और नीलगाय की भरमार है. ऐसे में बाघ और पेंथर को शिकार करने में सुविधा रहती है. सरिस्का में पानी के भी पर्याप्त इंतजाम हैं. प्राकृतिक इंतजाम होने की वजह से वन्यजीवों के लिए घने जंगल में भोजन-पानी का इंतजाम आसानी से हो जाता है.

इसी तरह की कई खूबी सरिस्का में हैं, जो इसको अन्य टाइगर रिजर्व से अलग करती हैं. सरिस्का के जंगल में वन्यजीवों की भी कई विलुप्तप्राय प्रजाति हैं. यहां बास, कत्था, पीपल, बरगद, सागवान सहित सभी तरह के पेड़ पाए जाते हैं.

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अलवर के सरिस्का के घने जंगलों में 29 गांव बसे हुए हैं. इनमें से करीब 6 गांव के लोग अन्य जगहों पर विस्थापित किए जा चुके हैं. जबकि 3 गांवों को विस्थापित करने की प्रक्रिया लगातार जारी है. बीते दिनों भी बड़ी संख्या में परिवार विस्थापित किए गए हैं. ग्रामीणों के विस्थापित होने से जंगल क्षेत्र में जंगली जीवों को विचरण करने के लिए खुला स्थान मिला है.

अलवर के सरिस्का में 500 से ज्यादा पैंथर हैं. लगातार पैंथरों की संख्या बढ़ रही है. सरिस्का के अलावा बाला किला बफर जोन में भी पैंथरों की हलचल रहती है. यहां आने वाले पर्यटकों को बाघ के साथ पैंथर का भी दीदार होता है. पर्यटकों को पैंथर की साइटिंग होती है. जिसको देखकर पर्यटक खुश रहते हैं.

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सरिस्का दिल्ली-जयपुर के मध्य में स्थित है. सड़क और रेल मार्ग से जुड़े होने के कारण साल भर यहां पर्यटकों के आने का सिलसिला लगा रहता है. हजारों की संख्या में पर्यटक घूमने के लिए आते हैं. रोजाना डेढ़ से दो हजार पर्यटक आमतौर पर यहां आते हैं. सफारी का आनंद लेते हैं. सरिस्का क्षेत्र का जंगल घना होने के कारण पर्यटन यहां घूमते हैं और सफारी का आनंद लेते हैं.

अलवर में सरिस्का के अलावा बाला किला बफर जोन में भी सफारी की सुविधा है. यहां पर्यटकों को बाघ और पैंथर की साइटिंग होती है. बड़ी संख्या में पर्यटक घूमने के लिए आते हैं. जंगल क्षेत्र के लिए अलवर विशेष स्थान रखता है. सरिस्का क्षेत्र में वन्यजीवों की भी कई ऐसी प्रजातियां हैं, जो कहीं और नहीं मिलती है.

Last Updated : Jul 15, 2021, 7:17 PM IST

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