राजस्थान

rajasthan

ETV Bharat / city

Exclusive : अलवर की ऊषा को पद्मश्री, मैला ढोने का काम छोड़ सामाजिक सरोकार से दे रहीं लाखों महिलाओं को प्रेरणा

गणतंत्र दिवस से पूर्व हुई पद्मश्री पुरस्कार की घोषणा में अलवर की ऊषा का नाम भी हैं, जो मैला ढोने का काम करती थीं. लेकिन, 2003 में सुलभ संस्था से जुड़ने के बाद उनका जीवन बदल गया. अब वो ना सिर्फ आत्मनिर्भर हैं, बल्कि अपने जैसी अन्य महिलाओं को भी प्रेरणा दे रही हैं. आईए जानते हैं ऊषा की कहानी-

अलवर न्यूज, alwar news
अलवर में मैला ढोने वाली ऊषा को सोमवार को मिलेगा पद्मश्री

By

Published : Jan 26, 2020, 2:14 AM IST

Updated : Jan 26, 2020, 2:43 PM IST

अलवर.गरीब परिवार में मैला ढोने वाली ऊषा को सोमवार को पद्मश्री अवार्ड से नवाजा जाएगा. पद्मश्री अवार्ड के लिए ऊषा चौमर के नाम की घोषणा 25 जनवरी को हुई. देर रात परिवार के लोगों को इसकी जानकारी मिली. उसके बाद से लगातार परिवार में खुशी का माहौल है.

अलवर में मैला ढोने वाली ऊषा को सोमवार को मिलेगा पद्मश्री

वहीं परिवार के साथ जिन लोगों को भी अवार्ड की जानकारी मिल रही है, वो लोग ऊषा को बधाई देने के लिए उनके घर पर पहुंच रहे हैं. हालांकि, इससे पहले भी उन्हें देश-विदेश में कई अवार्ड मिल चुके हैं.

10 साल की उम्र में हुआ विवाह
ऊषा चौमर का विवाह 10 साल की उम्र में हुआ था, उनके दो बेटे पर एक पुत्री है. मैला ढोने के कारण उन्हें अछूत के तौर पर देखा जाने लगा. ऊषा की जिंदगी में बदलाव तब आया, जब वो 2003 में सुलभ इंटरनेशनल संस्था से जुड़ी.

पढ़ें- जयपुर के मुन्ना मास्टर होंगे पद्मश्री से सम्मानित...जानें उनके व्यक्तित्व की रोचक बातें

सुलभ इंटरनेशनल से जुड़ने के बाद उन्होंने मैला ढोने का काम छोड़ा. इस काम का उन्होंने विरोध किया. उन्होंने लोगों को स्वच्छता के लिए प्रेरित भी किया. इस कार्य के लिए उन्हें ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ साउथ एशियन स्टडीज के सालाना सम्मेलन में स्वच्छता और भारत में महिला अधिकार विषय पर संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था. ऊषा ने इसके बाद अपनी जैसी अन्य महिलाओं को साथ लेकर आत्मनिर्भर होकर हाथ से बनी हुई चीजों को बनाने का काम शुरू किया.

17 साल से कर रही महिलाओं को जागरूक
बता दें कि 17 साल से ऊषा महिलाओं को मैला ढोने के कार्य का विरोध कर जागरूक करने का प्रयास कर रहीं हैं. इससे पहले भी उन्हें स्वच्छता के क्षेत्र में बेहतरीन योगदान के लिए कई अवार्ड मिल चुके हैं. वहीं वे वाराणसी में अस्सी घाट की सफाई कार्य में भी शामिल हुई थी, जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में उनको पुरस्कार दिया था. तो वहीं 2017 में चौमर ने वेद मंत्रों का पाठ करना सीखा.

कई देशों में मिले अवार्ड

ऊषा काम के सिलसिले में इलाहाबाद, उज्जैन भी जा चुकी हैं. इसके अलावा अमेरिका, पेरिस, दक्षिण अफ्रीका, लंदन सहित कई देशों में अवार्ड प्राप्त कर चुकी हैं. कुछ समय पहले अलवर की जगन्नाथ मंदिर में इन महिलाओं से सामूहिक आरती कराई गई थी. बाद में बस्ती में सामूहिक भोज का आयोजन भी किया गया. ऊषा 'कौन बनेगा करोड़पति' कार्यक्रम में स्पेशल गेस्ट के रूप में भी आमंत्रित हो चुकी हैं.

पढे़ें- पद्म श्री पुरस्कार की घोषणा, प्रदेश के 5 लोगों का नाम भी शामिल

उन्होंने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में कहा कि उन्हें अवार्ड मिलने की काफी खुशी है. पहले उनका जीवन नर्क से भी बदतर था, लेकिन अब उन्हें जीना अच्छा लगता है और वो अब जीना चाहती हैं. उन्होंने कहा कि मैला ढोने का काम गलत है. लोग उनको हीन भावना और छुआछूत की दृष्टि से देखते थे, लेकिन अब वह समाज के साथ मिलकर काम कर रहे हैं, तो वहीं उनके बनाए हुये सामान अलवर सहित आसपास के शहरों में भी बिकने के लिए जाते हैं.

Last Updated : Jan 26, 2020, 2:43 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details