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SPECIAL : कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आते ही न हों परेशान...सीटी स्कैन, चेस्ट X-Ray और रेमडेसीविर इंजेक्शन की सब को नहीं है जरूरत - Remedicivir Injection

बिगड़ते हालात को देखते हुए ईटीवी भारत ने कोविड विशेषज्ञ डॉक्टर से सीधी बात की. इस दौरान आम लोगों से जुड़े हुए वो सवाल किए जो प्रत्येक व्यक्ति से जुड़े हुए हैं. अगर आपके घर या आस-पास कोई भी कोरोना पॉजिटिव मरीज है. तो यह खबर आपके लिए फायदेमंद है.

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Published : Apr 26, 2021, 7:49 PM IST

अलवर. वरिष्ठ फिजीशियन और कोरोना विशेषज्ञ डॉ अशोक महावर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. जिसमें उन्होंने कहा कि रिपोर्ट पॉजिटिव आने के ये मतलब नहीं है कि आपको अस्पताल में भर्ती हो जाना है. कोविड संक्रमित मरीजों को डॉ महावर ने महत्वपूर्ण सलाह दी है.

देश में लगातार कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है. हालात खराब होने लगे हैं. अस्पताल में मरीजों को बेड नहीं मिल रहे. ऐसे में मरीज के पॉजिटिव आते ही उसके परिजन चेस्ट एक्सरे, सीटी स्कैन और रेमडेसीविर इंजेक्शन के इंतजाम में लग जाते हैं. इसके लिए घंटों लाइन में लगते हैं और परेशान होते हैं. बाजार में इंजेक्शन की कालाबाजारी भी होने लगी. ऐसे में आपको ये जानना जरूरी है कि सिर्फ कोरोना पॉजिटिव होने भर से चिंता करने की जरूरत नहीं है.

कोविड मरीजों की चार कैटेगिरी

डॉ अशोक महावर ने कहा कि मॉडरेट और सीवियर कैटेगरी के लोगों को क्वॉरेंटाइन इंजेक्शन की आवश्यकता होती है. इसके अलावा अन्य लोगों को इंजेक्शन के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. जबकि क्रिटिकल केस में कुछ मरीजों को यह इंजेक्शन दिया जाता है. जबकि कुछ को नहीं दिया जाता. ये मरीज के इलाज और उसके शरीर पर निर्भर करता है. उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस का काल 14 दिन का रहता है. अगर 10 दिन तक मरीज की हालत में सुधार नहीं होता तो क्रिटिकल केस हो सकता है.

उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में युवा भी क्रिटिकल पॉजिटिव आने लगे हैं. इसमें 25 से 30 साल तक की उम्र के युवा भी शामिल हैं. पहले क्रिटिकल श्रेणी में बुजुर्ग लोग आते थे. लेकिन अब उसमें बदलाव हुआ है. लोगों को जांच में इंजेक्शन के लिए परेशान होने की आवश्यकता नहीं है. डॉक्टर पर निर्भर रहता है कि वो मरीज की स्थिति को देखकर जांच कर आता है. वो इंजेक्शन की डिमांड करता है. केवल 3 से 4 प्रतिशत लोग सीवियर क्रिटिकल श्रेणी में रहते हैं. मॉडरेट श्रेणी के 6 प्रतिशत लोगों को सीवियर और क्रिटिकल श्रेणी में आने से बचना चाहिए. उसके लिए समय पर दवाई लें. जरूरत पड़ने पर ऑक्सीजन लें. खाने पीने का ध्यान रखें पौष्टिक आहार लें.

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कोरोना का चक्र

कोरोना का पूरा चक्र 14 दिनों का रहता है. शुरुआत के 10 दिन में अगर मरीज ठीक नहीं होता है तो उसकी क्रिटिकल स्थिति में पहुंचने की संभावना रहती है. 90% मरीज घर में या अस्पताल में क्वॉरेंटाइन होकर ठीक हो सकते हैं. 6 प्रतिशत मरीज मॉडरेट श्रेणी में पहुंचते हैं. इन 6 प्रतिशत में से 3 से 4 प्रतिशत मरीज सीवियर क्रिटिकल श्रेणी में पहुंचते हैं.

होम क्वॉरेंटाइन में रखें इन बातों का ध्यान

डॉ अशोक महावर ने बताया कि जो लोग होम क्वॉरेंटाइन हैं. उन लोगों से परिवार के अंदर लोगों को दूरी बनाने की आवश्यकता नहीं है. केवल उनका कमरा शौचालय अलग रखें. एक निर्धारित दूरी से उनसे बात की जा सकती है. ऐसी स्थिति में अपने लोगों को अकेला न छोड़ें, उनका साथ दें. मरीज खाने में अपने पसंद का भोजन कर सकता है. इस दौरान उसे पौष्टिक आहार लेने की आवश्यकता होती है.

रेमडेसीविर इंजेक्शन की नहीं हो सकेगी कालाबाजारी

रेमडेसीविर इंजेक्शन की बढ़ती डिमांड को देखते हुए अलवर सहित पूरे राजस्थान में सरकार ने इसके लिए सभी इंजेक्शनों को सरकारी अधिकार क्षेत्र में ले लिया है. जिला स्तर पर दो कमेटियां बनाई गई हैं. पहली कमेटी में 4 डॉक्टर शामिल किए गए हैं. उनकी अनुमति के बाद जिला कलेक्टर मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी और प्रमुख चिकित्सा अधिकारी की अनुमति के बाद हॉस्पिटल को रेमडेसीविर दिया जा रहा है. उसके लिए अस्पताल को एक फॉर्म भर कर देना होगा. उस फोन में मरीज का आधार कार्ड, अस्पताल की इंजेक्शन के लिए सहमति और मरीज के इलाज की रिपोर्ट लगाने होंगे. उसके आधार पर डॉक्टर देखकर मरीज को इंजेक्शन देंगे.

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बेड हो रहे फुल, ऑक्सीजन की है कमी

पूरे देश में सरकारी और निजी अस्पतालों में बेड फुल होने लगे हैं. ऑक्सीजन की किल्लत भी मरीजों को झेलनी पड़ रही है. लोगों ने घरों में सिलेंडर स्टॉक कर लिए हैं. लगातार बढ़ रही मरीजों की संख्या के चलते ऑक्सीजन की कमी हो रही है. हालांकि प्रशासन की तरफ से पूरे इंतजाम किए जा रहे हैं. ऑक्सीजन के सभी प्लांटों का राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने अधिग्रहण कर लिया है. सरकारी कर्मचारी और अधिकारी जरूरत के हिसाब से सभी निजी और सरकारी अस्पतालों को ऑक्सीजन दे रहे हैं. जिससे ऑक्सीजन में किसी भी तरह की कोई गड़बड़ी न हो सके. पुलिस सुरक्षा के बीच ऑक्सीजन एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाई जा रही है.

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