अलवर.महिला दिवस के मौके पर महिलाओं के सम्मान की बात आती है तो सबसे ऊपर नाम आता है अलवर की उषा चोमर का. कभी नालियों में से मैला ढोने वाली उषा आज सेलिब्रिटी बन चुकी हैं. उषा को देश का चौथा सबसे बड़ा सम्मान पद्मश्री मिला. उन्होंने अपने साथ-साथ अपने समाज की सैकड़ों महिलाओं का जीवन बदला.
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उषा चोमर के कारण आज महिलाएं सम्मान से जीवन जीती हैं और अचार, पापड़, बत्ती सहित अनेक सामान बनाती हैं. अलवर के लोग उन सामान को खरीदते हैं, जो लोग कल तक उन महिलाओं को अपने बराबर में नहीं बैठ आते थे वो लोग आज महिलाओं के हाथ से बने हुए सामान को काम में लेते हैं.
अलवर की रहने वाली उषा चोमर कुछ साल पहले नालियों से मैला ढोने का काम करती थी. उनके समाज में ज्यादातर सभी महिलाएं मैला ढोने का काम करते हैं. 10 साल की उम्र में उषा की शादी हुई. अपने माता-पिता के घर उषा मैला ढोने का काम करती थी और सबको देखती थी. वो शादी के बाद भी लगातार उसी काम में लगी रही. मैला ढोने होने के कारण उसे छूत के तौर पर देखा जाता था.
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उषा की जिंदगी में साल 2003 में उस समय बदलाव आया जब उषा सुलभ इंटरनेशनल संस्था से जुड़ी. इसके बाद उषा ने मैला ढोने का काम छोड़ा, साथ ही लोगों को स्वच्छता के लिए प्रेरित किया. अपने जैसे सैकड़ों महिलाओं को उन्होंने नया जीवन दिया. इसके बाद ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ साउथ एशियन स्टडीज ने स्वच्छता और भारत में महिला अधिकार विषय पर संबोधित करने के लिए उषा को आमंत्रित किया.
महिलाओं को कर रही जागरूक
17 सालों से उषा मैला ढोने के कार्य का विरोध करते हुए महिलाओं को जागरूक कर रही हैं. उषा को पहले भी कई सम्मान से नवाजा जा चुका है. उषा वाराणसी में अस्सी घाट की सफाई कार्य में शामिल हो चुकी है. इसके लिए देश के प्रधानमंत्री ने साल 2015 में उनको सम्मानित किया. साथ ही 2017 में वेद मंत्रों का पाठ करना सीखा और उसके बाद इलाहाबाद उज्जैन भी हो गई. इसके अलावा अमेरिका, पेरिस, दक्षिण अफ्रीका और लंदन भी जा चुकी हैं.
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बीते साल उषा को देश का चौथा सबसे बड़ा पुरस्कार पद्मश्री दिया गया. उन्होंने कहा कि यह उन महिलाओं का सम्मान है जो अपने परिवार के आगे टूट जाती हैं. ऐसे में महिलाओं को आगे आकर आवाज उठानी चाहिए. बेटियों को पढ़ाई करनी चाहिए क्योंकि एक बेटी दो घरों को संभालने का काम करती है.
पढ़ाई करने से लोगों की सोच बदलती है
ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए उषा ने कहा कि पढ़ाई करने से लोगों की सोच बदलती है. जीवन जीने का तरीका बदलता है. उन्होंने कहा कि जो लोग पहले उनको अपने पास नहीं बैठाते थे, आज वही लोग उनके साथ फोटो लेते हैं और उनके हाथ के बने हुए सामान काम में लेते हैं. ऐसे में साफ है कि लोगों की सोच में बदलाव हुआ है. आज लोग उनको सम्मान की नजरों से देखते हैं.
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महिलाएं किसी से कम नहीं है
उषा ने कहा कि उनके जैसी हजारों महिलाएं आज खुशी का जीवन जी रही हैं. महिलाएं किसी से कम नहीं है. महिलाएं जो चाहती हैं जीवन में वो कर सकती हैं. लोगों की सोच में अब बदलाव होने लगा है और महिलाओं को आगे आकर पढ़ना चाहिए. उन्होंने कहा कि एक महिला और एक युवती दो घरों को बदलने का काम करती है. ऐसे में उनका सम्मान करना चाहिए.
अब लोगों के सोच में बदलाव होने लगा है
महिला दिवस के मौके पर जाकर आप अपने घरों में महिलाओं का सम्मान करते हैं तो यह वाक्य में किसी बड़े सम्मान से कम नहीं है क्योंकि गांव में महिलाओं को सम्मान भरी नजरों से नहीं देखा जाता और युवतियों को आगे बढ़ने नहीं दिया जाता है. हालांकि अब लोगों की सोच में बदलाव होने लगा है.
उषा कहती हैं कि जो लोग उनसे बात नहीं करते थे, उनसे दूरी बनाते थे आज वही लोग उनके साथ बैठते हैं. उन्हें अपने पास बुलाते हैं और उनके हाथ से बने हुए सामान खरीदते हैं. यह बड़ा बदलाव है और सभी के जीवन में यह बदलाव आ सकता है केवल उसके लिए एक प्रयास करने की आवश्यकता है. उसने अपने साथ अपने जैसी अलवर में सैकड़ों महिलाओं का जीवन बदला है और आज सम्मान से जी रही है.