अलवर.कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच बड़ी संख्या में बच्चों को टीके नहीं लग पाए थे. ऐसे में जिन बच्चों का सुरक्षा चक्र टूट गया है, उन पर स्वस्थ्य सम्बन्धी खतरा मंडरा रहा है. इस कारण कोरोना के साथ कई अन्य जानलेवा बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया है. यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 के कारण पूरे दक्षिण एशिया में करीब 40 लाख 50 हजार बच्चों का नियमित टीकाकरण नहीं हो पाया है. हालांकि कोविड-19 से पहले भी ऐसी स्थितियां कुछ ज्यादा बेहतर नहीं थी, लेकिन अब यह ज्यादा चिंताजनक हो गई है.
'टीके जो लगने हैं जरूरी'
बच्चे के जन्म के साथ ही टीके लगने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. बच्चे को जानलेवा बीमारियों से बचाने के लिए हेपेटाइटिस, खसरा, निमोनिया, पोलियो सहित कई टीके लगाए जाते हैं. लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते मार्च, अप्रैल और मई माह में बच्चों का टीकाकरण नहीं हो सका.
ऐसे में पेंटावेलेंट, ओरल, पोलियो वैक्सीन, इंजेक्टबल पोलियो वैक्सीन, रोटा वायरस पीसीबी की प्रथम, द्वितीय, तृतीय और बूस्टर डोज के टीके की स्वास्थ्य विभाग की तरफ से समीक्षा की गई. इस दौरान काफी अंतर पाया गया. कुछ जगह पर बच्चों के टीके नहीं लगे, तो वहीं कुछ जगहों पर स्टाफ की उपस्थिति नहीं होने के कारण टीकाकरण का कार्यक्रम खासा प्रभावित होना पाया गया.
'भारत में टीकाकरण का समय'
- जन्म पर बीसीजी, ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV-0) और हैपेटाइटस बी
- छह हफ्ते पर- डीपीटी-1, इनएक्टिवेटिड पोलियो वैक्सीन (IPV-1), OPV-1, रोटावायरस-1, न्यूमोकॉकल कॉन्जुगेट वैक्सीन (PCV-1)
- 10 हफ्तों पर – डीपीटी-2, OPV-2, रोटा वायरस-2
- 14 हफ्तों पर - डीपीटी-3, OPV-3, रोटा वायरस-3, IPV-2, PCV-2
- 9-12 महीनों पर – खसरा और रूबेला-1
- 16-24 महीनों पर – खसरा-2, डीपीटी बूस्टर-1, OPV बूस्टर
- 5-6 साल – डीपीटी बूस्टर-2
- 10 साल – टेटनस टॉक्साइड/ टेटनस एंड एडल्ट डिप्थीरिया
- 16 साल -टेटनस टॉक्साइड/ टेटनस एंड एडल्ट डिप्थीरिया