अलवर.ड्राइविंग लाइसेंस (Driving License) बनवाने में आए दिन गड़बड़ी की शिकायतें मिलती हैं. साथ ही आरटीओ कार्यालय में दलालों के हस्तक्षेप और दलालों की ओर से पैसे लेकर लाइसेंस में गड़बड़ी के मामले लगातार सामने आते रहे हैं. लेकिन अब अलवर सहित प्रदेश के 11 परिवहन विभाग के रीजनल हेड क्वार्टर पर ड्राइविंग लाइसेंस बनवाते समय किसी भी तरह की गड़बड़ी नहीं हो सकेगी.
लंबे समय से प्रदेश में अटके ऑटोमेटिक ड्राइविंग टेस्टिंग ट्रैक अब शुरू हो चुके हैं. इन ट्रैक के शुरू होने के बाद कार, बाइक, ट्रक सहित अन्य वाहनों के ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने वाले लोगों को ऑटोमेटिक ड्राइविंग ट्रैक पर वाहन चला कर दिखाना पड़ रहा है. उसके बाद ही ड्राइविंग लाइसेंस बनाया जा रहा है. अलवर में अक्टूबर महीने से ट्रैक शुरू किया गया है, जिसके बाद अब तक 386 लाइसेंस बनाए गए हैं.
अजमेर में अभी ट्रैक शुरू नहीं हुआ है. इसके अलावा सभी जगहों पर यह ट्रैक शुरू हो चुका है. इस ट्रैक के शुरू होने से ड्राइविंग लाइसेंस में किसी भी तरह की गड़बड़ी नहीं हो सकती है. परिवहन विभाग के अधिकारियों की मानें तो इससे वाहन चलाने वाले लोगों को ही लाइसेंस मिलेगा और जिससे प्रदेश में होने वाले सड़क हादसों में कमी आएगी, साथ ही लाइसेंस बनवाने के दौरान ड्राइविंग ट्रैक पर ट्रैफिक नियमों का पालन करना भी आवश्यक है. ट्रैफिक नियम के साथ वाहन चलाने और ट्रैफिक नियमों का पालन करने वाले लोग ही टेस्ट पास करते हैं, उन लोगों का ही लाइसेंस बनाया जाएगा.
कैसे काम करता है ड्राइविंग ट्रैक...
ड्राइविंग ट्रैक पर एक कर्मचारी की ड्यूटी रहती है. जैसे ही अभ्यार्थी वाहन लेकर ट्रैक पर आता है. उसे ट्रैक के बारे में जानकारी दी जाती है. उसके बाद अभ्यार्थी को एक कार्ड दिया जाता है. ड्राइविंग ट्रैक पर जगह-जगह सेंसर लगे हुए हैं. ऐसे में चालक को रेड लाइट और सभी ट्रैफिक नियमों का पालन करते हुए वाहन चलाना पड़ता है. इस दौरान जगह-जगह लगे सेंसर पर अभ्यर्थी को कार्ड दिखाना पड़ता है. कार्ड को दिखाने के बाद ही पहला पड़ाव पार होता है. उसके बाद दूसरा पड़ाव शुरू होता है. पूरे ड्राइविंग ट्रैक पर कैमरे लगे हुए हैं. ऐसे में किसी भी तरह की कोई गड़बड़ी नहीं हो सकती है.