अलवर. अलवर जिले में कुल 1062.11 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र है, इसमें 973.45 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जमीन पर सरिस्का है. जबकि 721.74 वर्ग किलोमीटर जमीन वन विभाग के पास है.
दूर-दराज के गांव में वन विभाग की जमीन पर आए दिन अतिक्रमण होने और अवैध खनन की शिकायतें मिलती हैं. कई बार क्षेत्र के बंटवारे को लेकर रेवेन्यू, वन विभाग, सरिस्का व खान विभाग सहित अन्य सरकारी विभागों के अधिकारियों को कई तरह की दिक्कत होती हैं. यह पता नहीं चलता था कि यह घटना किस क्षेत्र में हुई है. लेकिन अब वन विभाग को अपनी एक-एक इंच जमीन की पहचान रहेगी. वन विभाग पूरे जिले में अपने रिकॉर्ड नए सिरे से तैयार कर रहा है. इसके तहत गोविंदगढ़, रैणी, राजगढ़, लक्ष्मणगढ़, तिजारा व कठूमर क्षेत्र में जमीन चिन्हित करने व पैमाइश करने का काम पूरा हो चुका है.
किशनगढ़बास, कोटकासिम, मुंडावर क्षेत्र में अभी काम चल रहा है. इसके बाद थानागाजी व अलवर क्षेत्र में काम होगा. आगामी 6 माह में यह काम पूरा हो जाएगा. अब तक की जांच पड़ताल में जमीन की पहचान में वन विभाग को बड़ा फायदा हुआ है. जिले में अब तक 60 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की जमीम वन विभाग में शामिल हुई है. यह जमीन रुंध क्षेत्र के नाम से अब तक बेकार पड़ी हुई थी. इस जमीन को न तो रेवेन्यू के रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता है, न ही किसी अन्य रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता था. ऐसे में पहली बार रुंध क्षेत्र की पैमाइश वन विभाग की ओर से कराई गई है. जिसको अपने क्षेत्र में शामिल किया गया है.
सर्वे का काम पूरा होने के बाद अलवर का पूरा वन विभाग डिजिटल हो जाएगा. प्रत्येक जमीन की जानकारी वन विभाग के कर्मचारी व अधिकारियों के पास रहेगी. जिन क्षेत्रों में अतिक्रमण हुआ है, वहां से अतिक्रमण हटाया जाएगा. साथ ही एक सॉफ्टवेयर सभी कर्मचारी व अधिकारियों के मोबाइल में रहेगा. जिसकी मदद से मिनटों में जमीन की पहचान हो सकेगी. साथ ही जमीन की नाप में भी किसी तरह की दिक्कत नहीं आएगी. वन विभाग के डीएफओ ने कहा कि अभी तक जमीन की पहचान करने में दिक्कत होती थी. वन विभाग के रिकॉर्ड खासे पुराने थे, रिकॉर्ड भी पूरे नहीं थे.
रुंध ने बढ़ाया वन क्षेत्र