अजमेर.जिंदगी एक संघर्ष की कहानी है लेकिन उसका सिकंदर वही होता है, जो सारी बाधाओं और कमियों के बावजूद हौसले से इससे लड़ने का माद्दा रखता हो. ऐसी ही एक संघर्ष की कहानी है अजमेर के आम का तालाब में रहनेवाली 32 साल की वंदना की. पोलियों ने जब वंदना को कमर से नीचे असक्षम कर दिया तो हार मानने के बजाय वो हौसलों से उठी और हाथ में उन्होंने स्केच और पेंट ब्रश थाम लिया. आज कैनवास पर जब वो पेंट करती हैं तो बड़े से बड़ा कलाकार उनकी पेंटिंग देख दांतो तले अंगुली दबा लेता है.
बिहार के खरोली गांव में नानी घर वंदना का 32 साल पहले जन्म हुआ लेकिन लापरवाही में पोलियों की एक्सपायर दवा के कारण वंदना के कमर के नीचे का शरीर पोलियों ग्रस्त है. पैरों से लाचार होने के बावजूद कुदरत ने उसके हाथों में गजब का हुनर दिया है. आश्चर्य की बात है कि वंदना चतुर्वेदी कभी स्कूल नहीं गई हैं और नहीं उन्होंने पेंटिंग और स्केच बनाने के कोई प्रोफेशनल ट्रेनिंग ली है लेकिन उनकी पेंटिंग बड़े-बड़े चित्रकारों को मात देती है.
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पैरों से लाचार होने के बावजूद वंदना ने जीवन से संघर्ष को नहीं छोड़ा. उन्होंने ठाना कि वो बोझ नहीं बनेगी और वो आत्मनिर्भर बनेगी. जिसके बाद उन्होंने ब्रश थाम कैनवास के साथ ही अपनी जिंदगी में भी रंग भरने शुरू कर दिए. उन्होंने 8 बरस पहले कागज पर स्केच बनाना शुरू किया. धीरे-धीरे वंदना ने मेहनत और अभ्यास से हूबहू स्केच बनाने लग गई.
बिना स्कूल गए और प्रशिक्षण के बनाती हैं शानदार तस्वीर
वंदना के पिता बताते हैं कि घर पर छोटे भाई-बहनों को पढ़ता देख उसने भी घर पर ही पढ़ाई की. वंदना के भाई-बहन सब अपने पैरों पर खड़े हो चुके है. उन्हें देख वंदना ने भी उठने की ठान कर कैनवास पर स्केच बनाने लगी. प्रशिक्षण के बिना अपनी प्रतिभा को अपनी मेहनत से वंदना तराश रही है.
सचिन पायलट का स्केच बनाकर किया भेंट