अजमेर. अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का उर्स 6 दिन तक मनाया जाता है. ख्वाजा गरीब नवाज के 808 वें सालाना उर्स में देश और दुनिया से आने वाले जायरीन की संख्या काफी बढ़ गई है. यू तो चांद की तारीख से लेकर छठी तक उर्स का विशेष महत्व है. लेकिन रजब की 5 तारीख से उर्स का महत्व और भी बढ़ जाता है.
अजमरे दरगाह में ही 6 दिन मनाया जाता है उर्स बताया जाता है कि 25 तारीख ( जमादिल आखिर ) वो दिन है, जब ख्वाजा गरीब नवाज ने इबादत के लिए अपने हुजरे में जाने से पहले अपने भाई ख्वाजा फकरुद्दीन गुर्देजी से कमरे की सफाई कर उसे बाहर से बंद करने के लिए कहा था और साथ में ये भी कहा कि हुजरे के दरवाजे को तबतक नहीं खोलना, जबतक की मेरे सभी मुरीद यहां ना आ जाएं.
इनमें खासकर ख्वाजा कुतुबुद्दीन के लिए उन्होंने कहा कि जब तक वो ना आएं, तबतक दरवाजा नहीं खोलना. ख्वाजा गरीब नवाज के हुक्म से सभी को इत्तला दी गई. इस दौरान ख्वाजा गरीब नवाज के भाई ख्वाजा फकरुद्दीन गुर्देजी 25 तारीख ( जमादिल आखिर ) से चांद रात तक हुजरे की दहलीज पर सिर रखकर सोते थे.
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दरगाह में खादिम सैयद पीर फकर काजमी बताते हैं कि चांद रात तक ख्वाजा फकरुद्दीन गुर्देजी को हुजरे के भीतर से सरसराहट का अहसास होता रहा. इसके बाद चांद रात से 5 रजब तक हुजरे से कोई आवाज नहीं आई. छठी के दिन तक किसी को नहीं पता था कि ख्वाजा गरीब नवाज ने दुनिया से पर्दा कर लिया. हुजरे का दरवाजा छठी को जौहर से पहले ख्वाजा गरीब नवाज के भाई ख्वाजा फकरुद्दीन गुर्देजी ने खोला था.
अजमेर काजमी बताते हैं कि हुजरे का दरवाजा खुलने पर सबने देखा कि ख्वाजा गरीब नवाज की पेशानी पर चंदन से आयत लिखी हुई थी, जिसमें लिखा था- 'हजा हबीबल्लाह वा माताफी हुब अल्लाह' यानि अल्लाह का दोस्त अल्लाह की राह में फना हो गया. उन्होंने बताया कि ख्वाजा गरीब नवाज की पेशानी पर लिखी आयत की लिखवाट आधी तर और आधी सुख चुकी थी.
अजमेर में 5 रजब हो चुका है और छठी शरीफ अगले दिन होगी. जब उर्स की आखिरी परंपरागत छोटे कुल की रस्म को निभाया जाएगा. इस दौरान केवड़ा गुलाब जल से पूरी दरगाह को धोया जाता है. इस रस्म में बड़ी संख्या में जायरीन मौजूद रहते हैं.