अजमेर.माता शीतला के दरबार में हर साल भक्तगण पूरी श्रद्धा के साथ शीश झुकाते हैं माता के दरबार में किसी भी जाति धर्म संप्रदाय को लेकर भेदभाव नहीं किया जाता यहां आने वाला हर व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ माता का भक्त है. अजमेर का प्रसिद्ध शीतला माता मंदिर जहां हर साल शील सप्तमी के दिन पूजन और मेले का आयोजन किया जाता है. वह इस बार कोरोना की वजह से अपनी वर्षों पुरानी परंपरा को तोड़ने जा रहा है.
150 साल है पुराना मंदिर:
इसके पीछे भी भक्तों के स्वास्थ्य और उनकी सुरक्षा एक बड़ा कारण बन कर उभरी है. हमने आज माता शीतला के प्राचीन मंदिर के बारे में जानकारी एकत्रित की तो पता चला काला बाग स्थित शीतला माता का मंदिर करीब डेढ़ सौ साल पुराना है इस मंदिर का निर्माण सेठ कान मल लोढ़ा ने अपनी माताजी गुलाब कंवर की याद में करवाया था गुलाब कंवर की याद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया मान्यता प्राप्त इस प्राचीन मंदिर अजमेर ही नहीं बल्कि आसपास के क्षेत्रों से भी श्रद्धालु माता के मंदिर में अरदास करने के लिए आते हैं. होली के बाद आने वाली शील सप्तमी पर रात को 12 बजे लोढ़ा परिवार की ओर से पारंपरिक रूप से माता शीतला को सर्वप्रथम भोग अर्पित किया जाता है.
लोढ़ा परिवार लगाता पहला भोगः
भोग अर्पण करने के साथ ही माता शीतला का आवाहन किया जाता है ताकि वह इस सर्दी गर्मी के मौसम में होने वाली मौसमी बीमारियों से सभी की रक्षा करें माता शीतला हाथ में मिट्टी का कलश और चांदी की झाड़ू लिए गधे पर सवार होती हैं मिट्टी का कलश शीतलता का प्रतीक है जबकि चांदी की झाड़ू स्वच्छता का संदेश देती है इस बार को रोना गाइडलाइंस के अनुसार लोढ़ा परिवार ने यह निर्णय किया है की 4 मार्च की सुबह 5 बजे रात्रि कर्फ्यू को ध्यान में रखते हुए माता को प्रथम भोग अर्पण किया जाएगा.