अजमेर.भारत देश तमाम किंवदंतियों के साथ हजारों रहस्य भी समेटे हुए हैं. आज हम बात करे हैं अजमेर के एक ऐसे पहाड़ कि जो अल्लाह के बंदे की याद में इतना रोया कि इंसान का दिल भी पसीज जाए. आज भी खुदा के बंदे की याद में इस पहाड़ के आंसू निकलते हैं. ये पहाड़ अल्लाह के बंदे से बेपनाह मोहब्बत की अनूठी मिसाल पेश करता है.
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सवाल ये है कि क्या कोई पहाड़ भी किसी की मोहब्बत में रो सकता है. क्या वाकई पत्थर के भी आंसू निकल सकते हैं. यकीन नहीं आता तो अजमेर के आना सागर पहाड़ी आइए और खुद देखिए कि ख्वाजा की याद में किस तरह पत्थरों से भी आंसू निकल रहे हैं. खास बात यह है कि हजारों की संख्या में जायरीन अजमेर चिल्ला ख्वाजा साहब के दर पर माथा टेकने आते हैं और इस पहाड़ के जैसी बंदगी का मौका मिलने की मन्नतें मांगते हैं.
ख्वाजा गरीब नवाज की याद में पहाड़ों से निकले आंसू 40 दिनों तक ख्वाजा ने की थी यहां इबादत
जी हां, हम बात कर रहे हैं उस पहाड़ की जहां पर बैठ कर नौ सौ बरस पहले ख्वाजा गरीब नवाज ने अल्लाह की इबादत की थी. बात उस वक्त की है जब ख्वाजा साहब अरब से इरान और अफगानिस्तान की सरहदों को पार करते हुए भारत आए थे. अल्लाह के हुकुम से गरीब नवाज ने चालीस दिन तक अजमेर की इस आना सागर पहाड़ी की गुफा में डेरा डाला और वहीं रहकर दिन-रात अल्लाह की इबादत की. वे अल्लाह की इबादत में इतने मसरूफ हो गए कि भूख-प्यास भी भूल गए और इसी बीच अल्लाह के हुक्म से अपने मुरीदों को देश के कोने-कोने मे आवाम की खिदमत के लिए भेज दिया.
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मान्यता है की अल्लाह का संदेश मिलने पर पहाड़ की गुफा छोड़कर ख्वाजा गरीब नवाज अपने एक मुरीद ख्वाजा कुतुबु़ददीन बख्तीयार काकी के साथ जाने लगे तभी अचानक ख्वाजा की मोहब्बत में कैद इस पहाड़ से आंसू टपकना शुरू हो गया. इस मंजर को देख लोग सोच में पड़ गए कि किसी की याद में क्या कभी पहाड़ के भी आंसू निकल सकते हैं. मगर यह भी सच है कि ये वो पहाड़ है जहां अल्लाह के नेक बंदे ने दिनरात इबादत की थी.
ख्वाजा की दरगाह पर जुटती है भीड़ इस बंदे की मोहब्बत में आज भी इन पहाड़ों के आंसू सूखे नहीं हैं. आज भी चिल्ला ख्वाजा की याद में सदाबहार पहाड़ी की गुफा में उसी तरह कायम है जैसे नौ सौ साल पहले थी. इस गुफा की दरोंदीवार को देखने से लगता है कि मानो पहाड़ों से आंसू टपकने ही वाले हों. ख्वाजा की याद में आंसू बहाने वाले इस पहाड़ को देखने और यहां मत्था टेकने के लिए आज भी देश के कोने-कोने से सैकड़ों की संख्या में जायरिन चिल्ला ख्वाजा साहब की दरगाह पर आते हैं.
अल्लाह का यह ऐसा करिश्मा है कि पहाड़ का दिल भी पसीज गया और खुदा के बंदे से अलग होने के गम में पत्थर भी रो पड़ा है. इस पहाड़ से निकलते आंसू ख्वाजा साहब की यादों को आज भी अपने दिल मे समेटे हुए हैं. यही वजह है कि हजारों की संख्या में अकीदतमंद इन आंसुओं के दीदार के लिए अजमेर आते हैं और अल्लाह से दुआ मांगते हैं कि उन्हें भी वैसी ही खिदमत का मौका मिले जैसे कि पहाड़ को मिला है.