अजमेर. ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स की रौनक परवान चढ़ी हुई है. दरगाह में आस्था का सैलाब उमड़ रहा है. देश और दुनिया से अकीदतमंदों के आने का सिलसिला जारी है. करोड़ों लोग ख्वाजा गरीब नवाज में अकीदा यानि विश्वास रखते है. यही वजह है कि ख्वाजा गरीब नवाज से जुड़ी हर चीज उनके लिए पवित्र और खास होती है. उर्स के मुबारक मौके पर ख्वाजा गरीब नवाज की मजार शरीफ को गुसल देने की रस्म होती है.
ख्वाजा गरीब नवाज का 808वां उर्स उर्स के मौके पर खिदमत के वक्त मजार-ए-शरीफ को जम-जम के पानी, इत्र, केवड़े और गुलाबजल से गुसल यानी (धोया) दिया जाता है. गुसल के बाद उस पानी को दरगाह के खादिम सहेज कर रखते हैं. दरगाह में खादिम सैयद जहूर चिश्ती ने बताया कि इस पानी को पीने से लोगों की दुख तकलीफे दूर होती है और उन्हें सफा मिलती है.
साउथ अफ्रीका से आए अकीदतमंद मोहम्मद रफी बताते है कि वो हर साल उर्स के मौके पर दरगाह आते है. उन्होंने बताया कि यह पानी बहुत ही पवित्र है. इसको पीने के बाद इंसान की जैसी नियत होगी उसे वैसा ही फल मिलता है.
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घी या तेल से बलाएं होती हैं दूर....
यूं तो ख्वाजा का नूर जायरीन को हमेशा यहां रूहानी फेज देता है. लेकिन लोगों का मानना है कि यहां ख्वाजा की बारगाह में चिराग रौशन करने से उनके जीवन का अंधियारा दूर होगा और उनकी दिली मुरादे पूरी होंगी. मान्यता है कि चिराग में डाले गए घी या तेल को सिर में लगाने और चिराग से बने काजल को आखों पर लगाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है और बीमारियों, बुरी बलाओं से सफा मिलती है.
दरगाह में चिराग जलाने को लेकर जायरीन में होड़ लगी रहती है. गुजरात के हिम्मतनगर से आई जसिया बीबी बताती हैं कि उनका अकीदा है कि दरगाह में चिराग जलाकर उसके घी, तेल और काजल से बीमारियों से सफा मिलती है. करोड़ों लोगों की ख्वाजा गरीब नवाज में गहरी आस्था है और यह आस्था ही है कि उर्स के मौके पर लाखों जायरीन अपने दुख तकलीफ भुलाकर जियारत के लिए आते है और ख्वाजा के नूर की बारिश में भीगकर अपने जीवन को रौशन करते हैं.