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अजमेर: प्राइवेट शिक्षण संस्थान की मांग... सेकेंडरी से ऊपर की कक्षाएं नियमित शुरू की जाए

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Published : Dec 20, 2020, 10:26 PM IST

अजमेर में राजस्थान प्राइवेट महासंघ ने उच्च न्यायालय के आदेशों का पालन करते हुए राज्य सरकार पर भेदभाव और असहयोग करने का आरोप लगाया है. अध्यक्ष कैलाश चंद शर्मा ने बताया कि राजस्थान प्राइवेट एजुकेशन महासंघ फैसले से संतुष्ट है. महासंघ पहले की तरह ही बच्चों को शिक्षा देने के साथ उसकी फीस वसूली के पक्ष में था, लेकिन राज्य सरकार ने इस गंभीर मामले में समय रहते कोई ठोस नीति नहीं बनाई.

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राजस्थान प्राइवेट महासंघ ने उच्च न्यायालय के फैसले का किया स्वागत

अजमेर.राजस्थान प्राइवेट महासंघ ने उच्च न्यायालय के आदेश का स्वागत किया है. वहीं, राज्य सरकार पर भेदभाव और असहयोग का आरोप लगाया है. राजस्थान प्राइवेट एजुकेशन महासंघ के सदस्यों ने शुक्रवार को राजस्थान उच्च न्यायालय की ओर से जारी किए गए स्कूली शिक्षा फीस संबंधी आदेश का स्वागत किया है.

इस संबंध में जानकारी देते हुए राजस्थान प्राइवेट एजुकेशन महासंघ के अध्यक्ष कैलाश चंद शर्मा ने बताया कि राजस्थान प्राइवेट एजुकेशन महासंघ फैसले से संतुष्ट है. महासंघ पहले की तरह ही शिक्षा बच्चों को दी जा रही है उसके साथ फीस वसूली के पक्ष में था, लेकिन राज्य सरकार ने इस गंभीर मामले में समय रहते कोई ठोस नीति नहीं बनाई.

राजस्थान प्राइवेट महासंघ ने उच्च न्यायालय के फैसले का किया स्वागत

शिक्षा विभाग की ओर से इस संबंध में पूर्व में भी कमेटी बनाकर फीस निर्धारण किया जाना था जिसे अभी तक अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है, इससे कई प्राइवेट शिक्षक संस्थान के बंद होने की नौबत आ गई. जब आज उच्च न्यायालय के आदेश अनुसार एक बार गेंद फिर से राज्य सरकार के पक्ष में आ गई है तो हमारी तो मांग अब यही है कि कम से कम सेकेंडरी से ऊपर की कक्षाएं नियमित शुरू की जाए ताकि ना तो बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो और ना ही प्राइवेट शिक्षण संस्थानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़े.

वहीं राज्य सरकार ने पिछले 10 माह में ना तो किसी भी प्राइवेट शिक्षण संस्थान को आर्थिक सहायता दी है और ना ही आरटीई का बकाया पैसा दिया गया है, इससे ग्रामीण अंचल के कितने शिक्षण संस्थान बंद हो चुके हैं ये राज्य सरकार की हठधर्मिता ही है कि अनेकों बार विभिन्न ज्ञापन के माध्यम से संज्ञान दिलाने के बावजूद भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया. अगर सरकार ने पहले ही इस संबंध में संज्ञान ले लिया होता तो आज पिछले 10 माह से आमजन को इस विपरीत कोरोना काल में इतना परेशान नहीं होना पड़ता. जब बड़े विद्यार्थियों की परीक्षा कराई जा सकती है तो नियमित उनकी कक्षाएं भी लगाई जा सकती है.

सरकारी शिक्षकों को तो नियमित वेतन मिल रहा है जिससे उन पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा, लेकिन निजी शिक्षकों की माली हालत काफी खराब हो चुकी है जिस तरफ तुरंत ध्यान देना चाहिए. यदि अब भी सरकार की ओर से इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो मजबूर होकर राज्य में जगह-जगह आंदोलन करने पड़ेंगे.

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वहीं अभिभावकों की राय जानी गई तो उन्होंने भी इसे पूर्वर्ती आदेश के अनुसार ही अस्पष्ट माना है. अजमेर से अभिभावक नेमीचंद ने जानकारी देते हुए बताया कि निजी स्कूल पहले ही सिर्फ ट्यूशन फीस के 70% की वसूली वाली बात पर सहमत हो जाते तो दोबारा इस संबंध में कोर्ट जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती. वर्तमान के आदेश में भी सरकार की ओर से कमेटी के गठन की बात की गई है जिससे मामले में और देरी होने की संभावना है अब यदि निजी स्कूल संस्था सर्वोच्च न्यायालय जाएगी तो अभिभावक भी मामले में केवियट लगा कर वहां भी अपना पक्ष रखेंगे. उच्च न्यायालय का फैसला काफी हद तक सही है, लेकिन इसकी तुरंत पालना की जानी चाहिए. मामले में जितनी देरी होगी तो बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में उतना ही नुकसान उठाना पड़ेगा.

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