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808वें उर्स: 2 करोड़ 94 लाख में छूटा दरगाह में देग का ठेका

अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में उर्स के दौरान देग पकवाने के लिए 10 साल का इंतजार करना पड़ता था. अब जायरीनों को लंबे इंतजार से छुटाकारा मिला जाएगा. दरगाह कमेटी ने देग की हर साल बुकिंग किए जाने का निर्णय लिया है.

deg for Urs, अजमेर न्यूज
अब हर साल होगी देग की बुकिंग

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Published : Feb 23, 2020, 8:49 AM IST

अजमेर. ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की बारगाह में बुलंद दरवाजे के समीप बनी छोटी और बड़ी देग का आय के लिहाजा से ठेका छोड़ा जाता है. जहां इस बार 808वें उर्स के दौरान 25 दिन के लिए 2 करोड़ 94 लाख रुपए में ठेका छोड़ा गया है. जिसके तहत इसी साल देग बुक करवाई जा सकेगी.

अब हर साल होगी देग की बुकिंग

बता दें कि सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में उर्स के दौरान देग पकवाने के लिए पहले तो 10 सालों तक इंतजार करना पड़ता था. उर्स की देग अब इसी साल से ही बुक करवाई जा सकेगी, जहां देग जिस साल पकवानी है. दरगाह कमेटी ने उर्स के दौरान देग पकवाने की बुकिंग के नियमों में अब काफी बदलाव कर दिया है. जहां 2021 के उर्स के लिए अप्रेल में ही बुकिंग प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है. ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में मुरीद अपनी मन्नत पूरी करने के लिए दरगाह में रखी बड़ी देग और छोटी देग पकवाते हैं. जहां 10 दिन चलने वाले उर्स के दौरान केवल छोटी देग ही रात के समय पकवाई जाती है.

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पहले उर्स की देग पकवाने के लिए अगले 10 साल तक की बुकिंग करवाई जाने की व्यवस्था चलन में होने से साल 2011 में ही 2020 तक के उर्स की देग बुक हो चुकी थी. जिससे कई इच्छुक जायरीन कतार में ही रह गए. इसे देखते हुए दरगाह कमेटी ने अब हर साल देखकर बुकिंग किए जाने का निर्णय लिया है.

देग में बनता है केवल शाहकाहरी भोजन

दरगाह की बड़ी देग में 120 मण और छोटी देग में 60 मण प्रसाद तबरुक के मीठे चावल के रूप में रोज पकाया जाता है. इस प्रसाद को हजारों जायरीन में बांटा जाता है. वहीं देग में केवल शाकाहारी भोजन ही पकाया जाता है. यहां तक कि लहसुन और प्याज भी इसमें नहीं डाला जाता. साथ ही देग में पकने वाली सामग्री निर्धारित होती है. जिसके बकायदा दरगाह कमेटी में सूची उपलब्ध है.

मुगल शासक ने बनवाई देग

ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में बड़ी देग मुगल बादशाह अकबर ने और छोटी देग बादशाह जहांगीर ने पेश की थी. अकबर के बेटे सलीम की पैदाइश पर आगरा से अजमेर तक पैदल चल कर यहां दरगाह में देग पकवाकर मन्नत उतारी गई थी.

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