अजमेर. सावन माह में सोमवती अमावस्या का धार्मिक महत्व है. अजमेर में सोमवती अमावस्या के दिन कई जगहों पर कल्पवृक्ष के मेले भरते हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण काल ने इस मेले पर भी ग्रहण लगा दिया है. हालांकि, धर्म परायण लोगों ने मान्यता अनुसार कल्पवृक्ष की विधिवत पूजा-अर्चना की और अपने परिवार के निरोगी होने और खुशहाली की कामना की.
सोमवती अमावस्या पर नहीं लगे मेले अजमेर में हर वर्ष की भांति हरियाली अमावस्या पर लगने वाले कल्प वृक्ष के मेले इस बार नहीं लगे. कोरोना का विपरीत असर पारंपरिक मेलों पर भी पड़ा है. वहीं मेलों में लगने वाले हटवाडों के नही होने से कई लोगों के लिए रोजगार के द्वार भी बन्द हो गए हैं.
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शहर के लोहागल क्षेत्र में कल्पवृक्ष मन्दिर में क्षेत्र की महिलाओं ने मास्क पहनकर धार्मिक परंपरा का निर्वहन कर कल्पवृक्ष जोड़े की विधिवत पूजा-अर्चना की. मंदिर के पंडित कुश शर्मा ने बताया कि कल्पवृक्ष समुद्र मंथन में देवताओं को मिला था.
उन्होंने बताया कि समुद्र मंथन में 14 रत्नों की प्राप्ति में छठा रत्न कल्प वृक्ष था. पंडित कुश शर्मा ने बताया कि कल्पवृक्ष इच्छाओं का प्रतीक है. बताया जाता है कि भगवान कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के लिए यह वृक्ष धरती पर लेकर आए थे. यह लोगों की आस्था ही है कि कल्प वृक्ष के जोड़े को शिव पार्वती का रूप मानकर भक्त सोमती अमावस्य के दिन पूजा अर्चना करते है.
महिलाएं कल्प वृक्ष के नर और मादा जोड़े को मोली बांधती है, जिससे इनकी तरह उनका सुहाग अखंड रहे और पूजा-अर्चना कर परिवार की खुशहाली और परिवार के सभी सदस्यों के निरोगी होने की कामना करती है.
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श्रद्धालु महिला श्यामा अग्रवाल ने बताया कि हर वर्ष कल्प वृक्ष का मेला भरता था, लेकिन कोरोना की वजह से वह नहीं भर सका. सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क लगाकर महिलाओं ने कल्पवृक्ष के जोड़े की पूजा अर्चना की है. कोरोना ने धार्मिक और पारंपरिक मेलों पर आघात किया है, लेकिन लोगों की मजबूत आस्था को कमजोर नहीं कर पाया है.