अजमेर. जिले में खाद्य वस्तुओं में मिलावट की रोकथाम के लिए जिला खाद्य सुरक्षा विभाग है. वहीं विभाग की ओर से खाद्य वस्तुओं में मिलावट की रोकथाम के लिए साल में कई कार्रवाई किए जाने का दावा किया जाता है. कई प्रतिष्ठानों और फर्मों से जांच के लिए नमूने उठाए जाते हैं. ईटीवी भारत ने पिछले साढ़े 5 वर्षों के आंकड़ों की पड़ताल की तो पाया कि विभाग की ओर से की गई सैंपलिंग की कार्रवाई और जांच के बाद आए नतीजों के आंकड़ों में बहुत अधिक अंतर है.
खाद्य सुरक्षा विभाग की सुस्त रफ्तार कार्रवाई से मिलावटी पदार्थों पर नहीं लग पा रही लगाम जिला खाद्य सुरक्षा विभाग अजमेर के स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग के अधीन आता है. जिसकी जिम्मेदारी खाद्य वस्तुओं में मिलावट को रोकने की है. वहीं इसके लिए अजमेर में सरकार ने चार फूड इंस्पेक्टर भी तैनात कर रखे हैं. जिनका कार्य संदिग्ध मिलावटी खाद्य वस्तुओं के नमूने अधिकृत प्रयोगशाला को भेजना और जांच रिपोर्ट गलत आने पर उचित कार्रवाई करना है. साढे़ 5 साल में के आंकड़ों के पड़ताल पर पाया गया कि विभाग की कार्रवाई और उनसे निकले नतीजों के बीच आंकड़ों का फासला चौंकाने वाला है.
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5 साल में सिर्फ 14 मामले
विभाग की ओर से 2014 से 2019 में अब तक 1527 संदिग्ध मिलावटी खाद्य वस्तुओं की जांच नमूने लिए जा चुके हैं. जिनमें से जांच के बाद 1111 नमूने एकदम सही पाए गए. जिसका अर्थ है कि इन 1111 नमूनों में किसी तरह की कोई मिलावट नहीं पाई गई. वहीं 'सुरक्षित मिलावट' ( सब स्टैंडर्ड) के 248 मामलों में नमूने लेकर जांच किया गया है. साथ ही पड़ताल के दौरान 'लेबल और खाद्य वस्तु में फर्क' ( मिस ब्रांड ) के 95 मामले सामने आए हैं. लेकिन, चौंकाने वाली बात यह है कि इतनी बड़ी संख्या मामलों के सामने आने के बाद भी असुरक्षित मिलावट महज 14 मामले में ही पकड़ में आई हैं.
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विभाग की कार्यप्रणाली सावलों के घेरे में
ऐसे में यहां दो बड़े सवाल सामने आते हैं. जहां एक ओर प्रशिक्षित फूड इंस्पेक्टरों द्वारा लिए गए संदिग्ध खाद्य वस्तु की सैंपल इन को लेकर सवाल उठता है. फूड इंस्पेक्टरों द्वारा पिछले साढ़े 5 साल में 1527 सैंपलिंग की कार्रवाई में 1111 मामलों में लिए गए नमूने एकदम सही पाए जाते हैं. ऐसे में कहीं ना कहीं ये लगता है कि फूड इंस्पेक्टरों और अधिकारियों पर ज्यादा से ज्यादा कार्रवाई करने का और मामले दिखाने दबाव रहता है.
वहीं साढ़ें 5 साल में 'सुरक्षित मिलावट' के 248 मामले और 'लेबल और खाद्य वस्तु में फर्क' के 95 मामले सामने आए है. लेकिन उनमें से केवल 14 मामलों में ही कोर्ट के द्वारा कार्रवाई गई है. अब सवाल ये उठता है कि क्या पेनल्टी तक ही मामलों में बचाव की कवायद हो जाती है ? क्योंकि आंकड़ों के अनुसार इतने मामलों में सिर्फ 14 मामले ही अनसेफ के अभी तक सामने आए हैं. इससे जाहिर है कि कहीं ना कहीं सैंपलिंग किसी तरह से प्रभावित हो रही है. इसका कारण फर्म या प्रतिष्ठान मालिक के ऊंचे राजनैतिक रसूखात भी हो सकते हैं. जिसके दबाव में वास्तविक मिलावटी खाद्य वस्तुओं की सेम्पलिंग नहीं हो रही है. बावजूद इसके विभाग आज भी मिलावटखोरों पर नकेल कसने का दावा कर रहा है.
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विभाग की लेटलतीफी आम लोगों के लिए बन सकता है खतरा
खाद्य सुरक्षा हर व्यक्ति के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ मामला है. बाजार में जितनी बिकने वाली खाद्य वस्तुएं है, विभाग का दायरा भी उतना ही बड़ा है. खाद्य सुरक्षा विभाग द्वारा की गई कार्रवाई की रफ्तार इतनी धीमी होती है कि आम लोग खाद्य पदार्थ को खाकर बीमार भी हो जाएं. लेकिन विभाग के ओर से की गई सुस्त रफ्तार कार्रवाई का तय समय के भीतर कोई निष्कर्ष नहीं निकलता. आंकड़ों से ये सामने आता है कि विभाग सन 2014 से 2018 तक 321 मामलों में 289 चालान कोर्ट में पेश कर चुका है. जबकि 32 चालान पेश करना अभी बाकी है.
बता दें कि जांच में सब्सटेंडर्ड, मिस ब्रांड और अनसेफ मानक के आधार पर ही मिलावटखोरों के खिलाफ न्यायिक कार्रवाई के लिए विभाग कोर्ट में चालान पेश करता है. बावजूद इसके जिले के चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. के के सोनी ही आमजन से अपील कर रहे हैं कि वह खाद्य वस्तुओं में मिलावट संबंधी मामलों की जानकारी विभाग को दे.