अजमेर.देशभर में गणेश चतुर्थी की तैयारियां शुरू हो चुकी है. प्रथम पूज्य गणेश के आगमन का लोगों को बेसब्री से इंतजार है. गणेश चतुर्थी पर लोग भगवान गणेश की प्रतिमा की स्थापना करते हैं. लिहाजा बाजारों में गणपति की आकर्षक और मनमोहक मूर्तियां मिल रही है. चकाचौंध और गणपति स्थापना की होड़ में ज्यादातर लोग इसके वास्तविक महत्व को भूलकर पुण्य की जगह पाप कर बैठते हैं. आपको एक खास खबर के जरिए बताएंगे कि किस प्रकार की गणपति की मूर्ति से सब की जननी प्रकृति को नुकसान नहीं पहुंचता है. क्योंकि प्रकृति मां को नुकसान पहुंचेगा तो भला गणपति कैसे खुश होंगे.
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शास्त्रों के मुताबिक माता पार्वती का एक रूप प्रकृति भी
मान्यता है कि भगवान शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती ने गणेश को अपने शरीर पर लगे उबटन से मूर्त रूप दिया था. उसके बाद उसमें प्राण वायु का संचार किया था. शास्त्रों के मुताबिक माता पार्वती का एक रूप प्रकृति भी है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि प्रकृति को नुकसान पहुंचा कर गणपति कैसे खुश हो सकते हैं. ईटीवी भारत ने इन तथ्यों के बारे में अजमेर के प्रसिद्ध आगरा गेट गणेश मंदिर के महंत पंडित घनश्याम आचार्य से बात की. उन्होंने बताया कि गणपति की स्थापना का महत्व मिट्टी से बनी गणपति प्रतिमा से सार्थक होता है. बाजारों में मिलने वाली पीओपी की गणपति की मूर्ति विसर्जन पर प्रकृति को नुकसान पहुंचता है. इससे गणपति कैसे खुश हो सकते हैं.
घर-घर में विराजेंगे श्रीगणेश..मिट्टी की मूर्ति का ये है महत्व पीओपी की मूर्तियां पहुंचाती है प्रकृति को नुकसान
बाजारों में प्लास्टर ऑफ पेरिस ( पीओपी ) से निर्मित गणेश मूर्तियां लोगों को आकर्षक करती है. लेकिन इस आकर्षण में लोग यह भूल जाते हैं कि पीओपी से निर्मित प्रतिमाएं प्रकृति को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि जिस जल में इनका विसर्जन किया जाता है. वह जल भी इन मूर्तियों पर लगे घातक रसायन से दूषित हो जाता है. ईटीवी भारत शहर के उन क्षेत्रों में पहुंचा जहां पर परंपरागत रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी गणेश प्रतिमा का निर्माण मिट्टी से किया जाता रहा है. इनमें से कुम्हार मोहल्ले में सेवाराम जैसे कई परिवार हैं. जिनका नाता मिट्टी से रहा है. सेवाराम और उनका परिवार बरसों से मिट्टी के गणपति बनाते आए है. सेवाराम बताते हैं कि गणपति का निर्माण गोंद, अखबार और मिट्टी से किया जाता है. उन्हें सांचे में ढालकर आकार दिया जाता है. इसके बाद मूर्ति को सूखाकर उस पर कच्चा रंग लगाया जाता है. सेवाराम का मानना है कि मिट्टी से निर्मित गणपति का विसर्जन प्रकृति को नुकसान नहीं पहुंचाता, बल्कि इसकी मिट्टी का उपयोग घर के घमले में भी किया जा सकता है.
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जानकारी के अभाव में अर्थ का अनर्थ
वहीं सेवाराम ने मिट्टी से गणपति बनाने की कला को अगली पीढ़ी तक पहुंचाया है, ताकि मिट्टी के गणपति का महत्व बना रहे सेवाराम के बेटे पवन ने बताया कि मिट्टी के गणपति को लेकर लोगों में उत्साह है. वहीं पीओपी के मुकाबले मिट्टी के गणपति का मूल्य भी ज्यादा नहीं है. जानकारी के अभाव में कई बार अर्थ का अनर्थ हो जाता है. गणपति स्थापना की परंपरा महाराष्ट्र से निकलकर अन्य राज्यों में भी पहुंच गई है. लोग बड़ी संख्या में अब गणपति स्थापना और गणपति उत्सव मनाने लगे हैं. इसके पीछे लोगों का उद्देश्य भगवान गणपति की आराधना करने का है. लेकिन यह तभी संभव होगा, जब मिट्टी से बनी गणपति की प्रतिमा का ही उपयोग हो. पीओपी से बनी गणपति की प्रतिमा से प्रकृति को नुकसान होता है. ऐसे में भला गणपति मां को कष्ट में देखकर कैसे खुश हो सकते हैं.