अजमेर. पूरा देश गुरूवार को जश्न ए आजादी मनाएगा लेकिन आजादी के मायने क्या हैं, यह आज भी लोग नहीं समझते हैं. पहले अंग्रेजों के गुलाम थे और अब नेताओं और अधिकारियों की गुलामी हो रही है. लोकतंत्र में आजादी के मायने समान अधिकार से भी है, लेकिन आज भी गरीब और बेबस लोगों को अपनी पीठ सुनाने के लिए घंटों अधिकारियों के दफ्तर के बाहर बैठना पड़ता है. बता दें कि जिले के सरवाड़ कस्बे के समीप खिरिया गांव से अजमेर में कलेक्टर को अपनी पीड़ा बताने आया देवा बागरी का परिवार 3 घंटे बाद भी कलेक्टर से नहीं मिल सका.
आसियाना उजड़ा तो उम्मीदें लेकर पहुंचा कलेक्टर की चौखट...3 घंटे के इंतजार के बाद लौटा खाली हाथ - Jashn-e-Azadi
पूरा देश गुरूवार को जश्न ए आजादी मनाएगा, लेकिन आजादी के मायने क्या हैं, यह आज भी लोग नहीं समझते हैं. पहले अंग्रेजों के गुलाम थे और अब नेताओं और अधिकारियों के लापरवाह रवैये चक्कर कटवा रहे हैं. जिम्मेदार अधिकारियों का बेबस और गरीब की फरियाद को नहीं सुनना आजादी के मायने नहीं है. बल्कि आजाद देश में परतंत्रता को दर्शाता है.
जिले में केकड़ी विधानसभा के सरवाड़ कस्बे के समीप खिरिया का रहने वाला देवा बागरी बारिश में घर उजड़ जाने से कलेक्टर से सहायता मांगने अजमेर आया था. देवा बागरी प्रधानमंत्री आवास योजना में भी आवेदन कर चुका है. देवा का आरोप है कि सरपंच की उसके मकान की जमीन पर नजर है इसलिए वह योजना में उसके मकान की स्वीकृति में देरी कर रहा है. देवा बागरी ने बताया कि वर्तमान में उसका परिवार कच्चे मकान में रहता है. उसके 12 संतान हैं जिनमें अधिकांश मानसिक रूप से बीमार है. उन्होंने बताया कि एक कच्चा मकान है वह भी बारिश में ढह गया है. उसके परिवार के पास सिर छुपाने तक के लिए जगह नहीं है. देवा का आरोप है कि पटवारी भी उसके मकान की भूमि को खाते में दर्ज करने के लिए पचास हजार की डिमांड कर रहा है.
बता दें कि देवा पत्नी और दो बच्चों के साथ कलेक्टर की चौखट पर बैठा घंटों अपनी बारी का इंतजार करते हैं, लेकिन हावी हो चुकी अफसरशाही को गरीब बेबस की फरियाद सुनाई नहीं देती. वहीं बेबस देवा बागरी के पास इंतजार के अलावा और कोई चारा नहीं है. जिम्मेदार अधिकारियों का बेबस और गरीब की फरियाद को नहीं सुनना आजादी के मायने नहीं है बल्कि आजाद देश में परतंत्रता को दर्शाते हैं.