अजमेर.तीर्थ नगरी पुष्कर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है. पुष्कर विश्व में जगत पिता ब्रह्मा का इकलौता स्थान है. मान्यता है कि पुष्कर सरोवर ब्रह्मा के कमंडल के जल के समान पवित्र माना जाता है. पुष्कर में आदिकाल से मंदिर में बिराजे जगत पिता ब्रह्मा की गृहस्थ पूजा नहीं करते. बल्कि सरोवर की पूजा का ही महत्व है.
जानिए स्पेशल रिपोर्ट में तीर्थ गुरु पुष्कर का इतिहास जहां पर पुष्प गिरा वहां भर गया पानी और बना पुष्कर
बताया जाता है कि जगत पिता ब्रह्मा ने पृथ्वी पर अपना स्थान बनाने के लिए एक कमल का पुष्प धरती पर फेंका. जो पुष्कर में आकर गिरा. जहां पर पुष्प गिरा वहां पानी भर गया. यह भी बताया जाता है कि कार्तिक माह की एकादशी से पूर्णिमा तक जगत पिता ब्रह्मा ने यहीं पर सृष्टि यज्ञ किया था. इस यज्ञ में ब्रह्मा की पत्नी सावित्री शामिल होने में विलंब हो गई. इस दौरान ब्रह्मा ने गायत्री नाम की महिला से विवाह कर उसे यज्ञ में अपने साथ बैठा लिया. इससे रुष्ट होकर सावित्री ने ब्रह्मा को श्राप दिया कि कोई भी गृहस्थ उनकी पूजा नहीं करेगा. तब से सरोवर के जल की ही पूजा अर्चना की जाती है.
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ब्रह्माजी के यज्ञ में समस्त देवी-देवता मौजूद थे
यह भी मान्यता है कि ब्रह्माजी के यज्ञ में समस्त देवी-देवता मौजूद थे और यह रहकर सरोवर में स्नान किया करते थे. तब से हर कार्तिक माह में एकादशी से पूर्णिमा तक सरोवर में स्नान का धार्मिक महत्व है. तीर्थ पुरोहित पंडित सतीश चंद्र तिवारी बताते हैं कि पुष्कर सरोवर में स्नान करने एवं पितरों के लिए पिंडदान और तर्पण करने से घर में सुख शांति और खुशहाली आती है. वहीं कार्तिक माह में पुष्कर सरोवर में स्नान करने से जन्म जन्मांतर के पापों का अंत होता है. स्नान के बाद गौ दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है.
पवित्रता एवं आध्यात्मिकता के माहौल से विदेशी भी अछूते नहीं
पुष्कर की धार्मिक मान्यता के मद्देनजर श्रद्धालु सदियों से तीर्थ के लिए आ हैं और पुष्कर सरोवर की पूजा अर्चना कर जगतपिता ब्रह्मा के दर्शन करते हैं. पुष्कर की अध्यात्मिक खुशबू देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक भी फैल चुकी है. यही वजह है कि पुष्कर की पवित्रता एवं आध्यात्मिकता के माहौल से विदेशी भी अछूते नहीं रहे हैं. इजराइल निवासी शिरली 7 सालों से पुष्कर आ रही है. उनका कहना है कि पुष्कर में सतरंगी लोक संस्कृति और यह की पवित्र फिजा ने उन्हें प्रभावित किया है. उनकी नजर में पृथ्वी में पुष्कर जैसी जगह है और कहीं नहीं है.
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देश के कोने-कोने से कार्तिक स्नान के लिए आ रहे श्रद्धालु
अंतरराष्ट्रीय श्री पुष्कर मेले में तीर्थ यात्रा के लिए बड़ी संख्या में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु पुष्कर में कार्तिक स्नान के लिए आ रहे हैं. श्रद्धालुओं को विश्वास है कि कार्तिक स्नान, पितरों को पिंडदान और तर्पण करने से उनके कष्ट दूर होंगे. वहीं उन्हें तीर्थ का पुण्य भी प्राप्त होगा. तीर्थ गुरु पुष्कर में लोगों की आस्था प्रगाढ़ है. यही वजह है कि सदियों से तीर्थ करने के लिए श्रद्धालु के आने का सिलसिला कम नहीं हुआ, बल्कि बढ़ा है. लोग पुष्कर तीर्थ करते है. साथ ही यहां कि आध्यात्मिक और पवित्र वातावरण को अपनी यादों में बसा लेते हैं.