अजमेर.बाल विवाह की रोकथाम के लिए कानून बने हुए हैं. कई संस्थाएं बच्चियों के बाल विवाह को रुकवाने और उन्हें शिक्षा से जोड़ने का काम कर रही हैं. इन संस्थाओं के प्रयास रंग भी ला रहे हैं. अजमेर से 40 किलोमीटर दूर हासियावास गांव की ममता गुर्जर भी उन बच्चियों में से एक है. जिसका बाल विवाह उसके परिजन करवाना चाहते थे. लेकिन आज बेटी को सफलता के पायदान पर चढ़ते देख परिजनों को गर्व हो रहा है. साथ ही उन्हें अपनी गलती का भी अहसास है. ममता गुर्जर के संघर्ष की कहानी को देख गूगल ने उन्हें महिला आइकन बना दिया.
अजमेर के छोटे से गांव हासियावास की रहने वाली ममता गुर्जर फुटबॉल की नेशनल खिलाड़ी (google honoured ajmer girl) हैं. उसके संघर्ष की कहानी से प्रेरित होकर गूगल ने उसे महिला फुटबॉल के आइकन (women icon title for playing football in ajmer) के रूप में प्रोत्साहित किया है. कई बड़े शहरों में गूगल ने ममता के बड़े-बड़े पोस्टर चस्पा किए हैं. राजधानी जयपुर में भी ममता गुर्जर के पोस्टर बालिकाओं के लिए प्रेरणा बने हुए हैं. बताया जाता है कि ममता गुर्जर फुटबॉल खेलने के साथ ही ग्रेजुएशन भी कर रही है.
अजमेर की बेटी के संघर्ष को गूगल ने दिया सम्मान गूगल ने महिला फुटबॉल में आइकन के रूप में ममता गुर्जर को प्रोत्साहित किया है. निश्चित रूप से इस सम्मान से ममता गुर्जर ने अजमेर का ही नहीं पूरे प्रदेश का नाम रोशन किया है. ईटीवी भारत से ममता गुर्जर के कोच सुधीर जोसफ ने कहा कि वह चार साल से ममता को फुटबॉल का प्रशिक्षण दे रहे हैं.
पहली बार मैदान में चप्पल पहनकर फुटबॉल खेलने उतरीःकोच जोसफ ने बताया कि ममता को पहली बार जब महिला जन अधिकार समिति की ओर से ग्राउंड पर लाया गया था तो वह बिल्कुल ग्रामीण परिवेश की सामान्य बच्ची थी. सलवार सूट और चप्पल पहनकर वह फुटबॉल खेलने मैदान में आई थी. जोसफ बताते हैं कि ममता और उसकी बहन कंचन दोनों ही काफी प्रतिभाशाली हैं. कोच सुधीर ने बताया कि ममता घर का काम करती थी. पशुओं को चारा पानी देती थी. खेत में फसल काटने जाती थी. इस दौरान भी उसका फुटबॉल के प्रति जुनून काम नहीं हुआ. खेल के साथ वह कॉलेज की मेधावी छात्रा भी है.
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ममता गुर्जर के लिए फुटबॉल खेलना नहीं था आसान:कोच सुधीर जोसफ बताते हैं कि ममता गुर्जर का फुटबॉल खेलना आसान नही था. यह उसके लिए काफी संघर्ष भरा था. रूढ़िवादी परम्पराएं हमेशा उसके लिए अड़चन बनी रहीं. उन्होंने बताया कि जब ममता गुर्जर पहली बार फुटबॉल खेले आई तब परिजनों ने उसका विरोध किया था. परिजन नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी फुटबॉल खेले. महिला जन अधिकार समिति के कार्यकर्ताओं ने जब परिजनों को समझाया तो वह ममता की फुटबॉल खेलने को लेकर राजी हो गए, लेकिन समस्या कम नहीं हुई. ममता गुर्जर सलवार सूट और चप्पल पहनकर फुटबॉल खेलने आती थी.
महिला जन अधिकार समिति की ओर से उसे फुटबॉल की ड्रेस और जूते दिए गए. फुटबॉल खेलने के लिए शॉट्स पहनना होता है, लेकिन परिजन इसके लिए राजी नहीं हुए. उन्होंने बताया कि जिला फुटबॉल संघ की ओर से अजमेर में फुटबॉल शिविर लगाए गए थे. ममता गुर्जर और उसके परिजनों को भी शिविर में बुलाया गया. वहां अन्य लड़कियों को शॉट्स पहनकर फुटबॉल खेलते देख ममता गुर्जर के परिजनों का नजरिया बदल गया. इसके बाद गांव के सरपंच और परिजनों ने ममता का सहयोग करना शुरू कर दिया. उन्होंने बताया कि ममता गुर्जर की तरह उनकी छोटी बहन कंचन भी फुटबॉल खेल रही है.
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जिले में ढाई सौ बच्चियां ने बाल विवाह छोड़ फुटबॉल को चुनाःकोच सुधीर जोसेफ ने बताया कि जिले में चाचियावास, हासियावास, तेनवो की ढाणी, पदमपुरा और केकड़ी में बालिकाओं के लिए महिला जन अधिकार समिति के आग्रह पर उन्हें जिला फुटबॉल संघ की ओर से फुटबॉल का प्रशिक्षण दिया जाता है. फुटबॉल कोच सुधीर बताते हैं कि वह 35 किलोमीटर दूर हासियावास गांव में स्कूल के खेल मैदान में ममता गुर्जर और उसकी जैसी अन्य बच्चियों को फुटबॉल का प्रशिक्षण देने जाते हैं. उन्होंने बताया कि यह हम सब के लिए गर्व की बात है कि गूगल ने ममता गुर्जर को महिला फुटबॉल के आइकन के रूप में न केवल प्रदर्शित किया. बल्कि पढ़ने के लिए उन्हें आर्थिक सहयोग भी दे रही है. इससे अन्य बालिकाओं में भी आत्मविश्वास बढ़ेगा और उनमें आगे बढ़ने की भावना उत्पन्न होगी.