अजमेर. पुष्कर आरण्य क्षेत्र में स्थित अजयसर की पहाड़ियों के बीच जंगल में अद्भुत प्राचीन शिवालय है. पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने एक दैत्य का वध करने के लिए यहां बकरे का रूप लिया था. दैत्य का वध करने के बाद जगतपिता ब्रह्मा के आग्रह पर भगवान शिव वहीं पर अजगंधेश्वर नाम से शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए. ऐसा माना जाता है कि प्रातः स्नान करने के बाद शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद श्रद्धा से कोई भी व्यक्ति शिवलिंग को अपने दोनों हाथों से रगड़ता है तो उसके हाथों में अजहा यानी बकरे की गंध आने लगती है.
परिवार संग साल में एक बार आते हैं भोलेनाथ
श्रावण मास भगवान शिव को अंत्यत प्रिय है. यही वजह है कि श्रावण मास में शिव भक्त अपने आराध्य शिव शंकर की पूजा अर्चना करते है. यूं तो संसार में भगवान भोलेनाथ के कई पवित्र स्थान है. इनमें सबसे परमधाम शिव का कैलाश मानसरोवर है. जहां महादेव स्वयं अपनी पत्नी पार्वती पुत्र गणेश और कार्तिकेय के साथ वर्ष में 1 दिन कैलाश छोड़कर जरूर आते है.
दैत्य का वध करने के लिए बने अजहा
अजमेर में जगत पिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर के आरण्य क्षेत्र अजयसर की पहाड़ों के बीच जंगल में अजगंधेश्वर मंदिर है. इस मंदिर में उपस्थित शिवलिंग की स्थापना स्वंय जगतपिता ब्रह्मा ने की थी. पुराणों के अनुसार इंद्र के तप से प्रसन्न होकर स्वर्ग पर अधिकार जमाकर बैठे दैत्य वश्कली का भगवान शिव ने यही पर संहार किया था. दैत्य वश्कली का संहार करने के लिए भगवान भोलेनाथ ने विशाल अजहा (बकरे) का रूप धरा था.
पुष्कर के पंडित रवि शर्मा बताते है कि पदम् पुराण में अजगंधेश्वर महादेव का उल्लेख है. उन्होंने बताया कि जगतपिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर की अध्यात्मिक शक्ति से प्रभावित होकर वश्कली नाम के दैत्य पुष्कर आरण्य में निवास कर 10 हजार सालों तक ब्रह्मदेव को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया था. तब के शुरुआती 2 हजार साल में 6 दिन में एक बार दैत्य वश्कली भोजन करता था. अगले 2 साल उसने इसी तरह से 6 दिन में एक बार पत्ते खाए, बाद में अगले 2 हजार साल सूखे फल खाएं और अगले 2 हजार साल उसने केवल जल पिया. आखरी 2 हजार सालों में उसने अपने शरीर को इतना साध लिया कि वह केवल हवा पर निर्भर रहकर तप करता रहा.
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जगत पिता ब्रह्मा ने दैत्य वश्कली की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए. दैत्य वश्कली ने ब्रह्म देव से स्वर्ग पर आधिपत्य और अस्त्र, शस्त्र, देव दानव किसी से भी उसकी मृत्यु नहीं होने का वरदान हासिल कर लिया. ब्रह्मदेव के वरदान के कारण इंद्र को स्वर्ग से हाथ धोना पड़ा. वहीं समस्त देवताओं को स्वर्ग त्यागना पड़ा. पंडित रवि शर्मा ने बताया कि स्वर्ग पर आधिपत्य रखने के बावजूद दैत्य वश्कली प्रतिदिन स्वर्ग से पुष्कर आता और पवित्र सरोवर में स्नान करने के बाद जगतपिता ब्रह्मा की पूजा अर्चना करता था.
इंद्र ने की शिव की तपस्या
स्वर्ग त्यागने के बाद इंद्र ने भी पुष्कर में आकर 10 सालों तक भगवान शिव की तपस्या की. शिव ने प्रसन्न होकर इंद्र को दर्शन दिए तब शिव ने स्वर्ग लोक और देवताओं पर आए संकट को हरने के लिए सहायता मांगी. तब भगवान शिव शंकर ने इंद्र को सहायता करने का वचन दिया. भगवान शिव ने ब्रह्मदेव के वरदान का सम्मान रखते हुए दैत्य वश्कली का वध करने के लिए विशाल अजहा (बकरे ) का रूप धारण किया.
विशाल बकरे को देखकर दैत्य प्रवृत्ति वश्कली ने बकरे को मार कर उसका मास भक्षण करने का विचार करते हुए बकरे पर हमला बोल दिया. पहाड़ियों से घिरा यह वहीं स्थान है जहां बकरे के रूप में महादेव ने दैत्य वश्कली का वध सिंग के प्रहार से किया था. इस दौरान ब्रह्मदेव ने भगवान शिव को यहीं पर स्थापित होने का आग्रह किया. शिव ने जगतपिता ब्रह्मा के वाक्यों को पूरा करते हुए साल में एक बार यहां पूरे परिवार के साथ रहने का आग्रह स्वीकार कर लिया.