अजमेर. पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखने के लिए विद्युत शवदाह गृह लोगों के लिए कारगर साबित होगा. दाह संस्कार के लिए पेड़ों की कटाई रोकने और पर्यावरण संरक्षण के लिए यह एक नवीन पहल होगी. सामान्य तौर पर जहां एक दाह संस्कार में तीन वृक्षों की लकड़ियां जल जाती है, वहीं विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार कराकर अनगिनत पेड़ों को काटने से भी बचाया जा सकता है.
पेड़ पर्यावरण संरक्षण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, इन्हें संरक्षित करने के लिए विद्युत शवदाह का विकल्प अपनाना होगा. पारंपरिक पद्धति से दाह संस्कार में करीब 3 क्विंटल लकड़ी लगती है और वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड फैलता है. विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार के दौरान हवा प्रदूषित होने का खतरा काफी कम होता है. विशेषज्ञों के मुताबिक विद्युत शवदाह गृह स्क्रबर टेक्नोलॉजी से लैस होता है, जो अंतिम संस्कार के दौरान निकलने वाली खतरनाक गैस और बॉडी के बने पार्टिकल को सोख लेता है.
विद्युत शवदाह गृह होता है कम खर्चीला
विद्युत शवदाह तुलनात्मक रूप से काफी कम खर्चीला होता है. वैश्विक महामारी कोविड-19 में गैस शवदाह गृह कारगर साबित होगा. वहीं पहाड़गंज स्थित श्मशान घाट पर विद्युत शवदाह गृह का निर्माण प्रस्तावित है, ऋषि घाटी स्थित श्मशान घाट पर गैस शवदाह ग्रह तैयार किया जा चुका है और उपयोग में लाया जा रहा है. इसी तर्ज पर पहाड़गंज श्मशान घाट पर बनने वाले विद्युत शवदाह गृह में एक हॉल का निर्माण भी किया जाएगा. शवदाह ग्रह में विधुत भट्टी और चिमनी लगाने के साथ ही सफाई की व्यवस्था भी की जाएगी.