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Special: पेट की भूख के आगे कोरोना का खतरा भी बौना, वे पहले भी सड़क पर थे...आज भी सड़क पर हैं

कोरोना काल में भीख मांगकर खाने वालों की हालत दर से बदतर होती चली जा रही है. ये सड़क पर इसी उम्मीद में बैठे रहते हैं कि कोई आएगा और उन्हें कुछ देगा, जिससे की उनका पेट भर सके. इतना ही नहीं न ये मास्क लगा रहे हैं और न सोशल डेस्टेंसिंग के बारे में इन्हें कुछ पता है. इनको बस इंतजार है कोई आए और कुछ दे दे.

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भीख मांगने वालों के सामने रोजी-रोटी का संकट

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Published : Jul 23, 2020, 11:09 PM IST

अजमेर.पूरे देश में कोरोना के मामले दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं. रोजाना कोरोना संक्रमितों और मौत के आंकड़ों में इजाफा देखने को मिलता है. ऐसे में अगर राजस्थान की बात की जाए तो यहां पर अब तक कोरोना संक्रमितों के 30 हजार से अधिक मामले आ चुके हैं और 500 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. हालांकि इस महामारी के बीच भी कुछ लोग ऐसे हैं, जिनमें कोरोना का खौफ कहीं भी नजर नहीं आ रहा. वे पहले जैसे रहते थे, वे अब भी वैसे ही रहते हैं.

भीख मांगने वालों के सामने रोजी-रोटी का संकट

हम बात कर रहे हैं उन भिखारियों की, जो भीख मांगकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं. लॉकडाउन के बीच पहले तो सभी भिखारियों को रेल म्यूजियम और रैन बसेरो में रखा गया. साथ ही साथ प्रशासन ने उनका खूब ध्यान रखा. लेकिन अब उनके हालात जस के तस बने हुए हैं. पहले तो इन्हें दिन भर में कुछ न कुछ खाने को मिल ही जाता था, लेकिन अब स्थिति ऐसी है कि पूरे दिन में भी कुछ नसीब नहीं होता और कभी-कभार तो इन्हें भूखे ही सोना पड़ जाता है.

कोरोना के बीच भिखारियों को खाने के लाले पड़े

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कोरोना के चलते भिखारियों पर भी छाया रोजी-रोटी का संकट

बात की जाए कोरोना संक्रमण काल की तो उस दरमियान भी भीख मांगकर अपना जीवन यापन करने वाले लोगों पर रोजी-रोटी का संकट आ चुका है. उन्होंने बताया कि काफी बुरा हाल है, जब लॉकडाउन लगाया गया था. तब उन्हें अलग-अलग जगहों पर छोड़ दिया गया, प्रशासन ने भी उन्हें खाना खिलाया. लेकिन अब स्थिति वहीं आकर फिर से एक बार रुक गई है. हालात पहले जैसे हो गए हैं कि उन्हें फिर सड़कों पर बैठना पड़ रहा है. जहां बड़ी मुश्किल से ही कोई उनको खाना देने वाला मिलता है.

पेट की भूख के आगे नहीं दिखा कोरोना का डर

पेट की भूख के आगे नहीं दिखा कोरोना का डर

वहीं जब ईटीवी भारत की टीम ने सड़क किनारे बैठे कुछ लोगों से बातचीत की तो उनसे बातचीत में ऐसा कहीं भी नहीं लगा कि उन्हें कोरोना संक्रमण का किसी तरह से डर हो. न ही उन्होंने चेहरे पर मास्क लगा रखा था. केवल उन्हें आशा थी कि कोई व्यक्ति उन्हें भीख में कुछ न कुछ दे ही जाएगा. पेट की भूख के आगे कोरोना का डर बिल्कुल फीका नजर आने लगा था. न ही किसी तरह की सोशल डिस्टेंसिंग उनमें नजर आ रही थी और न ही किसी भी व्यक्ति द्वारा चेहरे पर मास्क लगाया गया है.

कल भी सड़क पर थे और आज भी सड़क पर हैं

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वहीं सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के बाहर बैठने वाले काफी संख्या में भिखारी अब नजर नहीं आ रहे हैं, केवल मात्र इक्के-दुक्के लोग ही सड़कों पर दिख रहे हैं. उनका कहना है कि ख्वाजा गरीब नवाज की बारगाह पर आने वाले दिनों से ही उनकी रोजी-रोटी चलती है. लेकिन अब स्थिति ऐसी है कि पिछले चार महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है. घर में जो पैसा भीख मांगकर इकट्ठा किया था, वह भी अब पूरा खत्म हो चुका है. ऐसे में उनकी स्थिति भी दयनीय हो चुकी है.

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