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मूलभूत सुविधाओं से महरूम है नसीराबाद कस्बा, अपनी बदहाली पर बहा रहा आंसू

अजमेर में स्थित नसीराबाद कस्बे के नागरिक स्वायत्त निकाय की मांग कर रहे हैं. निकाय नहीं होने के कारण स्थानीय नागरिकों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इस समस्या को लेकर ईटीवी भारत ने नागरिकों को दी जा रही सुविधाओं की पड़ताल की. जिसमें कई तरह की अव्यवस्थाएं देखने को मिलीं. देखिए अजमेर से ये स्पेशल रिपोर्ट..

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नसीराबाद छावनी में नागरिक कर रहे निकाय की मांग

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Published : Jul 10, 2020, 1:41 PM IST

अजमेर.जिले का नसीराबाद कस्बा अपने अतीत में कई ऐतिहासिक घटनाओं को संजोए हुए है. अजमेर से 22 किलोमीटर दूर नसीराबादको 20 नवंबर 1818 को अंग्रेज जनरल सर डेविड ऑक्टर लोनी उर्फ नसीरुदौला ने बसाया था. तत्कालीन मुगल शासक शाह आलम ने ऑक्टर लोनी को नसीरुदौला की उपाधि दी थी. यहां की जलवायू को उपयुक्त मानकर देसी रियासतों पर अपनी शासन व्यवस्था कायम रखने के लिए सैनिक छावनी बसाई गई थी. आजादी के बाद नसीराबाद भारतीय सेना की बड़ी छावनी में शुमार है. कस्बे के नागरिकों की मूलभूत सुविधा का जिम्मा नसीराबाद छावनी परीषद का है.

नसीराबाद छावनी में नागरिक कर रहे निकाय की मांग

ईटीवी भारत ने नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने को लेकर पड़ताल की. नसीराबाद राजस्थान की 200 विधानसभा का हिस्सा है. उपखंड, तहसीलदार कार्यालय यहां मौजूद है. नसीराबाद एक मात्र ऐसा कस्बा है जहां नगर निकाय नहीं है. इस कारण नसीराबाद के नागरिकों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. बल्कि कस्बे में मूलभूत सुविधाओं के लिए छावनी परीषद का मोहताज रहना पड़ता है.

सड़कों पर बिखरा रहता है कूड़ा

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कस्बे में जगह-जगह दिखती है गंदगी

बता दें कि कस्बे में 32 हजार नागरिक है. वहीं, 13 हजार आर्मी के लोग है. नसीराबाद की स्थिति एक सुंदर मोर की तरह है जो ऊपर से सुंदर है, लेकिन जब वो अपने पैरों को देखता है तो उनकी बदसूरती को देखकर रोता है. छावनी क्षेत्र को देखें तो सफाई, रोड, पेयजल व्यवस्था में कोई कमी नहीं है. वहीं, नागरिक क्षेत्र में 8 वार्डों की स्थिति को देखे कर तो लगता है कि क्षेत्र में छावनी परीषद के लंबे कार्यकाल में नागरिक क्षेत्र पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया. मुख्य कोटा रोड पर हर जगह गंदगी का आलम है. प्रधानमंत्री स्वच्छता अभियान के तहत नागरिक क्षेत्रों में खुले में लोगों को शौच जाने से रोकने के लिए 80 के करीब बायो टॉयलेटस बनाये थे, लेकिन रखरखाव के अभाव में सभी दुर्दशा का शिकार हो गए.

नसीराबाद छावनी में बदतर हालात

लोग बताते है कि छावनी परिषद ने कभी लाखों रूपए से बने बायो टॉयलेट्स पर ध्यान नहीं दिया. टॉयलेट्स में पानी की सप्लाई और सफाई शुरुआत के दो तीन माह हुई उसके बाद टॉयलेट्स अब जनता की गाढ़ी मेहनत की कमाई की बर्बादी को बयां करते हैं.

शौचालय के लिए लोगों को आज भी जाना पड़ता है बाहर

आउट लोकेशन कस्बे में रिहायशी क्षेत्रों से पानी की निकासी के लिए नाले है, लेकिन इतने सालों बाद भी पक्के नहीं हो सके. मुख्य कोटा रोड के सड़क किनारे रहने वाले लोग आज भी शौचालय के लिए उन्हें जंगल का रुख करना पड़ता है. कस्बे के कई इलाकों में हालात इतने बदत्तर है कि सड़ांध, गंदगी कच्ची सड़के यहां के निवासियों के लिए बदनसीबी बन गई है.

सड़कों के किनारे बने बायो टॉयलेट्स की बदहाल स्थिति

बता दें कि नसीराबाद में नगर निकाय की मांग काफी पुरानी है. लोग चाहते है कि अन्य कस्बों की तरह नसीराबाद में नागरिक क्षेत्र का विकास हो. वसुंधरा सरकार ने अपने चुनाव से पहले नसीराबाद में नगर निकाय बनाने की घोषणा की थी. जिससे बीजेपी को चुनाव में फायदा तो मिला, लेकिन क्षेत्र के लोगों की हसरत रक्षा मंत्रालय में जा अटकी.

छावनी के नालों की स्थिति

क्षेत्र के लोग बताते है कि नसीराबाद में दुकान, मकान या कोई भवन ईमारत है तो उसका मालिकाना हक उन्हें नहीं है. इस कारण उनकी सम्पतियों के पट्टे भी उन्हें नहीं मिलते. इसका सबसे बड़ा नुकसान ये है कि नसीराबाद के नागरिकों को बैंक लोन नहीं देते, क्योंकि बैंक में मॉर्गेज के लिए संपत्ति के मालिकाना हक के दस्तावेज लोगों के पास नहीं है.

कस्बे में आज भी है कच्ची सड़कें

आज़ादी के बाद से ही नसीराबाद में छावनी परीषद ही निकाय की तरह काम करती है. छावनी परीषद हॉउस टैक्स, पेयजल और बिजली का बिल भी लेती है. बदले में क्षेत्र के विकास के कामों पर खर्च करती है. नागरिक क्षेत्र में मुख्य सड़कों की दुर्दशा कुछ हद तक सुधरी है, लेकिन कस्बे के भीतर वार्डों में आज भी कच्ची सड़क है. कस्बे में पेयजल की स्थिति भी डामाडोल है. क्षेत्र में दो बड़ी टंकियों से पानी की सप्लाई दी जाती है, लेकिन वर्तमान जनसंख्या के आधार पर ये पानी की टंकियां पर्याप्त नहीं है. उनकी सफाई को भी ढाई साल हो चुका है.

कस्बे में आज भी है कच्ची सड़कें

छावनी परिषद के ईओ अरविंद नेमा बताते है कि छावनी परीषद के पास बजट की कमी रहती है. राज्य सरकार अन्य निकायों को पैसा देती है, लेकिन छावनी परीषद को नहीं देती. इसके लिए राज्य सरकार को पत्र भी लिखे जा चुके है. उन्होंने बताया कि पहली बार छावनी बोर्ड को केंद्र से 1 करोड़ 12 लाख करीब मिले है. बायो टॉयलेट्स की दुर्दशा की जिम्मेदारी का ठीकरा भी क्षेत्र के नागरिकों के सिर पर फोड़ा.

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नसीराबाद छावनी परिषद ने जलशक्ति अभियान के तहत भी काम किया है. नसीराबाद कस्बे के बीच लाल डिग्गी को गहरा किया है. वहीं, कस्बे में प्राचीन चार कुआं की सफाई भी की है. छावनी परिषद के ईओ अरविंद नेमा बताते हैं कि छावनी परिषद आत्मनिर्भर बनने की दिशा में भी काम कर रहा है. उसके लिए फुल सागर तालाब में मछलियों का ठेका दिया गया है. वहीं, कस्बे के भीतर आने वाले बड़े वाहनों से टैक्स भी लिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि कोविड-19 के तहत किए गए लॉकडाउन में नसीराबाद में छावनी परिषद की ओर से कोविड-19 की रोकथाम के लिए कई कार्य किए गए हैं जो अब भी जारी है.

नागिरक कर रहे निकाय की मांग

छावनी की बदहाल स्थिति

नसीराबाद में बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए स्वायत्त निकाय समय की मांग बन चुकी है. वर्तमान में छावनी परिषद की ओर से मूलभूत सुविधाओं और विकास के लिए किए जा रहे कार्य नसीराबाद के आवश्यक विकास को देखते हुए काफी कम है.

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