अजमेर. साम्प्रदायिक सद्भाव की नगरी अजमेर में विश्व विख्यात सूफी संत (Ramdaan 2022) ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में रमजान की इबादत का दौर जारी है. रमजान के पाक मौके पर रोजे रखकर लोग खुदा के सामने सिर झुकाते हैं, वहीं दरगाह परिसर में हर रोज इफ्तारी में साम्प्रदायिक सद्भाव की झलक भी देखने को मिल रही है. यहां की खास बात है हर जाति, धर्म, मजहब के लोग एक कतार में इफ्तारी करते हैं. रमजान में इबादत के साथ भाईचारे और मोहब्बत की हर रोज गंगा जमुनी तहजीब साकार होती नजर आती है.
ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में मजहब के मायने बदल जाते हैं. यहां आने वाले हर शख्स को इंसानियत, भाईचारा और मोहब्बत की शिक्षा मिलती है और यही वजह है कि देश और दुनिया में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह साम्प्रदायिक सद्भाव के रूप में पहचानी जाती है. रमजान के पवित्र महीने में जहां रोजेदार भूख-प्यास पर नियंत्रण कर खुद को इबादत के जरिए खुदा से जोड़ते हैं, वहीं ख्वाजा गरीब नवाज के अनुयायी उनकी शिक्षाओं पर अमल कर गंगा जमुनी तहजीब को साकार कर रहे हैं. दरगाह के खादिम सैयद पीर फख्र काजमी चिश्ती बताते हैं कि मंझला रोजा शुरू हो गया है यानी रमजान आधे हो गए हैं. रमजान का मुबारक महीना साल में एक मर्तबा आता है. रमजान का महीना बरकत और रहमतों का महीना है.
केवल भूख-प्यास नहीं, रूह पर भी काबू:काज़मी बताते है कि रोजा रखना मतलब खुद पर नियंत्रण करना होता है. रोजेदार की नीयत एक ताले की तरह है. सहरी के बाद बड़ी से बड़ी नियामत आने पर भी हलक से नीचे कुछ भी जाने नहीं दिया जाता. रोजे में केवल भूख प्यास को मारा नहीं जाता बल्कि रूह को भी नियंत्रण में किया जाता है. लालच, हसरत, बुराई, बदला लेने की भावना, किसी को तकलीफ देने की भावना न आए, ये ही रोजा है. यानी बुरा न बोलो, बुरा न देखो और बुरा न सुनो. काज़मी ने बताया कि दरगाह में खादिम समुदाय के अलावा अकीदतमंद सहरी और इफ्तारी की व्यवस्था करते हैं. रमजान में मस्जिदों में इफ्तारी के बाद विशेष नमाज तराहवी होती है. मस्जिदों में हाफिज कुरान सुनाते हैं. माना जाता है कि जिसने जिंदगी में कभी कुरान नही पढ़ी है, वो भी कुरान सुन सकते हैं.