अजमेर.'दरगाह अजमेर शरीफ' एक ऐसा पाक नाम है, जिसे सिर्फ सुनने से ही रूहानी सुकून मिल जाता है. तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित दरगाह शरीफ वास्तुकला की दृष्टि से भी बेजोड़ है. यहां ईरानी और हिंदुस्तानी वास्तुकला का सुंदर संगम दिखता है. दरगाह का प्रवेश द्वार और गोमेद बेहद खूबसूरत है. माना जाता है कि इसका कुछ भाग अकबर और कुछ जांगिड़ ने पूरा कराया था. दरगाह को पक्का करवाने का काम मांडू के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने करवाया. दरगाह के अंदर बेहतरीन नक्काशी की गई है.
एक चांदी के कटघरे के अंदर ख्वाजा साहब की मजार है. कटघरा जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने बनवाया था. दरगाह में एक खूबसूरत महफिल खाना भी है, जहां कव्वाल ख्वाजा की शान में कव्वाली पेश करते हैं. यहां ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की कब्र है, जो साल 1192 में सुल्तान साबुद्दीन के साथ भारत आए और अजमेर में ही बस गए.
उनके पास कई चमत्कारी शक्तियां थी, जिस वजह से उनके नाम पर आज भी दरगाह में लोग दूर-दूर से आते हैं. यहां आने वाले लोगों की हर मुराद पूरी होती है. ख्वाजा साहिब की यह दरगाह देखने में भी बहुत सुंदर है. आइए जानिए इसकी खूबसूरती के बारे में जिसको देखे बिना रह नहीं पाएंगे.
पढ़ें:सोनिया गांधी की भेजी चादर लेकर ख्वाजा के दर पर पहुंचे अशोक गहलोत और सचिन पायलट
निजाम गेट
अजमेर शहर ऊंची-ऊंची पहाड़ियों के बीच बसा है और ये दरगाह इस शहर के बीच स्थित है. ख्वाजा पीर की इस दरगाह के प्रवेश में चारों तरफ दरवाजे हैं, जिनमें से सबसे ज्यादा सुंदर और आकर्षक दरवाजा मुख्य बाजार की ओर है, जो निजाम गेट के नाम से मशहूर है. ये दरवाजा साल 1912 में बनना शुरू हुआ और इसे बनने में 3 साल लगे. इसकी ऊंचाई 70 फीट और चौड़ाई 24 फीट है.
दरवाजा नक्कारखाना
ये दरवाजा काफी पुराने तरीके से बना है और इसके ऊपर शाही जमाने का नक्कारखाना है. इस दरवाजे को शाहजहां ने साल 1047 में बनवाया था. इसी कारण ये नक्कारखाना शाहजहानी के नाम से प्रसिद्ध है.
चार यार की मजार