अजमेर. जिले में लोहे का बक्सा और कोठी बनाने का काम बड़े पैमाने पर होता है. बक्सों की मजबूती और गुणवत्ता की वजह से जिले में ही नहीं बल्कि जिले के बाहर भी निर्मित छोटे और बड़े बक्सों के कोठियों की सप्लाई होती है. मगर कोरोना ने बक्सा व्यवसाय पर आघात कर दिया है. हालात यह कि पहले की अपेक्षा बक्सा व्यवसाय 20 फीसदी ही रह गया है.
दरअसल, अब घरों में अत्याधुनिक अलमारियां बनने लगी है. इस कारण लोहे के बक्सों की डिमांड काफी कम हुई है. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बक्सों की काफी मांग रहती है. जिले में 100 से ज्यादा बक्सा निर्माण के कारखाने है. इनमें करीब 650 से ज्यादा श्रमिक काम करते है. कोरोना के संकट से पहले तक व्यापार काफी अच्छा था. लेकिन वैश्विक कोरोना महामारी के चलते इस लघु उद्योग की कमर भी टूट चुकी है. ज्यादातर कारखाने बंद हो चुके है. जो कारखाने चल रहे है वहां डिमांड नहीं होने से व्यवसाय की स्थिति काफी कमजोर हो गई है.
बक्सा व्यवसाय पर कोरोना की चोट अनलॉक के बाद भी कोई राहत नहीं
बक्सा कारखाने के मालिक सुनील बताते है कि बक्से का मार्केट 20 फीसदी रह गया है. जैसे तैसे स्वयं और श्रमिकों के घर का गुजारा हो रहा है. एक बुजुर्ग कारखाने के मालिक पंजूमल बताते है कि बक्सों की डिमांड नहीं होने से उन्हें अपना काम बंद करना पड़ा और 2 जून की रोटी कमाने के लिए अपने भतीजे के कारखाने में काम करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि वह 30 वर्षों से बक्सा व्यवसाय से जुड़े हुए हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा बुरा वक्त पहले कभी नहीं देखा है. हालात यह है कि खाने के भी लाले पड़ गए हैं.
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लोहे के बक्सों में लोग कीमती सामान रखा करते है ताकि वह सुरक्षित रहे. लेकिन बक्सा व्यवसाय का वर्तमान और भविष्य दोनों ही असुरक्षित नजर आ रहा है. कारखाने में बुजुर्ग श्रमिक रामचन्द्र अडवाणी ने बताया कि वह 60 वर्षो से कारखाने में काम कर रहे है. लेकिन ऐसे हालात कभी नहीं देखे. लॉकडाउन के समय कमाई बंद थी.
बक्सा बनाते बुजुर्ग श्रमिक अब अनलॉक होने के बाद भी खाने को मोहताज हो गए हैं. उन्होंने बताया कि सरकार से वृद्धावस्था पेंशन 700 रुपए मिलते है, जिसमें एक वक्त का गुजारा होता है. अजमेर का प्रसिद्ध बक्सा व्यवसाय को कोरोना ने वेंटिलेटर पर पहुंचा दिया है. बाजार की मंदी और लोगों में खरीदारी को लेकर सुस्ती की वजह से बक्सा व्यवसाय पर आर्थिक संकट से जूझ रहा है.