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स्पेशल: मित्र कीट और फफूंद से खेतों में हो रहा कीटों का सफाया, जैविक खेती को मिल रहा बढ़ावा - Fungal and friendly pests

प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके लिए किसानों को जैविक खेती के उन्नत तरीकों के प्रति जागरुक भी किया जा रहा है. राजस्थान में 10 राज्य कृषि जलवायु कृषि ग्राह्य परीक्षण केंद्र हैं. जहां जैविक खेती को बढ़ावा देने के साथ फफूंद और किट मित्रों की सहायता से फसलों को होने वाले रोग से बचाने के परीक्षण किए जाते हैं. खास बात यह है कि इस प्रक्रिया में रसायन का उपयोग नहीं होता. भूमि उपचार और कई फसलों में कीट को खत्म करने के लिए यह जैविक प्रक्रिया कई फसलों में अच्छी पैदावार के लिए कारगर साबित हो रही है.

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फफूंद और मित्र कीट से जैविक खेती को मिल रहा बढ़ावा

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Published : Mar 3, 2021, 5:36 PM IST

अजमेर.फसलों को बीमारियों और कीटों से बचाने के लिए घातक रसायनों का उपयोग किया जाता है. यह रसायन हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक हैं, या यूं कहें कि हमारे भोजन की थाली में घातक रसायन जहर के रूप में होते हैं. कीटनाशक के तौर पर रसायन के उपयोग से किसानों को अच्छी पैदावार तो मिल रही है, लेकिन लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. यही वजह है कि अब सरकार भी जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है.

फफूंद और मित्र कीट से जैविक खेती को मिल रहा बढ़ावा

ऐसी कहावत है कि जहर को जहर से और लोहे को लोहे से काटा जाता है. ठीक उसी तरह फफूंद और कीट मित्र से भूमि बीज उपचार और फसलों पर लगने वाले कीट को जैविक तरीके से खत्म किया जाता है. अजमेर में तबीजी स्थित कृषि ग्राह्य परीक्षण केंद्र है, जिसका मूल उद्देश्य कृषि विश्वविद्यालयों में किए गए अनुसंधान का मूल्यांकन और उसका परीक्षण कर उसे जैविक खेती के लिए उपयोगी भी बनाना है. परीक्षण केंद्र में प्रदेश के कई अन्य जिले और राज्यों से भी किसान जैविक तरीके से भूमि उपचार और कीटों का सफाया करने के बारे में सीखने आते हैं.

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प्रयोगशाला में तीन प्रकार की फफूंद होती है तैयार

  1. प्रयोगशाला में तीन प्रकार की फफूंद तैयार की जाती है. इनमें ट्राइकोड्रमा, मेटाराइजियम और डवेरिया शामिल हैं. प्रयोगशाला में तीन प्रकार की फफूंद को बनाने में एक महीने का वक्त लगता है. ट्राइकोड्रमा यानी फफूंद फसलों की जड़ों को काली होने से रोकती है. इसका उपयोग तिलहन और दलहन की फसलों के लिए किया जाता है. फफूंद के माध्यम से भूमि और बीच का उपचार किया जाता है.
  2. दूसरी मेटाराइजियम (फफूंद), जिसका उपयोग फसलों को दीमक से बचाने के लिए होता है. साथ ही बेवारिया (सफेद लट) के सफाए के लिए भी यह कारगर है.
  3. तीसरी डवेरिया (फफूंद), जो बाजरा, मक्का और जीरा सहित कई फसलों को सफेद कीट से बचाती है. इसका उपयोग भूमि के उपचार के लिए किया जाता है.
  4. तीनों प्रकार की फफूंद किसानों के लिए काफी सस्ती है. एक हेक्टेयर जमीन में मात्र 300 रुपए का खर्चा आता है. जबकि रसायन का खर्च तीन हजार आता है. इसमें खास बात यह है कि इसका असर कई साल तक रहता है. यह पर्यावरण मित्र की तरह कारगर है.

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अजमेर में कृषि ग्राह्य परीक्षण केंद्र के पास तीन प्रकार की फफूंद और कीट मित्रों के अंडों को बेचने का लाइसेंस नहीं है. लिहाजा जैविक खेती में रुचि रखने वाले किसानों को केंद्र की ओर से निशुल्क फफूंद के पैकेट और कीट मित्र के अंडों की स्टिप दी जाती है. अब बात करें कीट मित्र की तो टमाटर, बैंगन, फूलगोभी, चना और कपास की फसल को सुंडी (लट) से बचाने के लिए विशेष प्रकार का कीट है.

मित्र कीट

प्रयोगशाला में कीट मित्रों के प्रजनन से तैयार अंडे को कागज की स्टिप पर लगाकर दिया जाता है. सुंडी (लट) के अंडों में अपना अंडा बनाकर किट मित्र उनका सफाया करता है. ढाई स्टिप में करीब 50 हजार अंडे होते हैं. प्रयोगशाला में इन कीट मित्रों के अंडों की स्टिप तैयार की जाती है. जैविक खेती की ओर बढ़ना भविष्य की आवश्यकता है. ऐसे में जैविक खेती को कारगर और उन्नत बनाने के प्रयास जारी हैं. वहीं कम खर्च में ज्यादा उत्पादन लेने पर भी जोर दिया जा रहा है. यही वजह है कि भूमि की उर्वरता को बनाए रखने के साथ-साथ जैविक तरीके से कीटनाशक भी कृषि के लिए कारगर साबित हो रहे हैं.

किसानों के लिए वरदान

ग्राह्य परीक्षण केंद्र का उद्देश्‍य

ग्राह्य परीक्षण केन्द्रों का मुख्य उद्देश्‍य राज्य के कृषि विश्‍वविद्यालयों के अधीन कार्यरत कृषि अनुसंधान केन्द्रों से प्राप्त नवीनतम कृषि तकनीकी अनुसंधान सिफारिशों का विभिन्न कृषि जलवायुवीय क्षेत्रों में अग्रिम सत्यापन करना है, जिससे इनकी अधिकतम ग्राह्यता तथा कृषकों को अधिक से अधिक आर्थिक लाभ मिल सके. इन केन्द्रों पर कृषि जलवायु खण्ड की अनुसंधान सिफारिशों का स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार कृषि विस्तार कार्यकर्ताओं से प्राप्त फीडबैक के आधार पर उपयोगिता का पता लगाने के लिए परीक्षण के माध्यम से संशोधन किया जाता है. व्यवहारिक और उपयोगी पाए जाने पर उन्हें कृषि जलवायुविक खंडवार की पैकेज ऑफ प्रैक्टिस में शामिल किया जाता है. इन केन्द्रों के जरिए क्षेत्रीय स्तर पर प्राप्त कृषि संबंधित सामयिक विशिष्ट समस्याओं पर ऑब्जरवेशनल परीक्षणों का आयोजन कर उनका समाधान किया जाता है. इसके अतिरिक्त ग्राह्य परीक्षण केन्द्रों पर निम्नानुसार गतिविधियां आयोजित की जाती हैं.

प्रयोगशाला में तीन प्रकार की फफूंद होती है तैयार

गतिविधियां

  1. कृषकों और विस्तार कार्यकर्ताओं को नवीन तकनीकी ज्ञान देने एवं उनकी समस्या-समाधान के लिए प्रशिक्षण आयोजित किए जाते हैं.
  2. किसान मेला और प्रदर्शन आयोजित कर नई तकनीक प्रसार के लिए परीक्षणों को सीधे ही किसानों को दिखाकर लाभान्वित किया जाता है.
  3. निजी क्षेत्र की संकर/उन्नत किस्म के बीज एवं अन्य आदानों की ग्राह्यता की जांच ग्राह्य परीक्षण केन्द्रों पर की जाती है.
  4. इन केन्द्रों पर मॉडल जैविक फार्म विकसित किए जाकर केन्द्र और कृषक क्षेत्र पर परीक्षणों व प्रदर्शनों का आयोजन कर जैविक खेती की उन्नत तकनीक विकसित की जा रही है.
  5. समन्वित कीट-व्याधि प्रबन्धन के लिए जैव-कारकों का उत्पादन, केचुंआ संवर्धन और वर्मी कम्पोस्ट सहित जैव आदानों के उत्पादन की ईकाइयां स्थापित की गई हैं.
  6. मौसम में बदलाव के साथ क्षेत्र में सम्भाव्य कीट-व्याधि प्रकोप की वस्तुस्थिति जानने के लिए विस्तार अधिकारियों के साथ नियमित सर्वे किया जाता है.
  7. राजस्थान राज्य बीज निगम के माध्यम से बीज उत्पादन का कार्यक्रम भी लिया जाता है.

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ग्राह्य परीक्षण केन्द्रों रामपुरा (जोधपुर), हनुमानगढ़, आबूसर (झुंझुनू), तबीजी (अजमेर), मलिकपुर (भरतपुर), चित्तौड़गढ़ और छत्रपुरा (बूंदी) पर कीट-व्याधि प्रबन्धन (आईपीएम) प्रयोगशालाएं स्थापित हैं. इन प्रयोगशालाओं में बायो-एजेण्ट्स जैसे ट्राईकोडर्मा, बावेरिया, मेटेरिजम, ट्राईकोग्रामा, एनपीवी आदि पर अनुसंधान किया जा रहा है.

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