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स्पेशल: कोरोना ने रोकी घोड़ों की थाप...तो 60 से 70 परिवारों पर गहराया रोजी रोटी का संकट

देशभर में कोरोना के फैलते संक्रमण के बीच सभी व्यापार की हालत खराब हो गई है, इसमें तांगा गाड़ी का व्यापार शामिल है. इस व्यापार जगत से जुड़े गरीब तबके के लोगों का जीवन-यापन करना दुसवार हो गया है. ऐसे में 2 महीने से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद अब ना तो उनके पास खाने के लिए कुछ है और ना ही जानवरों को खिलाने के लिए. राजस्थान के अजमेर में ऐसे 60 से 70 परिवार है, जिन पर उनका और उनके परिवार का पेट पालने पर संकट आन पड़ा है.

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Published : May 21, 2020, 7:58 PM IST

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कोरोना ने तोड़ी तांगा गाड़ी की कमर

अजमेर.देशभर में कोरोना संक्रमण के बीच हुए लॉकडाउन की मार ऐसी पड़ी कि गरीब तबके के लोगों को खाने के लाले पड़ गए है. इस लॉकडाउन के चलते उनकी आर्थिक स्थिति पूर्ण रूप से चरमरा गई है. उनका जीवन-यापन करना तक दुसवार हो गया है. ऐसे में ना ही अब उनके पास खाने के लिए कुछ बचा है और ना ही उनके पास जानवरों को खिलाने के लिए कुछ बचा है. जी हां हम बात कर रहे है, राजस्थान के अजमेर शहर की, जहां लगभग 70 से 80 तांगा गाड़ी चलती है. इसी से इन गरीबों का परिवार चलता है, लॉकडाउन के चलते अब इनके पास खाने को कुछ नहीं है.

कोरोना ने तोड़ी तांगा गाड़ी की कमर

लॉकडाउन के हुए 2 महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है, जिससे देश के तमाम छोटे-मोटे व्यापार करने वालों का संतुलन बिगड़ चुका है. इससे उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है. जानकारी के अनुसार, शहर में लगभग 60 से 70 परिवार इस तांगा गाड़ी से चलती है, जिससे ये रोजाना के 600 रुपए की कमाई कर लेते थे और इनमें 300 रुपए प्रतिदिन जानवरों पर खर्च किया करते थे. लेकिन अब ना तो इनके पास कमाई बची है और ना ही पैसे का कोई और जरिया, जिससे ये अपना और अपना परिवार का पेट पाल सके. ऐसी स्थिति में ये उन जानवरों का पेट कहा से पाले, जिसके चलते ये रोजाना अपना पेट पालते थे.

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इस महामारी के चलते अब धीरे-धीरे तांगा गाड़ी का व्यापार अंधकार में डूबता जा रहा है. अब तो ये कहना मुश्किल है कि ये तांगे का व्यापार इस अंधेरे से ऊबर भी पाएगा या नहीं. क्योंकि, इस लॉकडाउन के चलते ना तो सड़कों पर पर्यटक नजर आ रहे हैं और ना ही धार्मिक स्थानों पर श्रद्धालु, अब ऐसे में यह व्यापार एकदम डूबता ही जा रहा है. अब तो इंसानों के साथ साथ जानवरों का भरण-पोषण भी नहीं हो पा रहा है.

तांगा चालक प्रहलाद ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि 50 से 60 साल का समय बीत चुका है, जब से वह तांगा गाड़ी चलाकर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहा है. लेकिन अब स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि ना तो वह अपना पेट भर पा रहा है और ना ही जानवर का. उसने बताया कि अजमेर शहर की बात की जाए तो शहर में लगभग 70 से 80 तांगा गाड़ी चलती है, लेकिन इस महामारी के चलते कोई भी व्यक्ति सड़कों पर नजर तक नहीं आ रहा है.

सरकार की ओर से नहीं मिली राहत

प्रहलाद ने कहा कि संकट की इस घड़ी में सरकार की ओर से तांगा गाड़ी चलाने वालों को किसी भी प्रकार की राहत और आर्थिक सहायता नहीं दी गई है, जिसके चलते अब उन पर रोजी-रोटी पर संकट आ चुका है. वहीं, प्रहलाद ने जानकारी देते हुए बताया कि तांगा गाड़ी चलाने वाला व्यक्ति दिन भर में 600 रुपया कमा लेता है, जिसमें से 300 रुपए जानवर पर खर्च होते हैं, लेकिन 2 महीने से एक भी रुपया नहीं कमाया गया तो जानवर को अब कैसे खिलाए? अब कहीं ऐसा ना हो कि लॉकडाउन के चलते धीरे-धीरे यह व्यापार ही खत्म हो जाए.

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