अजमेर. वसुंधरा सरकार के दौरान (Vasundhara Raje scheme in Rajasthan) अजमेर में साइकिलिंग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बायसाइकिल शेयरिंग स्कीम लागू की गई थी, लेकिन स्मार्ट सिटी बन रहे शहर में बायसायकल शेयरिंग स्कीम की हवा कुछ महीनों में ही निकल गई. दुकानदारों की ओर से घंटे के हिसाब से साइकिल किराए पर देने वाले पुराने ढर्रों में 4 वर्ष गुजर जाने के बाद भी कोई बदलाव नहीं आया. बल्कि शहर में 9 साइकिल स्टैंड में से अब केवल दो ही बाइसाइकिल स्टैंड कार्य कर रहे हैं.
पहले के जमाने में लोग किराए पर छोटी-बड़ी साइकिल लेकर अपने जरूरी गंतव्य पर जाया करते थे. बच्चों में साइकिल चलाने को लेकर जबरदस्त उत्साह रहता था. हालात ये होते थे कि कई बार तो किराए पर साइकिल लेने के लिए घंटों अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता था. अजमेर विकास प्राधिकरण की ओर से वसुंधरा सरकार में साइकिल शेयरिंग स्किम लॉन्च की गई थी. स्किम का उद्देश्य पर्यावरण को दूषित होने से बचाना और लोगों को साइकलिंग से जोड़कर स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना था. लेकिन स्किम के लांचिंग के तीन महीने बाद ही इसकी हवा निकल गई.
'पंचर' हुआ बायसाइकिल शेयरिंग स्कीम 9 में से तीन स्टैंड कार्य कर रहे : शहर में 10 बायसाइकिल स्टैंड बनाए गए थे. इनमें से एक राजा साइकिल चौराहा स्थित साइकिल स्टैंड को हटा दिया गया. 9 साइकिल स्टैंड तीन माह तक संचालित हुए और धीरे-धीरे केवल दो साइकिल स्टैंड तक सीमित हो गए. वर्तमान में तीन साइकिल स्टैंड काम कर रहे हैं. बता दें कि दिल्ली की एक फर्म को साइकिल स्टैंड का ठेका दिया हुआ है. साइकिलों के रखरखाव के साथ स्टैंड के मेंटेनेंस की जिम्मेदारी भी फर्म की है. इसकी एवज में फर्म को स्टैंड के ऊपर विज्ञापन लगाने की अनुमति दी गई है. जिससे वो हर स्टैंड की आय विज्ञापन से हासिल कर सकता है. लंबे समय से 9 में से सात साइकिल स्टैंड बंद पड़े उनके ऊपर लगे विज्ञापन जरूर आ रहे हैं जिससे फर्म को आय हो रही है. बावजूद इसके शेष स्टैंड को एक्टिव नहीं किया जा रहा है.
साइकलिंग को लेकर जागरूकता की कमी: स्टैंड पर कार्यरत कर्मचारी बताते हैं कि सर्दी के दिनों में लोगों में साइकिल चलाने को लेकर उत्साह रहता है. तेज गर्मी होने की वजह से पर्यटकों का आना भी कम हो गया है. वहीं आमजन भी साइकिल चलाने में रुचि नहीं लेते हैं. दिन भर में 5 से 6 लोग साइकिल किराए पर लेते हैं. उन्होंने बताया कि फर्म ने 10 रुपए प्रति घंटा साइकिल किराए पर देना निर्धारित किया है. किराए पर साइकिल लेने वाले व्यक्ति से उसका आधार कार्ड जमा करवाया जाता है, जिसके बाद उसे साइकिल दी जाती है. साइकिल लौटाने पर उससे किराया लिया जाता है और उसे उसका आधार कार्ड वापस दे दिया जाता है.
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अगर दूसरा पहलू देखें तो लोगों में साइकिलिंग को लेकर रुचि कम है. सरपट दौड़ते दुपहिया और चौपहिया वाहनो में सफर आसान होता है. ये सोच लोगों को साइकिल से नहीं जोड़ पा रही है. लोगों में जागरूकता की कमी बायसाइकिल शेयरिंग स्किम के क्रियाशील बनने में रोड़ा बनी हुई है. साइकिल के शौकीन लोगों का कहना है कि एडीए की ये बहुत अच्छी स्किम है, जिसमे मात्र 10 रुपए में लोग साइकिल किराए पर ले सकते हैं. उन्होंने बताया कि कोरोना के समय जब कुछ में छूट मिली थी तब लोगों ने साइकिल चलाने में रुचि दिखाई थी, लेकिन साइकलिंग को निरंतर नहीं रख सके. निरंतर साइकिल चलाने से स्वास्थ्य बेहतर होता है, बल्कि शरीर के जॉइंट्स भी अच्छे रहते हैं.
बायसाइकिल शेयरिंग नहीं होना भी बना कारण:अजमेर में बायसाइकिल स्किम लॉन्च होने के बाद से ही शेयरिंग शब्द को ग्रहण लग गया. स्मार्ट सिटी हो रहे अजमेर का विकास प्राधिकरण शेयरिंग की व्यवस्था नहीं बना पाया. ये भी स्किम के फेल होने का एक बड़ा कारण है. दरसल यदि कोई व्यक्ति आनासागर चौपाटी से साइकिल किराए पर लेता है और वो पुष्कर रोड आ गया है तो उसे वापस साइकिल जमा कराने के लिए आना पड़ेगा. जबकि शेयरिंग सिस्टम में व्यवस्था थी कि साइकिल लेने वाला व्यक्ति अगले किसी भी स्टैंड पर साइकिल जमा करवा सकता है. महंगे पेट्रोल-डीजल के दामों और बेतरतीब जीवनशैली के कारण वक़्त की जरूरत साइकलिंग बन चुकी है. लेकिन जरूरत जागरूकता की है. इस बारे में प्रयास नहीं हो रहे हैं. यही वजह है कि साइकिल स्टैंड बंद होने के बाद भी आय जारी है. लेकिन मकसद अधूरा ही है.