जयपुर.राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर भर्ती- 2015 का रिकॉर्ड तलब किया है. इसके साथ ही अदालत ने एकलपीठ की ओर से चयन कमेटी को दिए आदेश की क्रियान्विति पर रोक लगा दी है. मुख्य न्यायाधीश एस रविंद्र भट्ट और न्यायाधीश जीआर मूलचंदानी की खंडपीठ ने यह आदेश आरयूएचएस की ओर से दायर अपील पर सुनवाई करते हुए दिए.
अपील में अधिवक्ता रवि चिरानिया अदालत को बताया कि आरयूएचएस ने वर्ष 2015 में प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर की भर्ती निकाली थी. दिसंबर 2016 में भर्तियों के साक्षात्कार भी हो गए. चयन समिति की ओर से विश्वविद्यालय को भर्ती का परिणाम भी दिया गया. लेकिन, समिति की ओर से किसी भी अभ्यर्थी के चयन की सिफारिश नहीं की गई. जिसके चलते अभ्यर्थियों को नियुक्तियां नहीं दी गई.
हाईकोर्ट में मामला आने पर एकलपीठ ने गत 11 अप्रेल को आदेश जारी कर चयन समिति को अभ्यर्थियों को नियुक्त करने की सिफारिश करने को कहा. जिसे खंडपीठ में चुनौती देते हुए कहा गया कि एकलपीठ के आदेश को अवैध घोषित किया जाए. अपील में कहा गया कि नियुक्ति की सिफारिश किए बिना नियुक्तियां नहीं हो सकती हैं. वहीं चयन समिति भी समाप्त हो चुकी है. इसके अलावा दूसरी किसी चयन समिति को सिफारिश करने का अधिकार नहीं है. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने भर्ती का रिकॉर्ड तलब करते हुए एकलपीठ के आदेश पर रोक लगा दी है.
राजस्थान हाईकोर्ट ने बाल अपचारियों की जमानत अर्जियों पर सुनवाई
राजस्थान हाईकोर्ट ने बाल अपचारियों की जमानत अर्जियों पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की ओर से संबंधित प्रकरण के शिकायतकर्ता को नोटिस जारी करने के प्रावधान पर केंद्र सरकार, राज्य सरकार और हाईकोर्ट प्रशासन सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. मुख्य न्यायाधीश एस रविंद्र भट्ट और न्यायाधीश जीआर मूलचंदानी की खंडपीठ ने यह आदेश इंडिया फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.
याचिका में अधिवक्ता दीपक चौहान ने अदालत को बताया कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 12 के तहत बाल अपचारियों को जमानत का अधिकार है. उन्हें केवल इसी आधार पर ही जमानत देने से इनकार किया जा सकता है कि वह बाहर निकल कर फिर से कुसंगत में पड़ सकते हैं. किशोर न्याय बोर्ड और बाल न्यायालय की ओर से जमानत नहीं देने पर हाईकोर्ट में अधिनियम की धारा 102 के तहत जमानत प्रार्थना पत्र पेश किया जाता है. जिसके तहत शिकायतकर्ता व्यक्ति को नोटिस जारी किए जाते हैं.
वहीं नोटिस तामिल होने के बाद ही बाल अपचारी की अर्जी को निस्तारित किया जाता है. जिसमें अनावश्यक विलंब होता है. याचिका में इस प्रावधान को चुनौती देते हुए कहा गया कि संबंधित शिकायतकर्ता को नोटिस जारी होकर तामिल होने तक बाल अपचारी को अनावश्यक अभिरक्षा में रहना पड़ता है. ऐसे में इस प्रावधान को समाप्त किया जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.