जयपुर. लोकसभा के चुनावी जमीन पर सियासी बिसात बिछाते हुए भाजपा ने गठबंधन समेत 24 सीटों पर राजनीतिक तस्वीर साफ कर दी है. पार्टी स्तर पर बांटे गए टिकटों में सबसे ज्यादा चर्चा बाड़मेर सीट की बनी हुई है. पांच साल पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले सांसद कर्नल सोनाराम की तमाम दावेदारी और मेल-मुलाकात के बाद भी पार्टी अलाकमान ने आखिरकार उनका टिकट काट दिया. बाड़मेर सीट पर भाजपा ने कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह के सामने पूर्व विधायक कैलाश चौधरी को टिकट देकर बड़ा दांव खेला है. वहीं, सियासी हलकों में कर्नल सोनाराम का टिकट कटने के पीछे विधानसभा में हार समेत कई कारणों को प्रमुख माना जा रहा है.
कर्नल सोनाराम को भाजपा ने 'यूं' नहीं दिया टिकट - Colonel Sonaram
लोकसभा के चुनावी जमीन पर शुरु हुए घमासान के बीच बाड़मेर सीट पर भाजपा ने टिकट की घोषणा करते हुए कर्नल सोनाराम को बड़ा झटका दिया है....
भाजपा ने प्रत्याशियों की तीसरी सूची जारी करते हुए बाड़मेर सीट पर पत्ते खोल दिए हैं. पार्टी के स्तर पर किए गए निर्णय के बाद कर्नल सोनाराम और उनके समर्थकों तगड़ा झटका लगा है. इस सीट से टिकट की दौड़ में शामिल कर्नल सोनाराम अपने समर्थकों के साथ जयपुर से लेकर दिल्ली तक पार्टी के बड़े नेताओं से मुलाकात करते हुए खुद को मजबूत प्रत्याशी बताने का दावा करते रहे. टिकट के लिए उन्होंने बड़ी संख्या में समर्थक लेकर जयपुर पहुंचकर प्रदेशाध्यक्ष मदनलास सैनी से भी मुलाकात की थी. लेकिन, उनके सारे प्रयास धरे के धरे रह गए. इस सीट के हर समीकरण पर मंथन करने के बाद भाजपा ने कर्नल सोनाराम के टिकट को काट दिया. राजनीति के जानकारों का कहना है कि सोनाराम को दोबारा टिकट नहीं मिलने के पीछे चार महीने पहले विधानसभा चुनाव में मिली हार प्रमुख कारण रहा है. जबकि, टिकट वितरण से पहले सोनाराम का सीएम अशोक गहलोत से मुलाकात करने पहुंचने और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की अंदरखाने ना को भी मुख्य कारण माना जा रहा है. उनका कहना है कि बाड़मेर विधानसभा सीट से हुई चुनावी हार ने लोकसभा के लिए उनकी दावेदारी को कमजोर कर दिया था.
उस चुनाव में हारने के बाद कर्नल सोनाराम ने भी मीडिया से बातचीत के दौरान माना था की उन्होंने चुनाव लड़कर बड़ी भूल कर दी थी. जानकारों का मानना है कि टिकट को लेकर लग रहे कयासों के बीच सोनराम के जोधपुर में सीएम अशोक गहलोत से मुलाकात करने के लिए पहुंचने के बाद उनकी दावेदारी और कमजोर हुई. हालांकि, इस दौरान सोनाराम की सीएम गहलोत से मुलाकात नहीं हो पाई थी. लेकिन, उनके इस कदम ने पार्टी के भीतर विरोधियों को मौका दे दिया था. हालांकि मानवेंद्र के मैदान में आने के बाद सोनाराम के लिए उम्मीद की किरणें जगी थी. लेकिन, विधानसभा चुनाव में मिली हार और पूर्व सीएन वसुंधरा राजे की ना के चलते आखिरकार उनका नाम कट गया. सूत्रों का कहना है कि विधानसभा के बाद सोनाराम को दोबारा टिकट देने के पक्ष में वसुंधरा राजे भी नहीं थी.