विदिशा.शहर में स्थित प्रसिद्ध मंदिर मां ज्वाला देवी शक्तिपीठ जाना माना नाम है. नवरात्री के मौके पर हम प्रदेश के इस सबसे चर्चित मंदिर के बारे में बात कर रहे हैं. यहां जो भी भक्त मनोकामना लेकर पहुंचता है, तो कभी खाली हाथ नहीं लौटता. इस मंदिर में मान्यता है कि यहां माता ज्वाला देवी एक दिन में तीन बार रूप बदलती हैं. ज्वाला देवी शक्तिपीठ मां दिन में तीन रूप बदलती है. रात 8:00 बजे से 12:00 बजे तक 35 वर्ष की आयु और दोपहर 12 से 4 बजे में बुजुर्ग का रूप लेती हैं. शाम 4:00 से 7:00 बजे में कन्या का रूप लेती हैं.
यहं सालों से दर्शन करते आ रहे, पं. रामेश्वर दयाल ने बताते हैं, कि मुस्लिम जागीरदार ने इस मंदिर को जमीन दान में दी थी. फिर इसके बाद ही यहां मंदिर का निर्माण हुआ था. दुर्गा नगर कभी पूरा जंगल था. जीवाजी राव सिंधिया ने इस जमीन को दरगाह के लिए यह जमीन दान में दी थी. इसके बाद मुस्लिम समाज के शरीफ जागीरदार ने दुर्गा मंदिर के निर्माण हेतु यह जमीन दान में दे दी थी. उत्तर प्रदेश के पूर्व सांसद स्वर्गीय मुनव्वर चौधरी सलीम भी यहां पर चुनरी चढ़ाने आते थे.
शरीफ भाई जागीरदार ने दी थी जमीन और कलदार रुपये भी दिये:
1958 में मुस्लिम समाज के शरीफ जागीरदार जिनके पास विदिशा शहर की जो वर्तमान में दुर्गा नगर के नाम से जाना जाता है. इस क्षेत्र की पूरी जमीन हाजीवली तालाब सहित, भू स्वामित्व में थी. उन्होंने दुर्गामंदिर के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं. क्षेत्र के धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों द्वारा विशेषकर श्री हरिसिंह सोलंकी द्वारा नई नई बस्ती बनती जाने वाले इलाके में एक मन्दिर की जरूरत महसूस की थी और एक छोटे से चबूतरे पर मां दुर्गा जी के साथ श्री हनुमानजी, भैरोजी की प्रतिमा विराजित करके पूजा ऋचा शुरू करवा दी थी. पूजन हेतु श्री पंडित प्रभु दयाल को , जो मूलतः पीपलखेड़ा गांव के रहने वाले थे, निरंजन वर्मा के पड़ोस में आकर रहने लगे एवं नीमताल क्षेत्र में पूजापाठ करने लगें थे.
इन्हें बुलाकर नई बस्ती में ले गए और वहां पूजन इन्ही से कराने लगे. इसके पूर्व मन्दिर निर्माण की जब बात आई तो शरीफ भाई जागीरदार ने मन्दिर के लिये भूमि मुफ्त में दान में दे दी. साथ ही मन्दिर के वास्तु की पूजन के समय 11 चांदी के कलदार रुपये भेंट दिये थे. यही रुपये मन्दिर की नींव में रखे गए और भी सोना चांदी आदि विधिविधान के साथ नीव रखी गई. मन्दिर बनने के बाद जो बस्ती बसना शुरू हुई, उसे स्वाभाविक तौर पर दुर्गानगर कहने लगे. एक समय उजाड़ एवं सुनसान सा लगने वाले इलाका आज नए विदिशा की शान बन चुका है. बड़ी बड़ी इमारते, दो-चारमंजिला मार्किट, शानदार शो रूम, दुर्गा नगर को देखते ही बनता हैं.