विदिशा।जिला मुख्यालय से लगभग 7 किलोमीटर दूर विश्वप्रसिद्ध उदयगिरि की पहाड़ी और गुफा है. इस पहाड़ी पर ही प्रदेश की सबसे प्राचीन गणेश की प्रतिमा विराजमान है, जिसे कुछ लोग इन्हें देश की सबसे प्राचीन मूर्ति मानते हैं. यह प्रतिमा पहाड़ी के ऊपर पहाड़ी के पत्थर को काटकर ही उकेरी गई है. यहां 3 गणेश प्रतिमाएं प्रमुख हैं, इनमें से 2 बाल स्वरूप में हैं और तीसरी व्यापक स्वरूप में है. पहली मूर्ति गुफा नम्बर 6 के द्वार पर स्थित है. इसमें गणेश जी का बाल स्वरूप है.
गणेश जी का बाल स्वरूप:दो भुजाओं बाली इस प्रतिमा के मस्तक पर ना तो मुकुट है ना ही हाथों में कुछ धारण किए हैं. दोनों हाथ आराम से पैर के घुटने पर रखे हुए हैं. दूसरी प्रतिमा गुफा नम्बर 17 के बाई ओर है. यह बाल स्वरूप में है. इस प्रतिमा में गणेश जी का बाल स्वरूप है. यह दोनों प्रतिमायें चौथी शताब्दी के अंत और पांचवी शताब्दी के प्रारंभ के समय यानी आज से लगभग 1600 वर्ष पूर्व की हैं जो उदयगिरी पहाड़ी के ऊपर पैदल मार्ग पर विराजमान है.
गुलाबी गणेश की प्रतिमा:इस प्रतिमा में गणेश जी के 4 हाथ हैं, इसमें वह परशु यानी फरसा, पुष्प, माला और मोदक धारण किए हुए हैं. प्रतिमा के नीचे एक भक्त हाथ जोड़े खड़ा है. यह प्रतिमा गणेश जी का व्यापक स्वरूप है, इसमे वह आराम मुद्रा में हैं. यह प्रतिमा 6वीं से 7वीं शताब्दी की है. पुरातत्वविद नारायण व्यास बताते है कि, यह देश की नहीं प्रदेश के सबसे प्राचीन गणेश हैं. इन गुफाओं का निर्माण गुप्तकाल में चौथी शताब्दी के अंत और 5वीं शताब्दी के प्रारम्भ में गुप्तवंश के राजाओं ने कराया था. चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय जिनकी राजधानी मगध थी. उन्होंने जब मालवा क्षेत्र को विजय किया तब उस विजय के उपलक्ष्य में इन गुफाओं का निर्माण उनके सेनापति वीरसेन शाब के द्वारा कराया गया था. इनका कहना है कि गुलाबी रंग इन मूर्तियों पर लगाया गया है. जिससे वह लंबे समय तक सुरक्षित रहे. इन मूर्तियों के लिये गेरू प्रिजर्वेटिव का कार्य करता है, ऐसा ही गेरू यहां मौजूद वराह प्रतिमा में भी लगाया गया था. जो आज भी मौजूद है.