विदिशा। उदयगिरि की अद्भुत गुफाएं पूरे विश्व में प्रसिध्द हैं. उदयगिरि में कुल 20 गुफाएं हैं. इन गुफाओं को जैन मठों के नाम से भी जाना जाता है. यह बीस गुफाएं पहाड़ियों के अंदर बसी हुई हैं, जो हिंदू और जैन-मूर्तिकारी के लिए प्रख्यात हैं. गुफा नंबर 1 और 20 को जैन गुफा माना जाता है.
उदयगिरि गुफाओं की मूर्तियों के विभिन्न पौराणिक कथाओं से संबंध हैं और ज्यादातर गुप्तकालीन हैं.
राजाभोज और सम्राट अशोक से जुड़ा है उदयगिरि का इतिहास
उदयगिरि को पहले चैतयगिरि के नाम से जाना जाता था. कालिदास ने भी इसे इसी नाम से संबोधित किया है. 10वीं शताब्दी में जब विदिशा धार के परमारों के हाथ में आ गया, तब राजा भोज के पौत्र उदयादित्य ने अपने नाम से इस जगह का नाम उदयगिरि रख दिया.
उदयगिरी की पहाड़ी खास इसलिए भी मानी जाती है, क्योंकि यहां चारों दिशाओं में राज करने वाले सम्राट अशोक ने इसी शहर की एक व्यापारी की लड़की से शादी की थी. बताया जाता है कि सम्राट अशोक ने व्यापारी के घर एक रात विश्राम किया था, जहां उन्हें व्यापारी की लड़की से प्रेम हो गया. जिसके बाद सम्राट अशोक ने लड़की से शादी कर ली.
गुफा नंबर 5 में है वराह की 12 फीट ऊंची प्रतिमा
उदयगिरी में कुल 20 गुफाएं हैं. गुफा नंबर 5 में भगवान विष्णु के वराह अवतार की करीब 12 फीट ऊंची प्रतिमा है. जो बहुत ही भव्य और अनूठी है. वराह की यह प्रतिमा शिल्प, स्थापत्य, धर्म-संस्कृति और रचनात्मकता का प्रमाण है.
वराह भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक अवतार है. भगवान विष्णु ने पृथ्वी को राक्षसों के आतंक से मुक्त कराने के लिए वराह के मुंह वाला अवतार लिया था. भगवान ने पृथ्वी पर राक्षसों की फैलाई तमाम गंदगी को अपने मुंह से खींचकर उसका उद्धार किया था. जिसके बाद गंगा-यमुना ने पृथ्वी को फिर से पवित्र किया और देवताओं ने विष्णु के इस लोककल्याणकारी कार्य पर उनकी स्तुति कर पुष्प बरसाए थे. यही पौराणिक कथा 1600 वर्ष पहले गुप्त राजवंश के सबसे पराक्रमी राजा चंद्रगुप्त ने विदेशी राजाओं पर जीत को यादगार बनाने के लिए उदयगिरि की पहाड़ी पर उकेरा था.
विश्व प्रसिद्ध हैं उदयगिरि की गुफाएं सभी गुफाओं की अपनी है खासियत
गुफा नंबर 1 का नाम सूरज गुफा है. इस गुफा में अठखेलियां करती वेत्रवती, सांची स्तूप और रायसेन के किले की शिलाएं स्पष्ट दिखाई पड़ती है. गुफा नंबर 2, एक कक्ष की तरह है, जिसका अब केवल निशान रह गया है. गुफा नंबर 3 में 5 मूर्तियों में से कुछ मूर्तियां चर्तुमुखी है और वनमाला धारण किये हुए हैं. गुफा नंबर 4 में शिवलिंग की प्रतिमा है. इसके प्रवेश द्वार पर एक मनुष्य वीणा वादन में व्यस्त दिखाया गया है. जिसके कारण इस गुफा को बीन की गुफा कहते हैं. गुफा नंबर 5 को वराह गुफा कहते है क्योंकि इसमे वराहवतार की सुन्दर झांकी है. गुफा नंबर 6 के दरवाजे के बाहर दो द्वारपाल, दो विष्णु, एक गणेश और एक महिषासुर-मर्दिनी की मूर्ति बनी हुई है. गुफा नंबर 7 में सिर्फ दो द्वारपालों के चिह्न बचे हैं, जो गुफा नंबर 6 की तरह ही बनायी गयी है. गुफा नंबर 8 का कुछ भी नाम और निशान नहीं बचा है. 9वीं, 10वीं और 11वीं गुफाएं तीनों वैष्णव हैं, जिनमें सिर्फ विष्णु के अवशेष रह गये हैं.
गुफा नंबर 12 वैष्णव गुफा है, इसमें भी भगवान विष्णु की मूर्ति बनाई गई थी. बाहर दो द्वारपाल भी बनाये गये थे. जिनका अब कोई नाम और निशान नहीं बचा है. गुफा नंबर 13 दालाननुमा का मुंह उत्तर की तरफ है. इसके सामने से उदयगिरि पहाड़ी के ऊपर जाने का प्रमुख़ रास्ता है. यह गुफा शेषशायी विष्णु की मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है. मूर्ति की लंबाई 12 फीट है. मूर्ति के सिर पर फारसी मुकुट, गले में हार, भुजबंध व हाथों में कंगन हैं जो वैजयंतीमाला घुटनों तक लंबी है. गुफा के आस-पास और सामने वाली चट्टान पर शंख लिपि खुदी हुई है, जो संसार की प्राचीनतम लिपियों में से एक मानी जाती है. गुफा नंबर 14 का भी कुछ नहीं बचा है. गुफा नंबर 15 और 16 बलुआ पत्थर की गुफ़ाएं हैं जिनकी मूर्तियां नष्ट कर दी गई हैं. गुफा नंबर 17 में दोनों तरफ द्वारपाल हैं, जहां गणेश की मूर्ति के सिर पर मुकुट बना हुआ है. इसके अलावा इसमें महिषासुरमर्दिनी की भी एक मूर्ति स्थापित की गई है. गुफा नंबर 18 की सारी मूर्तियां तोड़ दी गई हैं.
गुफा नंबर 19 उदयगिरि की गुफ़ाओं में सबसे बड़ी है. इसके अन्दर एक शिवलिंग है, जिसकी पूजा स्थानीय लोग आज भी करते हैं. गुफा की छत पर कमल की आकृति बनी हुई है. बाहर दोनों ओर द्वारपालों की दो बड़ी-बड़ी क्षरणयुक्त मूर्तियां है. ऊपर की तरफ एक सुंदर समुद्र मंथन का भी दृश्य है. बीच में मंदराचल को वासुकी नाग के साथ बांधकर एक तरफ देवगण और दूसरी तरफ असुरगण मंथन कर रहे हैं. दरवाजे के चारों तरफ कई तरह की लताएं, बेलें, कीर्तिमुख और आकृतियां खुदी हुई हैं. गुफा नंबर 20 में चार मूर्तियां हैं, जो कमलासनों पर विराजमान हैं. इसके चारों तरफ आभामण्डल और ऊपर छत्र है. इसमें तीन मूर्तियों के नीचे की तरफ जो चक्र है उनके दो शेर आमने-सामने मुंह करके बैठे हुए हैं.