विदिशा। आमतौर पर रावण को लोग राक्षसी प्रवृत्ति वाला मानते हैं, लेकिन एक ऐसा गांव है, जंहा लोग रावण को ही अपना आराध्य मानते हुए पूजा करते हैं, इतना ही नहीं वहां अभिवादन में भी जय लंकेश ही कहते हैं और अपने शरीर पर जय लंकेश लिखवाए हुए हैं, यही वजह है कि यहां प्रथम पूज्य भगवान गणेश नहीं बल्कि प्रथम पूज्यनीय रावण हैं. भले ही देश भर में दशहरे पर रावण दहन किया जाता है, यहां रावण बाबा के मंदिर में रावण की पूजा होती है और भंडारा होता है. विदिशा से 42 किमी दूर रावण गांव हैं, जहां के लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं.
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यहां जय लंकेश से होता है अभिवादन
रावण गांव के अभय तिवारी के घर देखा तो दरवाजे से दीवारों तक पर जय लंकेश लिखा हुआ था, लोगों की रावण के प्रति भक्ति आश्चर्य चकित करती है, स्कूल से लेकर पंचायत भवन तक जिधर भी नजर घुमाएंगे, रावण ही लिखा नजर आएगा. पंडित नरेश पुजारी बताते हैं कि सामने एक पहाड़ी है, जहां एक दानव रहता था, दानव ने अपने पराक्रम के बल पर सभी को पराजित कर दिया था, उससे युद्ध करने वाला कोई योद्धा नहीं बचा था, इसलिए वह रावण से युद्ध करने लंका पहुंच गया, पहाड़ी में गुफा के अंदर से एक सीधा रास्ता लंका जाता है. जो बार-बार लंका जाता रहता था.
मंदिर में विराजित है रावण की लेटी हुई प्रतिमा