विदिशा।भाद्रपद की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है, माना जाता है कि इसी रोज राधा का जन्म हुआ था. इसी कारण मथुरा, वृंदावन और बरसाना में इस रोज बड़ी धूम रहती है, इस दिन को देश के कई मंदिरों में बड़े धूमधाम से उत्सव के रूप में मनाया जाता है. उन्हीं में शामिल है विदिशा का ऐतिहासिक राधा मंदिर, जहां पूरे साल राधा रानी की गुप्त पूजा होती है, लेकिन राधा अष्टमी के रोज भक्तों को मंदिर में प्रवेश दिया जाता है और वो राधारानी के दर्शन कर पाते हैं.
साल में एक बार होते हैं दर्शन
विदिशा नंदवाना इलाके के वृंदावन गली में स्थित प्राचीन राधावल्लभय हवेली का यह मंदिर अपनी अनूठी परंपरा के लिए जाना जाता है. सालभर पुजारी का परिवार गुप्त पूजा करता है आम दिनों में मंदिर में किसी ओर को अनुमति नहीं होती. मंदिर के पुजारी पंडित मनमोहन शर्मा ने बताया कि राधारानी हीरा मोती और रत्नों से जड़े विशेष महल से विराजित हैं, राधा अष्टमी पर उनका भव्य श्रृंगार होता है और 12 बजे मंदिर के पट आम श्रद्धालु के लिए खुलते हैं, पट खुलते ही जन्म आरती का आयोजन किया जाता है, जिसके बाद पूरा दिन लोगों का आना जाना लगा रहता है.
औरंगजेब से बचाकर लाई गई थी मूर्ति
जानकार बताते हैं कि पहले यह मूर्तियां वृंदावन धाम श्रीजी घाट रंगिरायजी के नाम बने प्रसिद्ध मंदिर में विराजमान थीं, लेकिन 1969 में जब मुगल आक्रात्मक औरंगजेब हिंदू मंदिरों को निशाना बना रहा था, तो यह मंदिर भी उसके निशाने पर था. उस समय मंदिर के सेवक प्रतिमाओं को बचाने के लिए उन्हें लेकर अनजान रास्तों पर चल पड़े. किसी तरह बचते हुआ राधा मंदिर के सेवक विदिशा पहुंचे जहां प्रतिमाओं को हवेली में विराजित कर दिया गया, जिसे बाद में राधावल्लभीय हवेली कहा जाने लगा.