भोपाल। विदिशा जिले की सिरोंज विधानसभा सीट मध्यप्रदेश की उन विधानसभा सीटों में से हैं. बीजेपी के संकट काल में भी जहां कमल खिलता रहा है. दिगंवत बीजेपी नेता लक्ष्मीकांत शर्मा का परिवार इस सीट पर एक अर्से से राजनीति का रुख तय करता रहा है. 1993 के बाद से लगातार इस सीट से लक्ष्मीकांत शर्मा चुनाव जीते हैं. 2018 से लक्ष्मीकांत शर्मा के भाई उमाकांत शर्मा इस सीट से विधायक हैं. जनता में बीजेपी के साथ इस परिवार का दबदबा है, लेकिन क्या 2023 में भी इस परिवार का दबदबा रह पाएगा. अपनी ही पार्टी में हाशिए पर पड़े उमाकांत शर्मा को क्या फिर बीजेपी यहां से उम्मीदवार बनाएगी.
क्या शर्मा परिवार के बगैर सिरोंज में खिल पाएगा कमल: दिवंगत बीजेपी नेता लक्ष्मीकांत शर्मा ने 1993 के विधानसभा चुनाव में पहली बार सिरोंज विधानसभा सीट जीतकर ऐसा अंगद का पांव जमाया कि सीन फिर पूरे बीस साल बाद 2013 में जाकर ही बदल पाया. ये वो समय था कि जब लक्ष्मीकांत शर्मा पर व्यापम घोटाले के छींटे पड़ने शुरु हुए थे. हांलाकि जीत हार का अंतर केवल 1584 वोटों का था. कांग्रेस के गोवर्धन उपाध्याय से शर्मा को मात मिली थी. कहा ये भी गया था कि लक्ष्मीकांत शर्मा को ये चुनाव जानबूझकर हरवाया गया है. 2013 के चुनाव हार जाना लक्ष्मीकांत शर्मा की राजनीति का अवसान कहा जा सकता है. व्यापम मामले में जेल और फिर लगातार उलझते जाने के बाद वे फिर इससे उबर ही नहीं पाए.
सिरोंज सीट पर शर्मा परिवार का दबदबा: साल 2018 के विधानसभा चुनाव में जब लग रहा था कि लक्ष्मीकांत शर्मा फिर सक्रीय राजनीति में वापसी करेंगे. पार्टी ने उनका टिकट काट दिया. लक्ष्मीकांत शर्मा के भाई उमाकांत शर्मा को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया. इलाके में शर्मा परिवार का दबदबा और लक्ष्मीकांत शर्मा की बनाई जमीन का नतीजा ये हुआ कि उमाकांत शर्मा 34 हजार 734 मतों से चुनाव जीत गए. उमाकांत शर्मा ने कांग्रेस से अपनी निकटतम प्रतिद्वंदी मर्सरत शाहिद को चुनाव में हराया था. सिरोंज की राजनीति में 90 के दशक से शर्मा परिवार का पूरा दखल है. यहां जीत कितनी बड़ी होगी और हार कितनी बड़ी ये इससे तय होता रहा है कि शर्मा परिवार का उम्मीदवार मैदान में है. लेकिन क्या ये परंपरा अब बरकरार रह पाएगी. उमांकात शर्मा अपनी अनदेखी को लेकर कई बार अपने ही पार्टी संगठन को कटघरे में खड़ा करते रहे हैं. उन्होंने सरकार से मिली सुरक्षा भी वापस कर दी है और आरोप लगाया है कि सिंरोंज की जनता उनके साथ है, लेकिन प्रशासन उनकी जरा नहीं सुनता. जबकि प्रदेश में बीजेपी की ही सरकार है.
सिरोंज में दावेदारों का दम राम रोजगार कथा भी: सिरोंज विधानसभा सीट पर 2023 की चुनावी तस्वीर क्या होगी. क्या 1993 से लगातार सिरोंज में बीजेपी को जीत दिला रहे शर्मा परिवार से ही उम्मीदवार होंगे. क्या ब्राम्हण चेहरे पर पार्टी दांव लगाएगी. लक्ष्मीकांत शर्मा के निधन के बाद का ये चुनाव है. सहानुभूति का वोट लक्ष्मीकांत शर्मा के छोटे भाई उमाकांत शर्मा के खाते में जा सकता है. लेकिन उमाकांत शर्मा पार्टी में लगातार हाशिए में रहने के बाद सब्र भी खो चुके हैं. वो पुल भी तोड़ चुके हैं. पार्टी की गुटबाजी को लेकर बेबाक बयान दे चुके उमाकांत शर्मा का टिकट कट भी सकता है. बशर्ते वो पार्टी की मजबूरी ना बन जाएं. हालांकि जिस तरह से सिरोंज की राजनीति में इस परिवार का दबदबा है, ये इतना आसान भी नहीं होगा, लेकिन दावेदारों ने संभावनाएं तलाशनी शुरु कर दी है. राम रघुंवशी जैसे पार्टी के प्रकोष्ठ से जुड़े नेता उसी संभावना पर काम कर रहे हैं. इस दावे के साथ राम रघुवंशी इलाके में अपनी चुनावी जमीन तैयार कर रहे हैं कि चुनाव में दावेदारी के पहले वे पांच हजार नौजवानों को रोजगार दिलाने का संकल्प लेकर अपनी जमीन तैयार कर रहे हैं. इस कैम्पेन को उन्होंने राम रोजगार कथा नाम दिया है. कांग्रेस में जो अब तक इस इलाके से दो मजबूत दावेदार रहे मर्सरत शाहिद का देहांत हो चुका है. गोवर्धन उपाध्याय जिनकी बदौलत बीजेपी के गढ़ में कांग्रेस 1984 और 2013 का विधानसभा चुनाव जीत पाई. अब चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं. माना जा रहा है कि कांग्रेस इस सीट से अब गोवर्धन उपाध्याय के बेटे डॉ सुरेन्द्र उपाध्याय को उम्मीदवार बना सकती है.
यहां के प्रमुख मुद्दे: सिरोंज को जिला बनवाने का मुद्दा लंबे समय से लंबित है. रोजगार इस इलाके का सबसे बड़ा संकट है. ज्यादातर लागों की आजीविका कृषि और मजदूरी से चलती है. इलाके में कोई उद्योग धंधे अब तक नहीं आए. लिहाजा रोजगार की स्थिति बेहद खराब है. दूसरे नंबर पर यहां की बिगड़ी स्वास्थ्य सेवाएं हैं. सिरोंज का शासकीय अस्पताल एक तरीके से जिले का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है, लेकिन केवल तीन डॉक्टरों के भरोसे पूरा अस्पताल है. ग्रामीण इलाकों में रोजगार के लिए पलायन करके राजस्थान का रुख कर रहे हैं लोग. दूसरी तरफ प्रधानमंत्री आवास जैसी सरकारी योजनाओ में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला है.