विदिशा। ऐतिहासिक सांस्कृतिक एवं धार्मिक नगरी रही विदिशा, यहां महाकवि कालिदास ने कभी मेघदूत की रचना की, तो च्यवन ऋषि के आने की किवदंती यहां मिलती है. भगवान श्री राम के चरण भी बेतवा नदी के घाटों पर पड़े, इसलिए बेतवा पर चरण तीर्थ धाम भगवान श्री राम के चरणों के कारण ही कहा जाता है. अपने पिता दशरथ का श्राद्ध भी उन्होंने यहीं चरण तीर्थ धाम पर किया था. अब यहां लोग पितरों का तर्पण और दशा कर्म का कार्य करते हैं. विदिशा का इतिहास सम्राट अशोक की ससुराल के नाम से भी जाना जाता है. अति प्राचीन नगरी विदिशा, जहां बेसनगर की कन्या से सम्राट अशोक का विवाह हुआ था. इसलिए यह नगर इतिहास के पन्नों में भी वर्णित है.
परिवर्तन के मूड में विदिशा के मतदाता विदिशा की राजनीतिक पृष्ठभूमि: विदिशा का राजनीतिक महत्व अपने आप में गौरवपूर्ण रहा है. बाबू तखटमल जैन मध्य भारत के समय यहां के मुख्यमंत्री रहे और उसके बाद राजनीतिक परिदृश्य लगातार बदलते रहे. एक समय अटल बिहारी वाजपेयी भी यहां से सांसद चुने गए थे, जो बाद में देश के प्रधानमंत्री बने. तो वहीं दिवंगत सुषमा स्वराज जो दो बार भारत सरकार में विदेश मंत्री रहीं. वह भी विदिशा से सांसद रहीं, वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी यहां से 5 बार सांसद रह चुके हैं और एक बार विदिशा से विधायक भी निर्वाचित हो चुके हैं.
विदिशा के वर्तमान हालात एवं मुद्दे: राजनीतिक दृष्टि से विदिशा बहुत मजबूती के साथ खड़ा है और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कृषि और व्यवसाय की योजनाएं भी यहां बड़े रूप में संचालित हैं. इसलिए यह नगर शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक कद के साथ भी नापा जाता है. विदिशा में 132830 मतदाता हैं, जिसमें से 67695 पुरुष मतदाता तथा महिला मतदाताओं की संख्या 65125 है. साथ ही थर्ड जेंडर के रूप में 9 वोटर भी इसमें शामिल हैं.
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कई मुद्दे, जो इस बार चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं: विदिशा में रहने वाले बेतवा वासी भी कहलाते हैं. क्योंकि पद्मपुराण में वर्णित बेतवा नदी के बारे में कहा गया है कि, यह कलयुग के पापियों के पापों की तारणहार है. लेकिन वर्तमान हालातों में पेयजल का सबसे बड़ा साधन बेतवा नदी ही है. बढ़ते प्रदूषण की मार झेल रही जीवनदायिनी बेतवा में शहर के नालों का मिलना और उसका निराकरण ना होना इस बार राजनीतिक मुद्दा बन सकता है.
लंबे समय से मांग के बाद भी नहीं हुआ निवारण: ETV BHARAT संवाददाता ने जब इस पहलू पर स्थानीय लोगों से बातचीत की, तब लोगों ने साफ कहा है कि, शुद्ध पेयजल अगर सरकार उपलब्ध नहीं करा सकती तो निश्चित ही यह भविष्य में राजनीतिक मुद्दा बनेगा. गौरतलब है कि विदिशा में पिछले तीन बार से नगर पालिका में भाजपा ही सत्ता पर काबिज है और करीब-करीब प्रदेश में भी भाजपा की ही सरकार रही है. अगर डेढ़ वर्ष के कमलनाथ सरकार के कार्यकाल को छोड़ दिया जाए तो, पूरे समय प्रदेश की सत्ता और नगर की सत्ता का स्वरूप एक जैसा ही रहा है. लेकिन बेतवा में बढ़ते प्रदूषण को लेकर यहां के लोग लगातार संघर्ष करते रहे, ज्ञापन से लेकर पिछले नगरपालिका अध्यक्षों से लेकर जिला प्रशासन तक अपनी बात करते हैं, लेकिन स्थिति जस की तस है.
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नगर के वार्ड और उसकी स्थिति एवं मुद्दे: 39 वार्डों वाली विदिशा नगर पालिका में पिछले 15 वर्षों से लगातार भाजपा के जनप्रतिनिधि इसके अध्यक्ष रहे हैं और परिषद में भी भाजपा का ही बहुमत रहा है. वर्तमान स्थिति में अध्यक्ष का कार्यकाल खत्म हो चुका है. प्रशासक के रूप में यहां कलेक्टर पद आसीन हैं, लेकिन प्रशासक होने के बावजूद भी शहर की स्थितियां बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती. शुद्ध पेयजल यहां का सबसे बड़ा मुद्दा है. घरों में आज भी पीने का पानी नहीं पहुंच पाया है. पुरनपुरा कॉलोनी, टीला खेड़ी में आज भी बेतवा के जल को लोग तरसते हैं. वहीं, अतिक्रमण से पटी पड़ी सड़कें, गंदगी भरी मुख्य रोड, गंदगी से ठसी बड़ी नालियां, उखड़े हुए रोड और स्वच्छता के नाम पर वार्डों में भारी गंदगी से लोग परेशान हैं. स्थानीय निवासियों ने ETV BHARAT पर कहा है कि, इस बार नगर की सरकार को बदलना होगा.
कई योजनाओं से वंचित स्थानीय निवासी: कुल मिलाकर बेतवा शुद्धिकरण पेयजल आपूर्ति, ट्रांसपोर्ट नगर, शहर की पार्किंग व्यवस्था जैसे मुद्दे आज भी अनसुलझे हैं. पेयजल के रूप में जब बेतवा का पानी दम तोड़ देता है तो, नगर की सरकार को एक नहीं अनेकों बार भीषण गर्मी में हलाली डैम से पानी लेना पड़ता है और एक बार में 12 से 14 लाख रुपए हलाली डैम प्रबंधन को भरने पड़ते हैं. लेकिन आज भी इसका कोई स्थाई हल नहीं निकल पाया है. सिटी बस चलाने के लिए भी 8 करोड़ का बजट आया था, प्लान भी बना, लेकिन स्थिति जस की तस है. शहर में वाहन पार्किंग, महिला टॉयलेट का मुद्दा भी जोरों पर है. राजनीतिक रूप से बहुत मजबूत विदिशा नगर की सरकार चुनने में इस बार सत्ता पक्ष को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है, तो वहीं कांग्रेस ने भी इस बार नगर की सरकार को अपने पक्ष में लाने के लिए जोर आजमाइश की है. क्योंकि नगर में दोनों ही महत्वपूर्ण पार्टियां हैं, अब यह तो जनता ही तय करेगी कि आने वाले समय में नगर की सरकार का ताज किसके सिर पर सजेगा.