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एक कौड़ी जुर्माने के बदले बनवा दिया बेतवा नदी का पुल, जानिए क्या रही वजह ?

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Published : Sep 3, 2020, 11:01 PM IST

इन दिनों देश भर में सुप्रीम कोर्ट द्वारा देश के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण को कोर्ट की अवमानना का दोषी मानते हुए एक रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई. अब भूषण इसे जमा करते हैं या नहीं ये इन दिनों देश भर में बड़ी चर्चा का विषय बना हुआ है. हिंदुस्तान में एक रुपये या एक कोड़ी की सजा सुनाने का रिवाज आज से नहीं, बल्कि कई सदियों से चलता आ रहा है. राजा महाराजा भी सजा के तौर पर लोगों को एक कोड़ी, दो कोड़ी जुर्माने का फैसले सुनाते आए हैं.

Story behind Betwa Bridge
बेतवा के पुल के पीछे की कहानी

विदिशा। सिंधिया राजदरबार का हुक्म नहीं मनाने पर महाराज माधवराव सिंधिया ने विदिशा के एक जमींदार गौरीशंकर श्रीवास्तव पर एक कौड़ी का जुर्माना लगाया था. उस समय विदिशा के जमींदार ने उस जुर्माने को राजदरबार में भरने को मना कर दिया. बदले में उस जमीदार ने विदिशा में एक जनसेवा का कोई काम करने को कहा, तो दरबार में पूछा गया क्या कर सकते हो. गौरीशंकर ने कहा कि, मैं अपने विदिशा वासियों के लिए बेतवा नदी पर एक पुल का निर्माण करना चाहता हूं. राज दरबार में सजा के तौर पर पुल के निर्माण कराने का हुक्म दिया. तब जाकर विदिशा के रंगई में एक पुल का निर्माण जमींदार के द्वारा करवाया गया, आज यह पुल 165 साल का हो चुका है.

बेतवा के पुल के पीछे की कहानी

पुल के पीछे की पूरी कहानी

विदिशा के वाशिंदे और सदियों से पुलों पर स्टडी करते आ रहे प्रमोद व्यास बताते हैं कि, यह विदिशा के लिए आत्मसम्मान का प्रतीक है. ऐसा माना जाता है कि, सन 1857 में इस पुल का निर्माण किया गया था. विदिशा के श्रीवास्तव परिवार में एक कानूनगो हुआ करते थे. विदिशा में एक इत्र बेचने वाला आया, उसने कानूनगो से कहा कि, आप यह इत्र नहीं खरीद सकते, इससे उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंची. उन्होंने उस बेचने वाले से पूरा इत्र लिया और अपने घर की दीवारों पर पुतवा दिया. यह बात जब ग्वालियर रियासत में पहुंची, तो उस समय एक कहावत भी बन गई कि, विदिशा वाले तो इत्र दीवारों पर पुतवा देते हैं, यह बात राजघराने को नागावार गुजरी. महाराज ने कानूनगो को बुलवाया.

महाराज के बुलाबे पर भी कानूनगो नहीं पहुंचे, तो उन पर एक कौड़ी का जुर्माने लगाया गया. तब विदिशा के जमींदार ने एक कौड़ी के बदले बेतवा नदी पर पुल बनवाने का निर्माण कराया. व्यास बताते हैं कि, यह एक नहीं बल्कि प्रदेश में दो पुल हैं, जिन्हें जुर्माने के तौर पर बनाया गया है. इन पुलों का निर्माण इतनी मजबूती से किया गया है कि, 165 साल बाद भी इनका कुछ नहीं बिगड़ा.

क्या कहते हैं जमींदार गौरीशंकर श्रीवास्तव के परिजन ?

जमींदार श्रीवास्तव के परिजन आज भी विदिशा में ही एक हवेली में निवास करते हैं. कानूनगो के पोते 83 साल के एक अधिवक्ता रमेशचंद्र श्रीवास्तव बताते हैं कि, उनके दादा गौरीशंकर श्रीवास्तव उस वक्त जमींदार थे. करीब 125 साल पहले उन्हें सिंधिया रियासत में कानूनगो की पदवी भी मिली थी.

आज भी हमारे देश की अदालतें इसी तरह की सजाओं को बरकरार रखे हुए हैं. कभी जमानत के तौर पर दस पेड़ लगाने का फरमान सुनाया जाता है, तो कभी एक रुपया जुर्माने के तौर पर सजा सुनाई जाती है.

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