विदिशा। सिंधिया राजदरबार का हुक्म नहीं मनाने पर महाराज माधवराव सिंधिया ने विदिशा के एक जमींदार गौरीशंकर श्रीवास्तव पर एक कौड़ी का जुर्माना लगाया था. उस समय विदिशा के जमींदार ने उस जुर्माने को राजदरबार में भरने को मना कर दिया. बदले में उस जमीदार ने विदिशा में एक जनसेवा का कोई काम करने को कहा, तो दरबार में पूछा गया क्या कर सकते हो. गौरीशंकर ने कहा कि, मैं अपने विदिशा वासियों के लिए बेतवा नदी पर एक पुल का निर्माण करना चाहता हूं. राज दरबार में सजा के तौर पर पुल के निर्माण कराने का हुक्म दिया. तब जाकर विदिशा के रंगई में एक पुल का निर्माण जमींदार के द्वारा करवाया गया, आज यह पुल 165 साल का हो चुका है.
पुल के पीछे की पूरी कहानी
विदिशा के वाशिंदे और सदियों से पुलों पर स्टडी करते आ रहे प्रमोद व्यास बताते हैं कि, यह विदिशा के लिए आत्मसम्मान का प्रतीक है. ऐसा माना जाता है कि, सन 1857 में इस पुल का निर्माण किया गया था. विदिशा के श्रीवास्तव परिवार में एक कानूनगो हुआ करते थे. विदिशा में एक इत्र बेचने वाला आया, उसने कानूनगो से कहा कि, आप यह इत्र नहीं खरीद सकते, इससे उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंची. उन्होंने उस बेचने वाले से पूरा इत्र लिया और अपने घर की दीवारों पर पुतवा दिया. यह बात जब ग्वालियर रियासत में पहुंची, तो उस समय एक कहावत भी बन गई कि, विदिशा वाले तो इत्र दीवारों पर पुतवा देते हैं, यह बात राजघराने को नागावार गुजरी. महाराज ने कानूनगो को बुलवाया.