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बच्चे को जन्म देने के चंद घंटे बाद 3 किलोमीटर पैदल चल गांव पहुंची महिला, रास्ते में पार किया पहाड़

उमरिया जिले के नौरोजाबाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है, जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगी, कि क्या सरकारी अस्पतालों में इंसानित तक नहीं बची है, ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि एक प्रसूता ने अस्पताल में बच्चे को जन्म दिया, और बच्चे के जन्म के बाद महिला को पैदल ही पहाड़ों के रास्ते 3 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा, क्योंकि अस्पताल प्रबंधन ने महिला को घर जाने के लिए एंबुलेंस नहीं दी. देखिए एमपी के अजब अस्पताल की गजब कहानी.

Woman walks three kilometers after giving birth to child
बच्चे को जन्म देने के बाद तीन किलोमीटर पैदल चली महिला

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Published : Dec 22, 2020, 5:57 PM IST

Updated : Dec 22, 2020, 7:22 PM IST

उमरिया। मध्यप्रदेश के शहडोल जिला चिकित्सालय में एक सप्ताह के अंदर 24 से अधिक बच्चों ने दम तोड़ दिया था, बच्चों की मौत के बाद अस्पताल से निकलती लाशों ने सबको झकझोर कर रख दिया था. इसकी गुंज भोपाल तक सुनाई दी थी, लेकिन अब उमरिया जिले के नौरोजाबाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से एक ऐसी तस्वीर सामने आए है, जो दिल दहला देने वाली है, नौरोजाबाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक महिला ने बच्चे को जन्म दिया. जब उसे डिस्चार्ज किया गया, तो महिला ने एंबुलेंस की मांग की, ताकि वो अपने घर जा सके, लेकिन अस्पताल ने एंबुलेंस देने से साफ इनकार कर दिया, नवजात के जन्म के महज 24 घंटे बाद ही महिला ने पहाड़ चढ़कर 3 किलोमीटर का उबड़-खाबड़ रास्ता पार किया और अपने गांव पहुंची.

बच्चे को जन्म देने के बाद तीन किलोमीटर पैदल चली महिला

अजब अस्पताल का गजब हाल

उमरिया जिले के नौरोजाबाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में बच्चे को जन्म देने के बाद महिला ने एंबुलेंस की मांग की, लेकिन अस्पताल ने एंबुलेंस खराब होने की बात कहकर पैदल ही जाने का फरमान सुना दिया. महिला ने बहुत मिन्नतें की, वह ठीक से चल नहीं सकती, लेकिन तमाम मिन्नतों को अस्पताल प्रबंधन ने दरकिनार कर दिया, और सीधे और साफ लहेजे में कहा एंबुलेंस नहीं है, पैदल ही जाओ. ऐसे में महिला मजबूर होकर पैदल ही घर के लिए निकल पड़ी रास्ता लंबा होने की वजह से उसने पहाड़ के रास्ते की ओर रुख किया, और 3 किलोमीटर का लंबा सफर कर वो अपने गांव पहुंची.

मां-बेटी और नवजात की आपबीती

नौरोजाबाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के कर्मचारियों की बेरुखी देख प्रसूता बिसरती बाई की मां चैती बैगा ने कपड़ों की गठरी बनाकर अपने सर पर रखा. प्रसूता ने अपने दो दिन के दुधमुंहे बेटे को लेकर कड़ाके की ठंड में पैदल ही अपने गांव की ओर निकल पड़ी. प्रसूता की मां ने बताया कि वैसे तो नौरोजाबाद से मरदरी गांव की दूरी 20 से 22 किलोमीटर है, पर ग्राम पटपरा के रास्ते नागोताल आश्रम होते हुए पहाड़ी मार्ग से वो अपनी बेटी और बच्चे को लेकर गांव पहुंची. रास्ते में प्रसूता की स्थिति खराब हुई, चक्कर आया पर जैसे-तैसे रास्ते में बैठ-बैठकर बेटी और नाती को लेकर चैती बाई अपने गांव मरदरी पहुंची. रास्ते में पैदल चलता देख सिर्फ स्वास्थ्य विभाग को छोड़कर हर राहगीर का दिल पसीजा. कुछ बाइक सवारों ने बाइक से कुछ दूर उन्हे छोड़ा, मगर अंत में पहाड़ के रास्ते महिला अपने बच्चों को लेकर अपने गांव पहुंची.

ईटीवी भारत को सुनाई आप बीती

अपनी आप बीती बताते हुए चैती ने ईटीवी भारत (Etv Bharat) को बताया कि मैंने काफी मान-मनौव्वल की. चिकित्सालय ने वाहन बिगड़ने की बात कह कर उसे जाने को कह दिया. अस्पताल में कर्मचारियों की निर्ममता देख उनके सामने संघर्ष के अलावा कोई चारा नहीं बचा. बेबसी जो न कराए. उन्हें अपने नाती-बेटी के साथ पहाड़ सा लंबा दर्द भरा सफर तय करना पड़ा. स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली देखकर यही समझ आया कि शहड़ोल में बच्चों की मौत के बाद भले ही खूब हंगामा हुआ. मगर घटनाक्रम से विभाग ने कोई सबक नहीं लिया. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति जस की तस बनी हुई है.

अस्पताल प्रबंधन को सरकार और अधिकारियों का भी खौफ नहीं

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की संचालक छवि भारद्वाज ने शहडोल की घटना के बाद ऑनलाइन मीटिंग की थी. मीटिंग में स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों और उप संचालक को शामिल किया गया था. शासन स्तर पर हुए रिव्यू के दौरान पता चला कि बच्चों की मौत के पीछे का कारण मैदानी अमले की लापरवाही थी. संभाग के दौरे पर पहुंचे स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी ने भी शहडोल संभाग के तीनों जिलों के CMHO की बैठक लेकर व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की बात कह चुके हैं. लेकिन स्थिति में सुधार होता नजर नहीं आता. उमरिया की ये घटना इसी का उदाहरण भर है.

मामले की होगी जांच

ईटीवी भारत ने जब CMHO से बात करने की कोशिश की तो वो फोन पर भी नहीं आए. कलेक्टर तक जब यह बात पहुंची तो उन्होंने तत्काल बीएमओ करकेली और CMHO से बात कर मामला जाना. ईटीवी भारत से बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. शासन सुविधाओं पर एक बड़ी राशि खर्च करता है उसके बाद भी प्रसूता को पैदल चलकर घर जाना पड़ा इसकी जांच होगी.

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शहडोल जिला अस्पताल में 24 बच्चों की हो चुकी है मौत

26 नवंबर से सिलसिलेवार तरीके से शहडोल जिला अस्पताल में बच्चों की मौत के मामले लगातार सामने आ रहे थे. जिसमें हर दिन लापरवाही के चलते बच्चों की मौत हो रही थी. शहडोल जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉक्टर जीएस परिहार ने बताया था कि अब तक यहां कुल 24 बच्चों की मौत हो चुकी है.

Last Updated : Dec 22, 2020, 7:22 PM IST

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