उमरिया। मध्यप्रदेश के शहडोल जिला चिकित्सालय में एक सप्ताह के अंदर 24 से अधिक बच्चों ने दम तोड़ दिया था, बच्चों की मौत के बाद अस्पताल से निकलती लाशों ने सबको झकझोर कर रख दिया था. इसकी गुंज भोपाल तक सुनाई दी थी, लेकिन अब उमरिया जिले के नौरोजाबाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से एक ऐसी तस्वीर सामने आए है, जो दिल दहला देने वाली है, नौरोजाबाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक महिला ने बच्चे को जन्म दिया. जब उसे डिस्चार्ज किया गया, तो महिला ने एंबुलेंस की मांग की, ताकि वो अपने घर जा सके, लेकिन अस्पताल ने एंबुलेंस देने से साफ इनकार कर दिया, नवजात के जन्म के महज 24 घंटे बाद ही महिला ने पहाड़ चढ़कर 3 किलोमीटर का उबड़-खाबड़ रास्ता पार किया और अपने गांव पहुंची.
अजब अस्पताल का गजब हाल
उमरिया जिले के नौरोजाबाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में बच्चे को जन्म देने के बाद महिला ने एंबुलेंस की मांग की, लेकिन अस्पताल ने एंबुलेंस खराब होने की बात कहकर पैदल ही जाने का फरमान सुना दिया. महिला ने बहुत मिन्नतें की, वह ठीक से चल नहीं सकती, लेकिन तमाम मिन्नतों को अस्पताल प्रबंधन ने दरकिनार कर दिया, और सीधे और साफ लहेजे में कहा एंबुलेंस नहीं है, पैदल ही जाओ. ऐसे में महिला मजबूर होकर पैदल ही घर के लिए निकल पड़ी रास्ता लंबा होने की वजह से उसने पहाड़ के रास्ते की ओर रुख किया, और 3 किलोमीटर का लंबा सफर कर वो अपने गांव पहुंची.
मां-बेटी और नवजात की आपबीती
नौरोजाबाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के कर्मचारियों की बेरुखी देख प्रसूता बिसरती बाई की मां चैती बैगा ने कपड़ों की गठरी बनाकर अपने सर पर रखा. प्रसूता ने अपने दो दिन के दुधमुंहे बेटे को लेकर कड़ाके की ठंड में पैदल ही अपने गांव की ओर निकल पड़ी. प्रसूता की मां ने बताया कि वैसे तो नौरोजाबाद से मरदरी गांव की दूरी 20 से 22 किलोमीटर है, पर ग्राम पटपरा के रास्ते नागोताल आश्रम होते हुए पहाड़ी मार्ग से वो अपनी बेटी और बच्चे को लेकर गांव पहुंची. रास्ते में प्रसूता की स्थिति खराब हुई, चक्कर आया पर जैसे-तैसे रास्ते में बैठ-बैठकर बेटी और नाती को लेकर चैती बाई अपने गांव मरदरी पहुंची. रास्ते में पैदल चलता देख सिर्फ स्वास्थ्य विभाग को छोड़कर हर राहगीर का दिल पसीजा. कुछ बाइक सवारों ने बाइक से कुछ दूर उन्हे छोड़ा, मगर अंत में पहाड़ के रास्ते महिला अपने बच्चों को लेकर अपने गांव पहुंची.
ईटीवी भारत को सुनाई आप बीती
अपनी आप बीती बताते हुए चैती ने ईटीवी भारत (Etv Bharat) को बताया कि मैंने काफी मान-मनौव्वल की. चिकित्सालय ने वाहन बिगड़ने की बात कह कर उसे जाने को कह दिया. अस्पताल में कर्मचारियों की निर्ममता देख उनके सामने संघर्ष के अलावा कोई चारा नहीं बचा. बेबसी जो न कराए. उन्हें अपने नाती-बेटी के साथ पहाड़ सा लंबा दर्द भरा सफर तय करना पड़ा. स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली देखकर यही समझ आया कि शहड़ोल में बच्चों की मौत के बाद भले ही खूब हंगामा हुआ. मगर घटनाक्रम से विभाग ने कोई सबक नहीं लिया. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति जस की तस बनी हुई है.