उमरिया।पर्यावरण के संरक्षण और गोवर्धन के लिए जरूरी है. हम सब मिलकर काम करें. इसके लिए आने वाले त्योहार होली पर हम गाय के गोबर से बने हुए कंडों की होली जलाकर न केवल पर्यावरण को बचाने का काम कर सकते हैं बल्कि हम गौशालाओं के विकास के लिए भी एक कदम आगे बढ़ा सकते हैं. कंडो की होली से यहां लकड़ी की बचत होगी. वहीं पर्यावरण सुरक्षित रहेगा. वन संपदा और पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए इस साल पाली बिरसिंहपुर जिला उमरिया के नवयुवकों ने 'आओ जलाएं कंडों की होली' अभियान पर जोर दिया है.
कंडे की होली जलाना धार्मिक :कंडे की होली से न सिर्फ पर्यावरण प्रदूषित होने से बचेगा बल्कि धर्म के अनुसार भी कंडे की होली को सही माना गया है. इसे देखते हुए समाज का प्रबुद्ध वर्ग कह रहा है कि अब आस्था भी बनी रहे, परंपरा का निर्वहन भी हो जाए और पेड़ भी ना कटें. इसके लिए कंडे की होली जलाने पर जोर दिया है. बता दें कि प्रदूषण वर्तमान की सबसे बड़ी समस्या है. साथ ही सर्वाधिक चिंता का विषय भी है. होली देश मे प्रतिवर्ष मनाई जाती है और इस पावन पर्व को मनाने के लिए हरे पेड़ो की बलि चढ़ा दी जाती है, जो नहीं होना चाहिए. उपलों की होली हम बचपन से गांव से खेलते और जलाते आ रहे हैं. जब सिर्फ कंडों की होली जलाई जाती थी, उससे धुड़ेरी खेलने का आनंद ही कुछ और होता था. उस उपलों की भभूति जब शरीर में लगती थी तो अनेक चर्म रोग जैसे बीमारियां दूर हो जाती थीं. ऐसा हमारे गांव के बुजुर्ग कहा करते थे. होली का त्योहार जंगल की हरी लकड़ियों से नहीं बल्कि उपलों को उपयोग कर होली जलाएं और उत्सव मनाएं.