उमरिया। वन अधिकार को लेकर भले ही सरकार लाख दावे कर ले, लेकिन हकीकत कुछ और ही है. सालों से खून पसीने से जमीन सींचकर जिन आदिवासियों ने पेट जलाया, उन्हें ही उनका अधिकार देने के नाम पर ठग लिया गया. ऐसा ही एक मामला सामने आया है उमरिया से महज 5 किलोमीटर दूर बैगा बाहुल्य किरनताल गांव से, यहां के 60 बैगा परिवार को 1999 में वन अधिकार पट्टा दिया गया. लेकिन वह जमीन उनके नाम में दर्ज ही नहीं की गई. 20 साल बाद जब गांव के बैगा परिवार को इन का पता चला तो उन्होंने इसकी शिकायत कलेक्टर से की और मदद की गुहार लगाई.
क्या है पूरा मामला
उमरिया के किरनताल भैसादादर गांव में 60 बैगा परिवारों को 1300 रुपये के खर्च पर बकायदा तहसीलदार के हस्ताक्षर वाली ऋण पुस्तिका दी गई. तभी से वो जमीन को अपना मानकर उससे अपनी जीविका चलाने लगे. जब वन विभाग ने बेदखली की कार्रवाई की, तो उन्हें पता चला, कि जिस जमीन पर उनको अधिकार दिया गया, वह आज भी सरकारी है. इसी बात की शिकायत करने वह कलेक्टर के पास पहुंचे.
राजस्व विभाग का गैर जिम्मेदाराना रवैया
इस पूरे प्रकरण को सामने आने में 19 से 20 साल लग गए. वर्तमान सरकार पिछले कार्यकाल से ही वनाधिकार पट्टे बांट रही है, यही नहीं राजस्व रिकॉर्ड को ऑनलाइन कर अपडेट किया जा रहा था. बावजूद इसके उन्हें शहर से नजदीक इतने बड़े फर्जीवाड़े की भनक तक नहीं लगी. मंगलवार को जब कलेक्टर ने हल्का पटवारी व तहसीलदार को तलब किया था, तब पटवारी के जवाब से कलेक्टर नाराज भी हुए. क्योंकि उन्हें क्षेत्र की मैदानी हकीकत का पता नहीं था.